राजेश माहेश्वरी। Kashmiri Pandits : कश्मीर से कश्मीरी पंडितों का एक बार फिर से पलायन हो रहा है। जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने के बाद से कश्मीर में शांति बहाली और जनजीवन को सामान्य बनाने के सारी कवायदें जारी हैं। इन सबके बीच कश्मीरी पंडितों की चुन-चुनकर की जा रही हत्याओं ने मनोबल गिराने का काम किया है। नतीजतन थोड़े-बहुत जो भी कश्मीरी पंडित और अन्य कर्मचारी थे, उन्होंने पलायन शुरू कर दिया है।
जो शांति प्रयासों का तगड़ा झटका तो है ही, वहीं इस ओर भी संकेत करता है कि कश्मीर में आंतक की जड़ें काफी गहरी और स्थानीय स्तर पर फैली हुई हैं। जम्मू और कश्मीर में हिंदुओं की टारगेट किलिंग के बढ़ते मामलों के बीच घाटी से एक तिहाई प्रवासी कश्मीरी पंडित कर्मचारियों का पलायन हो चुका है। यह दावा शनिवार (पांच जून, 2022) को बीजेपी नेता और जम्मू और कश्मीर में बीजेपी के राजनीतिक प्रतिक्रिया विभाग के प्रभारी अश्विनी चूंगरू ने किया।
कश्मीर में घाटी में स्थानीय कश्मीरी पंडितों और प्रवासी हिंदुओं की चुन-चुनकर हत्या किए जाने से दहशत फैल गई है। इस साल अब तक 16 लोगों की टारगेट किलिंग हो चुकी है और इन पर रोक न लगने के चलते कश्मीर में काम करने वाले सरकारी कर्मचारियों का पलायन शुरू हो गया है। यही नहीं प्रवासी मजदूर और बड़ी संख्या में ट्रांजिट कैंपों में रह रहे कश्मीरी पंडित भी घाटी छोड़ रहे हैं। कई कर्मचारियों ने तो बिगड़ते हालातों को लेकर कहा कि स्थिति अब 1990 से भी खराब हो चुकी है। ऐसे में यहां रुकना खतरे से खाली नहीं है। पीएम रिलीफ पैकेज के तहत काम करने वाले सरकारी कर्मचारी अपने सामान को भरकर किसी तरह जम्मू और अन्य सुरक्षित स्थानों पर पहुंच रहे हैं।
केंद्र सरकार हरसंभव कोशिश कर रही है कि ये पलायन रूक जाए, लेकिन सरकारी कर्मियों के सामने कोई और विकल्प नहीं है। वे बेहद निराश, परेशान हैं, क्योंकि उन्हें आतंकी निशाना बनाकर मार रहे हैं। बहरहाल यह पलायन 1990 के दौर से भिन्न है। इस बार समूचे परिवार नहीं उजड़ रहे हैं। दरअसल प्रधानमंत्री पैकेज के तहत नियुक्त किए गए सरकारी कर्मचारी अब घाटी छोडऩे पर आमादा हैं। यदि बैंक मैनेजर विजय कुमार की हत्या की गई, तो ईंट भट्टा मजदूरों पर भी गोलियां बरसाई गईं। बिहार निवासी दिलखुश की मौत हो गई और पंजाब निवासी घायल अवस्था में अभी संघर्षरत है। बैंक मैनेजर राजस्थान में हनुमानगढ़ के निवासी थे और 45 दिन पहले ही उनकी शादी हुई थी।
निशाने पर कश्मीरी और गैर-कश्मीरी सभी हैं। आतंकी इसे भी ‘जेहाद’ करार दे रहे हैं। वे भारत की हिमायल करने वालों को निशाना बना रहे हैं। आतंकी नहीं चाहते कि कश्मीर की आबादी में कोई बदलाव आए, उसके समीकरण बिगड़ें। बीते एक साल के दौरान करीब 45 मुस्लिम चेहरों की भी जिंदगी छीन ली गई। यह पलायन हिंदू, मुसलमान दोनों का है। इस पलायन का फलितार्थ ‘राष्ट्रीय’ होगा। यह संकट और समस्या ‘भारतीय’ है। लिहाजा 12 मई को जिला मजिस्टेऊट के राजस्व कार्यालय में काम करने वाले राहुल भट्ट की हत्या के बाद करीब 2500 कश्मीरी पंडितों और अन्य कर्मचारियों ने घाटी से जम्मू की तरफ पलायन किया था।
कश्मीर में लक्षित हत्याओं के बाद कश्मीरी पंडितों (Kashmiri Pandits) को सुरक्षित स्थानों पर तबादला करने की प्रक्रिया जारी है। अब 177 कश्मीरी पंडितों को जिला मुख्यालयों पर भेजा गया है। पहले भी 80 का तबादला किया गया था। सरकार ने इस मामले में साफ तौर पर कहा था कि छह जून तक इन कर्मचारियों को जिला मुख्यालयों पर स्थानांतरित कर दिया जाएगा। बीते शुक्रवार को नई दिल्ली में गृह मंत्री की अध्यक्षता में हुई उच्च स्तरीय बैठक में साफ कहा गया था कि कश्मीरी पंडित कर्मचारियों का घाटी से बाहर तबादला नहीं होगा। आठ सेफ जोन बनाए जाएंगे जहां इनकी तैनाती होगी। लेकिन ये इस जटिल समस्या का अंतिम समाधान तो नहीं है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि सुरक्षा और जिंदगी सरकारी कर्मचारियेां और अन्य लोगों के बुनियादी सरोकार हैं।
हालांकि सरकार ने उन्हें जिला मुख्यालयों पर नियुक्त करने और सरकारी आवास मुहैया कराने का वायदा किया है, लेकिन उससे भी सुरक्षा कैसे सुनिश्चित की जा सकती है? कर्मियों को दफ्तर से आवास के बीच की दूरी हर रोज तय करनी है। रोजमर्रा की जरूरतों को पूरी करने के लिए बाजार तो जाना ही होगा। बच्चों की पढ़ाई का क्या होगा? कर्मचारियों को कभी भी निशाना बनाया जा सकता है। सहज सवाल है कि कश्मीरी पंडितों की घाटी में कभी घर-वापसी हो सकेगी?
प्रधानमंत्री के स्तर पर नौकरियों का यह पैकेज भी पुनर्वास नीति के तहत था। कुल 6000 पद सृजित किए गए थे। उनमें से 3841 पदों पर युवा कश्मीर में लौटे थे। उनमें कश्मीरी और गैर-कश्मीरी सभी थे। कश्मीर से अनुच्छेद 370 समाप्त किए जाने के बाद 520 प्रवासी लोग कश्मीर लौटे थे। उन्हें विभिन्न पदों पर नौकरियां दी गईं। उन कर्मचारियों की यह स्थिति है कि वे घाटी में रहना ही नहीं चाहते।
1989-1990 के बीच कश्मीर घाटी में पैदा हुए हालात के चलते बड़ी संख्या में कश्मीरी हिन्दू परिवार अपना-अपना घर छोड़ कर वहां से सुरक्षित निकल आए थे। सबसे अधिक कश्मीरी पंडित 19 जनवरी, 1990 के दिन से वहां से विस्थापित हुए थे। उन दिनों में चरमपंथी संगठन इश्तिहारों के जरिये कश्मीरी पंडितों को कश्मीर छोडऩे के लिए धमकाते थे। बड़ी संख्या में कश्मीरी पंडितों को निशाना बनाया गया, जिससे लोगों में डर पैदा हो गया था। कश्मीर से विस्थापन के बाद ये परिवार जम्मू और देश के अन्य शहरों में जाकर बस गए थे।
जम्मू से सटे बाहरी इलाके नगरोटा में 2011 में विस्थापित कश्मीरी पंडितों के लिए जगती टाउनशिप का निर्माण किया गया था जहां लगभग 4000 विस्थापित परिवार रहते हैं। इसके अलावा पूरे जम्मू शहर और उस के आसपास के इलाकों में हजारों कश्मीरी पंडित परिवारों ने अपना घर बना लिया है। तीन दशक बीत जाने के बाद भी केंद्र और राज्य सरकारें कश्मीरी हिन्दुओं की घर वापसी सुनिश्चित नहीं कर पाई। धारा 370 की वापसी के बाद कुछ उम्मीद जगी थी, लेकिन ताजा हालातों में ये आशा भी टूटती दिख रही है।
इन सबके बीच बुनियादी सवाल यह है कि भारत सरकार कश्मीर (Kashmiri Pandits) के इस ताजा पलायन को कैसे रोक पाएगी? यह आतंकवाद और उसकी शैली भी नई है। आतंकवाद की जगह यह स्थानीय स्तर की ‘सुपारी’ की साजिश ज्यादा लगती है। इसका मतलब है कि हत्यारों को स्थानीय स्तर पर पनाह दी जा रही है। उसे खंगालना सेना और सुरक्षा बलों के लिए कोई मुश्किल काम नहीं है। पनाह के खेल को तोडऩा और नष्ट करना पड़ेगा। उसमें कोई हमदर्दी, कोई सियासत नहीं होनी चाहिए।