नई दिल्ली। Kashmiri Hindus demand: सुप्रीम कोर्ट ने 1990 में जम्मू-कश्मीर में हुई हिंसा के कारण विस्थापित हुए कश्मीरी हिंदुओं को सरकारी नौकरियों में आयु सीमा में छूट देने की याचिका खारिज कर दी है। कोर्ट ने कहा है कि चूंकि यह एक नीतिगत मामला है, इसलिए वह इसमें हस्तक्षेप नहीं करेगा। इस संबंध में ‘पनुन कश्मीर ट्रस्ट’ नामक संस्था ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका में कहा गया था कि 1984 के सिख विरोधी दंगों और 2002 के गुजरात दंगों के पीडि़तों को ऐसी छूट दी गई है। हालाँकि, कश्मीरी हिंदुओं को इससे वंचित रखा गया है।
मौलिक अधिकारों से वंचित
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने मामले की सुनवाई करने से इनकार कर दिया। संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर जनहित याचिका में 1990 में विस्थापित कश्मीरी हिंदुओं (Kashmiri Hindus demand) के लिए समूह ‘ग’ और ‘घ’ की केंद्र सरकार की नौकरियों में आयु सीमा में छूट की मांग की गई थी। याचिका में कहा गया है कि 1990 के विस्थापन के कारण, कश्मीरी हिंदू समुदाय पिछले तीन दशकों से अपने मौलिक अधिकारों से वंचित है और उनकी युवा पीढ़ी शरणार्थी शिविरों और अस्थायी बस्तियों में रह रही है। कठोर आयु सीमा नीति के कारण उन्हें रोजग़ार मिलना मुश्किल हो रहा है।
आयु सीमा में छूट या रियायत न देना ‘दुर्भावनापूर्ण भेदभाव
कश्मीरी हिंदुओं को आयु सीमा में छूट या रियायत न देना ‘दुर्भावनापूर्ण भेदभाव’ है और नागरिकों के समानता, न्याय और सम्मान जैसे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। याचिका में तर्क दिया गया है कि कश्मीरी हिंदुओं की पीड़ा को समझा जाना चाहिए और उन्हें संवैधानिक संरक्षण प्रदान किया जाना चाहिए। साथ ही, इस याचिका में केंद्र सरकार के साथ-साथ केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर को भी प्रतिवादी बनाया गया है।