नई दिल्ली, 27 जून| Kailash Mansarovar Yatra 2025 : पांच साल के लंबे इंतजार के बाद कैलास मानसरोवर यात्रा फिर से शुरू हो गई है। गुरुवार को 36 तीर्थयात्रियों का पहला जत्था तिब्बत के मानसरोवर तट पर पहुंचा, तो सिर्फ घंटियों की आवाज़ ही नहीं – एक राजनयिक विश्वास की दस्तक भी सुनाई दी।
गलवान के बाद का पहला पड़ाव – विश्वास की यात्रा
भारत और चीन के बीच 2020 गलवान संघर्ष के बाद यह यात्रा पूरी तरह बंद कर दी गई थी। अब पांच साल बाद इसका फिर से शुरू होना राजनीतिक तल्खी के बाद आई नरमी की पहली मिसाल मानी जा रही है।
यात्रा के फिर से शुरू होने के पीछे (Kailash Mansarovar Yatra 2025)है – मोदी-जिनपिंग की ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में हुई बैठक (कजान, 2024)
जहां दोनों नेताओं ने “संबंध सुधार” के लिए मानव-सांस्कृतिक सेतु बनाने पर सहमति जताई थी।
नाथू ला से फिर खुले ‘मोक्ष के द्वार‘
दूसरा जत्था इस सप्ताह नाथू ला दर्रे के ज़रिए चीन में प्रवेश करेगा
यह वही मार्ग है, जो 2015 से पहले सबसे सुरक्षित और तेज़ रूट माना जाता था
इस रूट पर पहले ही संयुक्त निगरानी व्यवस्था शुरू की जा चुकी है
चीनी विदेश मंत्रालय का बयान – “75 साल की मित्रता का एक नया पर्व”
चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गुओ जियाकुन ने कहा:
“भारत-चीन राजनयिक संबंधों की 75वीं वर्षगांठ पर यह यात्रा फिर से शुरू होना| दोनों देशों के नेताओं की “महत्वपूर्ण आपसी समझ” का हिस्सा (Kailash Mansarovar Yatra 2025)है, और चीन भारत के साथ स्थिर, स्वस्थ और परिपक्व संबंधों के लिए प्रतिबद्ध है।”
तीर्थ के बहाने संवाद का रास्ता – क्यों अहम है यह यात्रा?
धार्मिक लिहाज़ से: कैलास-मानसरोवर हिन्दू, बौद्ध, जैन और तिब्बती परंपराओं का साझा आस्था स्थल है| कूटनीतिक नजरिए से: यह यात्रा ट्रैक 2 डिप्लोमेसी का अहम उदाहरण बन रही है| रणनीतिक तौर पर: नरमी के साथ सीमाई स्थिरता की ओर पहला इशारा है