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Judiciary Remarks : सीजेआइ ने इंटरनेट मीडिया पर जजों की मौखिक टिप्पणियों की गलत व्याख्या को लेकर किया आगाह

Judiciary Remarks

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Judiciary Remarks : प्रधान न्यायाधीश बी.आर. गवई ने मंगलवार को अदालती कार्यवाही के दौरान जजों द्वारा की गई मौखिक टिप्पणियों को इंटरनेट मीडिया पर गलत ढंग से प्रस्तुत किए जाने पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि कई बार न्यायिक टिप्पणियों की गलत व्याख्या (Judiciary Remarks) कर सोशल मीडिया पर प्रसारित किया जाता है, जिससे भ्रम और गलत धारणा फैलती है।

प्रधान न्यायाधीश की यह टिप्पणी उस घटना के एक दिन बाद आई, जब एक वकील ने उन पर जूता उछालने की कोशिश की थी। अदालत में सुनवाई के दौरान जस्टिस गवई ने हल्के-फुल्के अंदाज़ में कहा कि उन्होंने अपने साथी न्यायाधीश के. विनोद चंद्रन को पिछली सुनवाई के दौरान कुछ टिप्पणियां सार्वजनिक रूप से करने से रोक दिया था, ताकि उन बातों की (Judiciary Remarks) ऑनलाइन गलत व्याख्या न हो जाए।

उन्होंने कहा, “मेरे विद्वान साथी (जस्टिस चंद्रन) को धीरज मोर केस की सुनवाई के दौरान कुछ कहना था, पर मैंने उन्हें रोका ताकि सोशल मीडिया पर गलत रिपोर्टिंग न हो। मैंने उनसे कहा कि वह इसे केवल मुझ तक ही सीमित रखें।”

ठहराव का मुद्दा संविधान पीठ को भेजा गया

जस्टिस गवई और जस्टिस चंद्रन की पीठ आल इंडिया जजेस एसोसिएशन की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें न्यायिक अधिकारियों की सेवा शर्तों, वेतनमान और करियर प्रगति से जुड़ी मांगें की गई थीं। इस मुद्दे को अब पांच जजों की संविधान पीठ को सौंप दिया गया है (Judiciary Remarks)।

पीठ ने कहा कि न्यायपालिका में प्रवेश स्तर के अधिकारियों के लिए पदोन्नति के अवसर सीमित हैं, और इस संबंध में व्यापक समाधान की आवश्यकता है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर पहले जारी नोटिसों के जवाब में विभिन्न हाईकोर्टों और राज्य सरकारों से मिले अलग-अलग विचारों पर चिंता जताई। कई राज्यों में न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी के पद से शुरू करने वाले अधिकारी प्रधान जिला न्यायाधीश तक पहुंचे बिना ही सेवानिवृत्त हो जाते हैं।

सीजेआइ की मां और बहन ने भी जूता फेंकने की घटना की निंदा की

प्रधान न्यायाधीश बी.आर. गवई की माता कमल गवई और बहन कीर्ति गवई ने अदालत में हुई इस घटना की कड़ी निंदा की। कमल गवई ने कहा कि भारतीय संविधान हर व्यक्ति को समान अधिकार देता है, लेकिन कानून को हाथ में लेकर इस तरह की हरकतें देश की गरिमा को ठेस पहुंचाती हैं और अराजकता फैला सकती हैं (Judiciary Remarks)।

उन्होंने नागरिकों से अपील की कि वे अपनी बात शांतिपूर्ण तरीके से रखें। वहीं, कीर्ति गवई ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में हुई यह घटना केवल एक व्यक्ति पर नहीं, बल्कि संविधान पर हमला है। उन्होंने कहा कि संविधान सर्वोच्च है और हमें अपने संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ियों को सुरक्षित और न्यायसंगत भारत मिल सके।

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