डॉ. ओ.पी. त्रिपाठी। International Recognition : भारत के प्रथम और संपूर्ण स्वदेशी कोरोना रोधी टीके-कोवैक्सीन-को अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिलना देश के लिए बड़ी और ऐतिहासिक उपलब्धि है। दीवाली त्यौहार के अवसर पर विश्व स्वास्थ्य संगठन से मिली इस मान्यता को 130 करोड़ भारतीयों को दिया गया उपहार भी माना जा सकता है। तमाम प्रश्नों, संदेहों और वैज्ञानिक आपत्तियों के बाद, अंतत:, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोवैक्सीन को मान्यता दी है। अब यह भारतीय टीका दुनिया भर में इमरजेंसी इस्तेमाल के लिए उपलब्ध होगा।
यह भारत के विदेश यात्रियों, कारोबारियों, छात्रों और सैलानियों के लिए सुखद और सकारात्मक खबर है, बल्कि उन गरीब, निम्न-मध्य आय वाले और अफ्रीकी देशों के लिए ‘संजीवनी’ साबित होगी, जिन देशों तक कोरोना रोधी टीका अभी तक नहीं पहुंच पाया है अथवा नाममात्र ही उपलब्ध है। अब इसेे विश्व स्वास्थ्य संगठन, यूनिसेफ और बिल गेट्स सरीखों के साझा कार्यक्रम ‘कोवैक्स’ में भी शामिल किया जा सकेगा। कोवैक्सीन को डब्लयूएचओ से मान्यता मिलने पर केंद्र की सरकार, वैज्ञानिक, रिसचर्र और स्वास्थय क्षेत्र से जुड़े तमाम बधाई के हकदार हैं।
कोवैक्सीन को मान्यता देने से पहले डब्लयूएचओ ने उसे 4 मानकों पर परखा था। इसमें क्वालिटी, सुरक्षा, कारगर होने की क्षमता और रिस्क मैनेजमेंट जैसे प्वाइंट्स शामिल हैं। रिस्क मैनेजमैंट का मतलब है कि कोई साइड इफेक्ट होने की स्थिति में कोवैक्सीन बनाने वाली कंपनी भारत बायोटेक उसका मैनेजमेंट कैसे करेगी। हालांकि 3 नंवबर से पहले कोवैक्सीन को मान्यता (International Recognition) देने के मुद्दे पर डब्लयूएचओ कई बैठकें कर चुका था और सवाल उठने लगे थे कि चीन की वैक्सीन को ट्रायल पूरे होने से पहले ही मान्यता देने वाले डब्लयूएचओ को भारत में बनी वैक्सीन से आखिर इतनी दिक्कतें क्यों हैं. हालांकि इस आलोचना का जवाब डब्लयूएचओ हमेशा ये कहकर देता रहा कि भारत बायोटेक ने अभी हमें सारे कागज जमा नहीं करवाए हैं, इसलिए देरी हो रही है।
आमतौर पर वैक्सीन अप्रूवल में डब्लयूएचओ 6 सप्ताह का टाइम लेता है लेकिन कोवैक्सीन को मंजूरी के लिए भारत बायोटेक ने अप्रैल 2021 में आवेदन किया था और मंजूरी मिलने में तकरीबन 7 महीने का समय लग गया। फिलहाल डब्लयूएचओ ने कोवैक्सीन को 18 वर्ष से ऊपर के लोगों को 4 हफ्ते के अंतराल पर लगाने की मंजूरी दी है। हालांकि भारत में कोवैक्सीन अब 2-18 वर्ष आयुवर्ग के लिए भी मंजूर की जा चुकी है। आपको बता दें कि डब्लयूएचओ ने कोवैक्सीन को गर्भवती महिलाओं को लगाने की मंजूरी अभी भी नहीं दी है। इसके लिए और ज्यादा रिसर्च की जाएगी और फिर फैसला लिया जाएगा। भारत में गर्भवती महिलाओं को कोवैक्सीन लगाने की मंजूरी है।
कोवैक्सीन आईसीएमआर और भारत बायोटेक फार्मा कंपनी ने मिलकर बनाई है। इस अप्रूवल के बाद भारत बायोटेक ने अपनी प्रतिक्रिया में साफ किया है कि हमने जून 2021 में कोवैक्सीन के तीसरे चरण का डाटा तैयार कर लिया था और डब्लयूएचओ जुलाई 2021 में ने हमारे आवेदन पर इमरजेंसी इस्तेमाल देने की प्रक्रिया शुरू की थी। 5 अक्टूबर को डब्लयूएचओ के एडवाइजरी ग्रुप ने इस वैक्सीन को क्लियर किया और 3 नवंबर को डब्लयूएचओ ने इसे अपनी मंजूरी दी है। कोवैक्सीन को कोरोना वायरस पर 78 फीसदी कारगर पाया गया है। ये वैक्सीन डेल्टा समेत कोरोनावायरस के सभी वेरिएंट पर कारगर पाई गई है। कंपनी का दावा है कि 2021 के अंत तक भारत बायोटेक इस वैक्सीन की 100 करोड़ डोज बना चुकी होगी।
हालांकि भारत में फिलहाल कोवैक्सीन की केवल 12 करोड़ डोज लगाई गई हैं जबकि कोवीशील्ड वैक्सीन की 94 करोड़ डोज लगाई गई हैं। साफ है कंपनी अभी मैन्यूफैक्चरिंग की चुनौतियों से जूझ रही है। कोवैक्सीन की भारतीय कंपनी भारत बॉयोटेक ने 2-18 साल उम्र के बच्चों के लिए भी टीका तैयार कर लिया है। उसके तमाम परीक्षण किए जा चुके हैं। यह दुनिया का इकलौता टीका है, जो 5 साल की उम्र से कम बच्चों में दिया जा सकेगा। बच्चों का यह टीकाकरण अभियान भारत में जल्द ही आरंभ हो रहा है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन इस बाल-टीके की अलग से समीक्षा करेगा और फिर मान्यता दी जाएगी, लेकिन कोवैक्सीन की मान्यता ने कोरोना वायरस के खिलाफ दुनिया के सुरक्षा-कवच को अधिक मजबूत बना दिया है। कोवैक्सीन का अनुसंधान कोरोना महामारी फैलने के तुरंत बाद ही शुरू कर दिया गया था।
हालांकि अहमदाबाद की कंपनी जायड्स ने भी ऐसे प्रयास शुरू कर दिए थे। उसका टीका भी कैडिला के साथ मिलकर शीघ्र ही आने वाला है। दरअसल कोवैक्सीन बनाने वाली कंपनी भारत बॉयोटेक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न बीमारियों के 15 से अधिक टीकों का अनुसंधान और उत्पादन करने वाली विख्यात कंपनी है। अनेक देशों में उसके टीकों से जिंदगियां बची हैं।
उसके टॉयफाइड वाले टीके को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2018 में मान्यता दी थी। उस टीके की इम्युनिटी सबसे अधिक लंबी और कारगर आंकी गई है। रोटावायरस टीका ऐसा है, जिसे एक दशक लंबे अनुसंधान के बाद विकसित किया गया है। यह टॉयफाइड टीका है, जिसकी प्रौद्योगिकी नवीनतम मानी जाती है। तीन साल पहले बाजार में आए इस टीके के अलावा, हेपटाइटिस-बी, रेबीज, इंफ्लुएंजा आदि के टीके भी इस कंपनी ने बनाए हैं। वे सभी असरकारक टीके आंके गए हैं।
कोरोना के संदर्भ में भारत सरकार ने कोवैक्सीन को इसी साल जनवरी माह में ही आपात इस्तेमाल की स्वीकृति दे दी थी। तब से अब तक करीब 13 करोड़ खुराकें लोगों में दी जा चुकी हैं। सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया द्वारा उत्पादित कोवीशील्ड टीके की तुलना में यह आंकड़ा बौना-सा लगता है, क्योंकि उसके 90 करोड़ से ज्यादा टीके लगाए जा चुके हैं। हालांकि प्रधानमंत्री मोदी ने कोवैक्सीन टीका लगवाया है और विश्व स्वास्थ्य संगठन के सामने टीके की पैरोकारी भी की थी, लेकिन देश के युवाओं समेत आबादी के बड़े हिस्से ने कोवैक्सीन पर भरोसा बेहद कम किया। कारण, टीके को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मान्यता नहीं दी थी।
कोवैक्सीन के परीक्षण के साथ हड़बड़ी के आरोप और संदेह भी चस्पा रहे। अब वे संदेह पिघलने चाहिए। हमें अपने ही स्वदेशी अनुसंधान पर भरोसा करना चाहिए, क्योंकि मान्यता से पहले ही 38 देश इस टीके को मान्यता (International Recognition) ही नहीं दे चुके थे, बल्कि निर्यात के ऑर्डर भी भेज चुके थे, लिहाजा मौजूदा स्थितियों में भारत बॉयोटेक को कोवैक्सीन के उत्पादन और वितरण को नए विस्तार देने चाहिए। प्रधानमंत्री ने कई राज्यों के जिलों में घर-घर जाकर टीकाकरण करने के आदेश दिए हैं, लिहाजा स्वास्थ्यकर्मियों के हाथ नहीं रुकने चाहिए।
लेखक चिकित्सक एवं स्वतंत्र टिप्पणीकार।