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बातों…बातों में सुकांत राजपूत की कलम से…

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बड़े बे-आबरू…

खूफिया विभाग (Intelligence) से एडीजी (ADG) हिमांशु गुप्ता और एएसपी (ASP) दीपमाला कश्यप की यूं औचक्क (Surprise) विदाई (Farewell) न आईपीएस को हिलाकर रख दिया है।

इस बेमेल फेरबदल की वजह जितने मुंह उतनी बातें चर्चा में है। कोई कहता है कांकेर में नक्सलियों का मददगार ठेकेराद जैन से बेखबर होने की सजा मिली है। वहीं पीएचक्यू के सबसे भरोसेमंद कहते हैं ये दो बड़ी भूल के बाद तीसरी थी।

मतलब साफ है ठेकेदार जैन से पहले की दो बड़ी चूक हुई हैं। इसमें पहली थी दिल्ली से आई आईटी टीम की प्रभावशाली लोगों पर कार्रवाई की भनक तक एसबी (इंट) को नहीं लगी। इस गलती का ठीकरा खूफिया विभाग पर फूटा। रही बात एसबी (इंट) के सबसे खास विभाग एसटीएफ की प्रभारी अधिकारी दीपमाला कश्यप पर भी खास जिम्मेदारी थी।

यहां से वह गोपनीय दस्तावेज लीक हुआ जिसका संबंध निलंबित आईपीएस मुकेश गुप्ता का था। इसी दस्तावेज के बल पर वे सर्वोच्च न्यायालय में गए और सरकार की भद्द हुई। ये दो कारणों से दो सीनियर अधिकारियों को बे-आबरू होकर कूचे से निकलना ही था। बे-आबरू इसलिए कि इनकी जगह आईजी रायपुर रेंज आनंद छाबड़ा और दीपमाला की जगह डीएसपी एटीएस कल्पना वर्मा को चार्ज दिया गया।

एसबी और एटीएस…

एसबी(इंट)प्रशासन की आंख, नाक और कान होता है। सूबे में घटित होने वाली हर खबर पर इनकी पैनी नजर होती है। हालाकि झीरम घटना के बाद से ही एसबी(इंट)ने कोई तीर नहीं मारा। इसलिए गुप्तवार्ता जैसी पोस्टिंग एक वक्त था जब खासी जिम्मेदारी और मलाईदार भी मानी जाती थी। एसबी इंट की ही एक शाखा के तौर पर एटीएस है जिसके जिम्मे प्रदेश की सबसे खास मशीन है।

इसी मशीन के जरिए हर घटना पर महकमें का कान लगा रहता है। मशीन इतनी सेंसेटिव है कि इसकी शिफ्टिंग मुश्किल थी सो सब नई पीएचक्यू बिल्ंिडग में चले गए और एसबी का पूरा सेटअप यहीं रह गया। सरकार, प्रशासन और कानून विरोधी बातों को सुन लेने वाली कमाल की यह मशीन की क्षमता भी करीब 18000 कॉल की है।

इतनी अच्छी तकनीक के बाद भी नक्सली मददगार ठेकेदार के बचने से लेकर, प्रदेश में आईटी की रेड और खूफिया विभाग से दस्तावेज लीक होने जैसी चूक मुआफी के लायक तो नहीं है।

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सूचनाएं कमजोर…

सूचनाओं के लिए सरकार पैसा पानी की तरह बहाती है। सूत्रों की मानें तो बेहिसाब मुखबीर तंत्र की राशि का तुलनात्मक अध्ययन करें तो विभाग की सफलता का ग्राफ कमतर ही होगा। एसबी(इंट)का मुखबीर बजट ही करोड़ों में है। इसी तरह एक और खूफिया शाखा है एसआईबी (नक्सल)।

एसआईबी मूलत: नक्सली हलचल, मुखबीरी पर केंद्रित है। एक ऐसा भी वक्त था जब दोनों ही विभागों की कमान मजबूत हाथों में थी और नक्सलियों की कई बड़ी वारदातों की खबर पहले ही लग जाती थी। ऐसा भी हुआ है जब खबरें कई माह पहले पुलिस के पास होती थी। एसआईबी की सबसे बड़ी नाकामी झीरम हादसा थी।

इसके बाद कई ऐसे मामले हैं जिनमें नक्सलियों ने पुलिस, फोर्स को काफी नुक्सान पहुंचाया। लेकिन वारदात हुई, बहस छिड़ी और भूला दी गई…फिर भी विभागों को मोटी रकम बतौर मुखबीर तंत्र अलॉट की जाती रही। कानून व्यवस्था के नाम पर इस खर्च का हिसाब भले ही सार्वजनिक न हो पर सुपरविजन का कोई पारदर्शी तरीका जरुर होना चाहिए।

निर्माण की कमान…

भले ही खूफिया विभाग छूट गया पर साहब को जल्द ही पीएचक्यू से एक बार फिर मलाईदार पोस्ंिटग मिलने की खबर है। एसबी, एसआईबी और योजना के बाद पीएचक्यू में सबसे ज्यादा वारे-न्यारे वाली जिम्मेदारी पुलिस हाउसिंग कॉर्पोरेशन है। पुलिस हाउसिंग कॉर्पोरेशन को सहीं मायनों में काम का बनाने का श्रेय डीजीपी दुर्गेश माधव अवस्थी को जाता है।

उनकी कमान में कॉर्पोरेशन ने पुलिस कर्मियों के लिए जो सर्वसुविधायुक्त फ्लैट्स बनाया है वो काबिल-ऐ-तारीफ है।

एक वक्त था जब कवेलू वाले घर, जर्जर दरो-दीवार वाला पुलिस कर्मियों का क्वार्टर हादसों को दावत देता दिखता था। डीएम अवस्थी ने कम जमीन में बेहतर आवास योजना के जरिए ऐसे पुलिस आवास का निर्माण करवाया है जिसमें, प्रॉपर ड्रेनज, वाटर सप्लाय, गार्डन, मंदिर, पार्किंग और सुरक्षा के लिए कॉलोनी को चारदीवारी से घेरा है।

जहां पुलिस क्वार्टर में सीमेंट का फ्लोर, या सस्ते फर्स थे पुलिस कॉर्पोरेशन ने वहां महंगे टाइल व सुंदर रंगों से बेहतर आवास दिया। करोड़ों के इस बजट वाले महकमें के लिए अब साहब ट्राय कर रहे हैं।

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