प्रेम शर्मा। Inflation & Unemployment : अंग्रेजी नववर्ष की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है। केन्द्र में बैठी सरकार की भारी भरकम परियोजनाओं, वैश्विक स्तर पर बढ़ती साख के बीच उसकी तमाम भारी भरकम उपलब्धियों पर देश में बढ़ती बेरोजगारी और महंगाई पानी फेरती नजर आ रही है। पिछले कुछ समय से जमीनी स्तर पर भाजपा के प्रति नाराजगी तेजी से शुरू हुई है। इसका ताजा प्रमाण हम राज्यों के विधानसभा चुनाव और दिल्ली नगर निगम चुनाव में देख चूके है। कांग्रेस की भारत जोड़ों यात्रा में जिस तरह से जनता भागीदारी कर रही है उसे देखकर भी यह कहना गलत न होगा कि केन्द्र सरकार कही न कही महंगाई और बेरोजगारी के मामले में शिथिलतापूर्वक निर्णय ले रही है।
यह अलग बॉत है कि सोशल मीडिया एवं मीडिया घरानों (Inflation & Unemployment) पर एक छत्र पकड़ के चलते पढ़ेलिखे और तकनीकी योग्यता प्राप्त डिग्रीधारी युवाओं को ठेका पट्टी पर दस से पन्द्रह हजार और गैर तकनीकि युवाओं को सात से आठ हजार की ठेकेवाली नौकरी देकर सरकार अगर इस बॉत का दावा करें कि बेरोजगारी कम हुई तो यह उसकी बड़ी भूल है। यही हाल महंगाई का है। चंद लोगों को नि:शुल्क राशन उपलब्ध कराकर आटा जैसे खाद्याान्न पर जीएसटी लगाकर केन्द्र सरकार ने महंगाई बम फोडऩे का जो काम किया है उससे जनता में सरकार के प्रति नकारात्मक भाव उभरा है। लेकिन इन सबका विरोध सामने इस लिए नही आ पा रहा है कि एक बड़ा नेटवर्क सरकार के आभा मण्डल चमकाए रखने के लिए चौबीसों घंटे काम कर रहा है। लेकिन जो वर्तमान परिदृश्य बन रहा है उसके आधार पर केन्द्र सरकार को 2023 में महंगाई और बेरोजागारी को दूर करने का संकल्प लेना होगा।
अगर हम देखे तो महंगाई को लेकर 2022 वैश्विक स्तर पर अमेरिका और दूसरे विकसित देशों में चार दशकों के शिखर पर पहुंची महंगाई दर को कम करने के लिए केंद्रीय बैंक ब्याज दरों में लगातार बढ़ोतरी कर रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसी संस्थाओं का कहना है कि इससे अगले साल ये देश मंदी की गिरफ्त में फंस सकते हैं। भारत की भी आर्थिक विकास दर वित्त वर्ष 2024 में मौजूदा वित्त वर्ष से कम रहने का अनुमान लगाया गया है। ऐसे में यह सवाल अहम हो जाता है कि जब वैश्विक और घरेलू डिमांड में कमी आ रही है, तब ब्याज दरों में बढ़ोतरी रोकने से कोई फायदा होगा?
वैसे तो अक्सर मौद्रिक सख्ती का असर देरी से दिखता है। यह भी याद रखना होगा कि भारत आयातित महंगाई का सामना कर रहा है, जिस पर आरबीआई का नियंत्रण नहीं है। कंस्यूमर नॉन-ड्यूरेबल सेग्मेंट की बिक्री में लगातार चार महीनों से गिरावट आ रही है, जो देश में कमजोर डिमांड का सबूत है। ब्याज दरों में बढ़ोतरी रोकने भर से इसमें रिकवरी नहीं होगी। हां, एक बार महंगाई के नियंत्रण में आने के बाद अगर रिजर्व बैंक कर्ज सस्ता करता है तो उससे कंस्यूमर सेटिंमेंट मजबूत होगा, डिमांड बढ़ेगी और उद्यमी निवेश भी बढ़ाएंगे। आरबीआई को तब तक कोई जल्दबाजी नहीं दिखानी चाहिए।
ऐसा माना जाता है कि बेरोजगारी और महंगाई से हर कोई आहत है और यह भी कि हर कोई बेरोजगारी और महंगाई को कम करने के लिए दृढ़संकल्प है। व्यापार को बेरोजगारी अच्छी लगती है। क्योंकि, नौकरियां कम हैं और उन्हें चाहने वालों की तादाद ज्यादा है, इसलिए बढ़ती बेरोजगारी में नौकरी देने वालों के लिए सौदेबाजी करना आसान रहता है। नतीजतन, मेहनताना कम देना पड़ता है। वेतन वृद्धि नगण्य होती है। चूंकि नौकरी-पेशा लोगों या यहां तक कि स्वरोजगार करने वालों की सौदेबाजी की शक्ति कमजोर है, इसलिए परिवार की औसत आय में मामूली वृद्धि होती है। कम आर्थिक वृद्धि या मंदी के दौर में औसत परिवार की स्थिति और खराब हो जाती है।सरकारी भर्ती निकायों और सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों को बेरोजगारी अच्छी लगती है। जब कुछ सौ निम्न-श्रेणी की रिक्तियों के लिए स्नातक और स्नातकोत्तर सहित हजारों आवेदक होते हैं, तो नियुक्ति करने वाले अधिकारियों को भारी शक्ति और विवेक प्राप्त होता है।
दलाल फलते-फूलते हैं, पैसा हाथ बदलता है, घोटाले होते हैं। नौकरी चाहने वालों की संख्या चूंकि नौकरियों से अधिक है- निजी, सार्वजनिक और सरकारी क्षेत्रों में नौकरियों में अस्थायीकरण और अनौपचारीकरण बढ़ रहा है। श्रम कल्याण कानूनों को दरकिनार कर दिया गया है। मजदूर संगठन के आंदोलन काफी कमजोर पड़ गए हैं। मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत के नाम पर सरकार जिस तरह की विकास का प्रोपेगेंडा छोड़ती है वह सब के सब बेअसर रहे हैं। सरकार की नीतियां इस तरह की है कि लोगों को रोजगार नहीं मिल रहा है। सरकारी कंपनियों को बेच कर राजस्व भरपाई से जुड़ी जिस तरह की भी घोषणाए हो रही है, उनका रोजगार पैदा करने में कोई योगदान नहीं रहा है।
अमीरी और गरीबी की खाई के बीच तमाम लोग ऐसे हैं जिन्हें इस समय रोजगार की सख्त जरूरत है। लेकिन भारत सरकार की आर्थिक नीतियां बेरोजगारों को रोजगार देने से कोसों दूर चल रहे हैं। कुल मिलाकर लबोलुआब इतना है कि सरकार को बेरोजगारी और महंगाई के मुद्दे पर कोरोना संक्रमण के दौरान किए गए प्रयासों की तरह दूरगामी परिणामों के आधार पर तैयार रणनीति के अनुसार काम करने का वक्त आ चुका है।
गर केन्द्र सरकार 2023 में बेरोगारी और महंगाई (Inflation & Unemployment) को काबू करने का संकल्प लेती है तो निश्चित तौर पर इसका लाभ उसे 2024 मे एक बार फिर मिलेगा। अगर केन्द्र सरकार यह मानती है कि चारों तरफ उसके तारीफ के पुल बांधे जा रहे है विपक्ष पूरी तरह से असहाय एवं असहज है तो यह उसकी बड़ी चूक होगी। कोरोना काल के बाद दूसरें कोराना संकमण की आहट से वैसे भी देश की 80 प्रतिशत जनसंख्या अपने भविष्य, रोजगार और महंगाई को लेकर भयभीत है।