विशेष संवाददाता
रायपुर/नवप्रदेश। Indian Judicial Code: भारतीय न्याय सहिंता पिछले 1 जुलाई से देशभर में लागू हो गई है। लेकिन पुलिस विभाग में अधिकारियों कर्मचारियों के स्वीकृत स्टाफ के अभाव में जांच का कामकाज प्रभावित हो रहा है। भारतीय न्याय सहिंता में तय मापदण्डों के मुताबिक हर थाने एवं जिला स्तर पर एक फारेंसिक विशेषज्ञ की पदस्थापना आवश्यक है।
किसी भी एफआईआर के बाद दोष सिद्ध के लिए फिंगर प्रिंट एक्सपट से लेकर फोटोग्राफर और दस्तावेज परीक्षण जरूरी होता है। लेकिन छत्तीसगढ़ पुलिस मे पास मौजूदा दौर में उपरोक्त संसाधनों का अभाव है। राज्य में अनुसंधान विभाग में एक एसपी, एक एएसपी, 2 डीएसपी, 4 निरीक्षक और 4 उपनीरिक्षक का सेटअप स्वीकृत है लेकिन विभाग में इस सेटअप के मुताबिक कर्मचारी नहीं है। जबकि पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश में लगभग 100 कर्मचारियों की टीम हैं।
दरअसल विवेचना में फारेसिंक साइंस भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। लेकिन स्टाप के अभाव में न्यायालय में दोषसिद्धी के लिए काफी कठिनाई का सामना करना पड़ता है। गौरतलब है कि राज्य में इओडब्ल्यू और एसीबी ने अधिकांश प्रकरणों में मामले दर्ज कर रखे हैं जिसके दस्तावेजी परीक्षण का काम अनुसंधान विभाग करता है। हालांकि भारतीय न्याय संहिता में यह स्पष्ट उल्लेख है कि गवाहों के बयान लेते समय वीडियोंग्राफी, फोटोग्राफी के अलावा फिंगर प्रिंट की कार्रवाई विषय विशेषज्ञों द्वारा की जानी है। साथ ही दस्तावेजों का परीक्षण भी एक महत्वपूर्ण साक्ष्य साबित होगा।
किन्तु राज्य सरकार के पास इन तीनों विभाग (Indian Judicial Code) के विषय विशेषज्ञों के कर्मचारी नहीं है। फोटोग्राफी का काम एक एपीसी के सौंपा गया है। जिसकी मूल पदस्थापना सीएएफ में है। ये तीनों शाखाएं लगभग बंद होने के कगार पर है। पुलिस मुख्यालय में अपराध अनुसंधान विभाग के अन्तर्गत संचालित दस्तावेज परीक्षण शाखा में स्टाप ही नहीं है। यहां पूरे राज्य भर के लिये भाग 2 विशेषज्ञ है जिसमें एक लम्बे समय से बीमार है और अनुपस्थित है।
मात्र एक उप पुलिस अधिक्षक के भरोसे शाखा संचालित हो रही है। कई बार यहां भी ताला बंद रहता है और प्रदेश के अन्य जिलो से आने वाले प्रकरण वापस जाते हैं। इस शाखा के राजकीय हस्ताक्षर परीक्षक दो माह पूर्व सेवानिवृत्त हो चुके है और यह पद रिक्त है। जो आने वाले 7-8 वर्षों तक उपयुक्त तकनीकी अधिकारी के नहीं होने के कारण रिक्त ही रह सकता है।