Indian Culture Civilization : बात का बतंगड़- तिल का ताड़-राई का पहाड़ |

Indian Culture Civilization : बात का बतंगड़- तिल का ताड़-राई का पहाड़

Lok Sabha Elections: An exercise in opposition unity

Lok Sabha Elections

Indian Culture Civilization : वैश्विक स्तरपर हज़ारों वर्ष पुरानी भारतीय संस्कृति सभ्यता तथा बड़े बुजुर्गों की कहावतें और मुहावरों का पीढिय़ों से बहुत गुणगान, नाम है। आज भी हम भारतवंशियों को जो कि दुनिया के किसी भी कोने में बसे हो उसमें भारतीय संस्कृति सभ्यता का अंश किसी न किसी रूप में ज़रूर दिखेगा और किसी न किसी रूप से भारतीय मुहावरों का भी संज्ञान उनके जीवन में बसा हुआ है। चूंकि आज हम बड़े बुजुर्गों की कहावतों मुहावरों पर बात कर रहे हैं और ऊपर से दो राज्यों और एमसीडी के चुनाव भी संपन्न हुए है। आज उनके परिणाम की घोषणा भी हो रही है इन चुनावों में हमने एक बात ज़रूर रेखांकित किए होंगे कि अनेक पार्टियों नेताओं कार्यकर्ताओं ने अपने-अपने स्तर पर समय का संज्ञान लेते हुए अनेक बातों को उछालकर बात का बतंगड़ बना दिया था किसी ने तिल का ताड़ तो किसी ने राई का पहाड़ बनाया था लेकिन हम जानते हैं के यह सब चुनावी बातें हैं बातों का क्या?

यह तो चुनावी बतंगड़ था? अब हम देखेंगे कि हर पार्टी नेता कार्यकर्ता ऐसी बातों का न बतंगड़ करेंगे और न ही ऐसे बयान देंगे और ना ही इनकी चर्चा होगी।अब फिर 2023 में करीब 7 राज्यों के चुनाव और 2024 में आम लोकसभा चुनाव में फिऱ हमें वही उपरोक्त मुहावरों वाली बातें सुनाई देगी। इसलिए आज हम इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, बात का बतंगड़ तिल का ताड़ और राई का पहाड़ (बीटीआर)। साथियों बात अगर हम उपरोक्त तीनों बीटीआर की करें तो बहुत छोटी-छोटी बातों को बहुत बड़ी बहस आरोप प्रत्यारोप का मुद्दा बना देने से है जैसा कि हमने अभी अभी दो राज्यों और एमसीडी के चुनाव में देखाकि नेता कार्यकर्ता चुनाव में एक दूसरे की छोटी बातों को बीटीआर, पति पत्नी में अपनी बात को लेकर बहस, आजकल के युवाओं में क्रोध के कारण बहस आरोपों और प्रत्यारोपों में हम देखते हैं कि बात इतनी बड़ी नहीं रहतीजितना भयानक और खतरनाक उसे बनाया जाता है।

कभी-कभी इसका परिणाम बहुत बड़े जुर्म और सामाजिक बुराई का रूप धारण कर लेता है, जिसमें हत्या संबंध विच्छेदन दुश्मनी बढ़ाना शारीरिक व मानसिक हानि होने जैसे अनेक घटनाएं हो जाती हैं। इसलिए हम सभी को चाहिए कि उपरोक्त तीनों बीटीआर से बहुत ही दूर रहकर सावधानीपूर्वक अपनी वाणी का प्रयोग कर हानियों से बचकर अपने आपको समाज को और राष्ट्र को समृद्ध बनाने में योगदान देने की कोशिश करें।

साथियों बात अगर हम उपरोक्त बीटीआर की शुरुआत की करें तो यह मूल बात या विषय जब एक कान से दूसरे कानों तक पहुँचती है तो उस क्रम में हर एक बिचौलिया जैसे की व्यक्ति या संस्था अपने-अपने फायदे के अनुसार मूल बात को तोड़ता मड़ोड़ता रहता है,तब बातों का मूल विषय, भाव, या अभिप्राय बदल जाता है बात बतंगड़ बन जाती है। और ज्यादातर इसका हमारे समाज पर कुप्रभाव ही देखने को मिलता है। पर इस बढ़ा चढ़ा कर की गयी बात यानि बतंगड़ को पकड़ता कौन है?? आप हम यानि की जनता ढ्ढ फिर जल्दी-जल्दी ट्वीट डिलीट करने का और ये किसी के व्यक्तिगत विचार हैं पार्टी के नहीं ये सब बातों का दौर चल पड़ता है। हमने इस तरह के बीटीआर को कई बार देखे हैं जिसे रेखांकित करना जरूरी है।

साथियों हमने कई बार सुना ही होगा ये गीत (Indian Culture Civilization) सुनिए कहिये सुनिए बातों – बातों में प्यार तो जब मुदा बात ये है की हम कहेंगे की बताने में क्या रक्खा है, हम भी ना बातें करने लगे। बातों पर बातें तो बहुत होती है पर जब गौर से देखेंगे तो मूल में वही एक लाइनर छोटी सी लाइन को बीटीआर करके वायरल कर दिया जाता है। बातें जो है अब कम ही होती हैं क्यूंकि लोग भी स्मार्टफोन की तरह टची हो गएँ हैं न मालूम किसको किसकी बात बुरी लग जाये। आपने बड़े चाव से कोई शायरी लिखी कोई पिक्चर खिचवाया बस एक ब्लू लाइक हो गया। वैसे बतंगड़ का मजा तब है जब माहौल जम जाये जैसे नवोदित साहित्यकारों प्रेमी प्रेमिकाओं के लिए कॉफी हॉउस , गांव के यार दोस्त और गमछा बिछाकर बैठे किसी चाय की दुकान पर पान भी आ गयी और फिर बतंगड़ शुरू।

साथियों लोग आमने सामने बैठने बोलने बतियाने को तरस गए हैं और कितने बुजुर्ग या नौजवान भी घोर अकेलेपन में कुंठित हो रहे हैं क्यूंकि खुलकर मनकी बात बोलने बतियाने वाला कोई नहीं रहा। मेरी पिता हमेशा कहा करती है कंगाल से जंजाल अच्छा। तो अकेलापन और उदासी से तो बतंगड़ ही भला। पर अंतत: सकारात्मक कुछ निकले या कुछ प्रहशन या व्यंग्य हो पर किसी को ठेस न लगे।वैसे हम बिना विचारे किसी की बातों में मत आना चाइए क्या पता बतंगड़ ही हो।

साथियों बात अगर हम उपरोक्त तीनों बीटीआर को मनोवैज्ञानिक तरीके से देखने के अनुमान की करे तो, कई लोग बात को सीधे कहने की बजाय घुमा फिरा के बीटीआर करके कहते हैं, हमारे अनुसार उनके ऐसा करने के पीछे क्या मनोविज्ञान हो सकता है? इसके पीछे अगर हम मनोविज्ञान की बात करें तो कई कारण हो सकते हैं।जैसे लोग हमसे बीटीआर के द्वारा कुछ जानने की इच्छा रखते हैं। पर वह हमसे सीधे पूछने में हिचकते हैं, जिसके कारण व बातों को घुमाते हैं, और फिर उन बातों को जानने का प्रयास करते हैं, जो वह जानना चाहते हैं।

और इसके भी दो कारण हो सकते हैं, या तो वह यह नहीं बताना चाहते कि वह क्या जानना चाहते हैं, या फिर वह कुछ हमसे कुच्छ छुपाना चाहते हैं। और सत्य तो यह है कि आज के समय में कोई बात करते समय या हमको बिल्कुल अहसास तक नहीं होने देता कि वह हमसे क्या जानना चाहता है ,और वह बातों ही बातों में बात के बतंगड़ का प्रेशर देकर सब जान लेता है, जो वह जानना चाहता है, क्योंकि वह जानता है कि अगर वहसीधे-सीधे हमसे पूछेगा तो हम नहीं बताएंगे तो वह जानने के लिए बीटीआर करेगा?

सीधे-सीधे जानने के लिए हमसे बातों को घुमा कर पूछेगा, और हम फिर उनकी बातों को सोचेंगे, कि वह हमसे ही बातें कर रहे हैं, और यह हमारे ही फायदे के लिए हैं।इसलिए हमे उन्हें अपना जवाब सीधे-सीधे ही दे देते हैं। जिसके कारण इसका फायदा उठाते हैं, और हमारी मन की बातों को जान जाते हैं,और हमारे मन की बात जान जाने के कारण ही वह आपकी कमजोरियों को भी जानते हैं ,और हमारी कमजोरियां उनके लिए उनकी ताकत बन जाती है, जब वह हमारी कमजोरियों का फायदा उठाते हैं। इसलिए कभी भी किसी से भी बात करते समय यह जरूर ध्यान रखें कि अपनी कमजोरियों को उनको ना बताएं, क्योंकि इसमें सिर्फ आपका ही नुकसान है, और किसी का नहीं। इसीलिए बात का बतंगड़ प्रेशर में रहकर हम सतर्क रहें।

साथियों बात अगर हम बीटीआर को हंसी मजाक में लेने की करें तो इस आर्टिकल को लिखने संकलित करने की प्रेरणा मुझे तारक मेहता का उल्टा चश्मा नामक टीवी सीरियल के एपिसोड क्रमांक 387 दिनांक 8 अगस्त 2020 के 20.20 मिनट के सीरियल में पानी के टैंकर से पानी भरने की बात को लेकर बात का बतंगड़, तिल का ताड़ और राई का पहाड़ बनाकर हंसी से लोटपोट कर दिया।

अत: अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण (Indian Culture Civilization) का अध्ययन कर उसका विदेशी विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि बात का बतंगड़ तिल का ताड़ राई का पहाड़ आजकल अपने फायदे के अनुसार मूल विषय के भाव और अभिप्राय को बदलने का चलन बढ़ गया है। सभाओं में बातों के मूल विषय को अपने फायदे के अनुसार तोड़ मरोड़कर उसका भाव् अभिप्राय बदलने से बचने की जरूरत है।

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