India G-20 : भविष्य के शहरों का निर्माण

India G-20 : भविष्य के शहरों का निर्माण

G20 Declaration :

India G-20

वी. अनंत नागेश्वरन। India G-20 : किसी क्षेत्र की आर्थिक स्थिति के तत्काल ध्याऔन देने योग्य पहचानकर्ताओं में से एक इसकी बुनियादी सुविधाओं की गुणवत्ता है। आर्थिक विकास के कारक के रूप में, दुनिया भर की सरकारों द्वारा बुनियादी ढांचे पर खर्च को रोजग़ार और बढ़े हुए सामाजिक-आर्थिक विकास के उत्प्रेरक के रूप में महत्वच दिया जाता है। विश्व बैंक का कहना है कि बुनियादी ढांचे के खर्च में 10 प्रतिशत की वृद्धि का समय के साथ सकल घरेलू उत्पाद में 1 प्रतिशत वृद्धि से सीधा संबंध है।
एशियाई संकट के मद्देनजर वैश्विक आर्थिक और वित्तीय मुद्दों पर विचार-विमर्श करने के लिए 1999 में जी-20 के गठन के बाद, यह सोचा गया कि समूह की सम्मिलित जनसंख्या और आर्थिक ताकत को देखते हुए, इसके दायरे के अंदर चर्चा के लिए आने वाले विषयों का विस्तार किया जाना चाहिए।

अत: 2009 में, समूह ने नेताओं के स्तर पर ‘अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिए प्रमुख मंचÓ निर्दिष्ट0 किया। बुनियादी ढांचे को उन्नेति संबंधी स्तंभों में से एक के रूप में मान्यता दी गई थी, जिसे 2012 के लॉस काबोस शिखर सम्मेलन में मजबूती से समर्थन मिला, जिसने बुनियादी ढांचे के निवेश, उत्पादकता और जीवन स्तर के बीच गहरे परस्पनर संबंध बनाने पर जोर दिया। तब से, इस विषय में न केवल बहुत रुचि पैदा हुई है, बल्कि बुनियादी ढांचे को आगे बढ़ाने, विशेष रूप से वित्तपोषण, निवेश और निजी क्षेत्र की भागीदारी का लाभ उठा कर काम करने के लिए एक ठोस समूह भी तैयार किया है। वर्ष 2014 में बुनियादी ढांचे के लिए ऑस्ट्रेलिया से बाहर ग्लोबल इंफ्रास्ट्रक्चर हब (जीआई-हब) और विश्व बैंक द्वारा ग्लोबल इंफ्रास्ट्रक्चर फैसिलिटी (जीआईएफ) के माध्यम से संस्थागत आधार स्?थापित किया गया।

इसके साथ-साथ, जिस तरह दुनिया बुनियादी ढांचे के महत्व को पहचानने की ओर बढ़ी, पीपीपी या सार्वजनिक निजी भागीदारी पर जोर देने जैसी प्रगति को भी जी-20 में इंफ्रास्ट्रक्चर वर्किंग ग्रुप (आईडब्यूै जी) में ले लिया गया। अब यह सर्वविदित है कि दुनिया भर में बुनियादी ढांचे पर महत्वपूर्ण सार्वजनिक खर्च के बावजूद, आगे बढऩे के लिए विभिन्न वित्तपोषण स्रोतों- निजी क्षेत्र, बहुपक्षीय व द्विपक्षीय और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों के ठोस प्रयास की आवश्यकता होगी। वित्तीय कारकों में अच्छी तरह विविधता उत्पजन्नद की जानी चाहिए, और निजी भागीदारी के लिए माहौल सक्षम होना चाहिए।

यह तुर्की, चीन और जर्मनी के सिलसिलेवार अध्य क्षता संभालने अच्छील तरह देखा गया था। बुनियादी ढांचे को एक अलग निवेशक समूह के रूप में मान्यता देने की आवश्यकता का दायित्वा 2018 में अर्जेंटीना की अध्?यक्षता में लिया गया। तब से, जी-20 ने विभिन्न तरीकों जैसे कि गुणवत्ता संकेतकों, सूचित निर्णय लेने के लिए प्रौद्योगिकी के उपयोग और निजी भागीदारी बढ़ाने के माध्यम से बुनियादी ढांचे में स्थिरता को शामिल करने पर जोर दिया है। भारत को 2022 में जी-20 की अध्यदक्षता मिलने के साथ, बुनियादी ढांचे को ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ या एक दुनिया, एक भविष्य के चश्मेी से देखा जा रहा है। आईडब्यू जै जी में भारत का नया योगदान ‘फाइनेंसिंग सिटीज़ ऑफ़ टुमॉरो’ को प्रमुखता से प्राथमिकता देना होगा, जिस पर इससे पहले जी-20 में विशेष रूप से कभी ध्याोन नहीं दिया गया।

वर्ष 2050 तक, दुनिया की लगभग दो-तिहाई आबादी शहरी क्षेत्रों में रहेगी, इसलिए अगली पीढ़ी के शहरीकरण की लहर विकासशील और विकसित देशों के महाद्वीपों में फैलेगी। इसमें शहरीकरण और जीडीपी के बीच मजबूत परस्पंर संबंध होने के कारण वैश्विक विकास को महत्वपूर्ण तरीके से बढ़ाने की क्षमता है। शहरों में 80 प्रतिशत से अधिक सकल घरेलू उत्पाद होने के साथ, शहरीकरण एक अच्छो काम हो सकता है बशर्ते इनका अच्छाल प्रबंधन हो और ये उन्हेंढ अच्छी तरह से प्रबंधित और इनका एक निश्चित तरीके से रखरखाव हो।

पिछले कुछ वर्षों में, भारत ने परिपूर्णता की नीति के माध्यम से शहरों में जन उपयोगी सेवाओं के प्रावधान के कार्य को आगे बढ़ाया है, चाहे वह प्रधानमंत्री आवास योजना (पीएमएवाई) के तहत आवास हो, स्वच्छता (स्वच्छ भारत), पेयजल (हर घर जल), शहरी बुनियादी ढांचे का नवीनीकरण और कायाकल्पै (अमृत), बड़े पैमाने पर पारगमन विकल्पों में तेजी लाने यानी मेट्रो-बीआरटीएस और प्रौद्योगिकी आधारित शहरों के आधुनिकीकरण (स्मार्ट सिटी) आदि क्योंी न हो।

हालांकि, आगे बढ़ते हुए, विकासशील और विकसित देशों को एक ऐसे भविष्य की ओर देखना चाहिए जिसकी तरफ अब तक दुनिया के किसी भी देश का ध्यालन नहीं गया है। देशों की नेट जीरो प्रतिबद्धताओं को देखते हुए, शहरों पर जलवायु के घातक प्रभावों और वित्तीय लचीलेपन तथा भविष्य के शहरों में बसने वाले लोगों के विविध समूहों को देखते हुए, भविष्य के शहरों को टिकाऊ, लचीला और समावेशी बनाया जाना चाहिए।

जिस तरह पुणे विश्वविद्यालय इस जनवरी के आने वाले सप्तासह में भारत की जी-20 की अध्यतक्षता के तहत आईडब्यूरी जी की पहली बैठक की मेजबानी की तैयारी कर रहा है, यह खुद को याद दिलाने का एक अच्छा समय है कि भविष्य की चुनौतियों का समाधान करने के लिए, शहरों को एक नया अवतार लेना चाहिए-आत्मनिर्भर, आत्मविश्वासी और वित्तीय रूप से सशक्त। नगरपालिका सरकारों को न केवल शहरों के लिए रणनीति की योजना बनानी चाहिए बल्कि सपनों को साकार करने के लिए संसाधन भी खोजने चाहिए।

आईडब्यूल जी की पहली बैठक के साथ पुणे विश्वविद्यालय में शहरी प्रशासन पर नगर निगम आयुक्तों के लिए एक पूरक संवाद होगा। भविष्य के शहरों के लिए चुनौतियों और वित्तपोषण की रणनीति के इर्द-गिर्द एक अन्य कार्यक्रम एडीबी द्वारा आयोजित किया जाएगा। इच्छुक वक्ताओं से उम्मीद की जाती है कि जटिल समस्याडओं के स्प ष्टइ और गहरे समाधान साझा करें कि किसी प्रकार देश आबादी के विभिन्न वर्गों की प्राथमिकताओं को पूरा करते हुए स्था यी शहरी विकास की ओर आगे बढ़ सकते हैं।

इस वर्ष की अध्यीक्षता से परिकल्पित उत्कृंष्टओता के मानकों की दिशा में, इससे अच्छा और क्?या होगा कि दुनिया की उन सबसे पुरानी मूलभूत चीजों को वापस लाया जाए जो निर्माण या विकास के लिए आवश्यिक हैं- प्रभावशाली लेकिन विनम्र, विस्तृत लेकिन क्षेत्रीय, कनेक्टिंग लेकिन वितरित- इन्फ्रास्ट्रक्चर?

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