Importance, rights and powers of the President : अध्यक्ष एक ओर नियम प्रक्रियाओं के अनुसार कार्यवाही का संचालन करते हैं तो वहीं दूसरी ओर पूर्ववर्ती अध्यक्षों द्वारा स्थापित संसदीय परंपराओं का अनुसरण भी करते हैं और आवश्यकता होने पर नई परंपराएं भी स्थापित करते हैं जो भविष्य के लिए मार्गदर्शन का काम करती है। चूंकि अध्यक्ष निष्पक्ष होकर सदन का संचालन करते हैं इसलिए पक्ष एवं प्रतिपक्ष दोनों का उनमें विश्वास रहता है और इस विश्वास को कायम रखना अध्यक्ष की जिम्मेदारी बन जाती है।
अध्यक्ष के प्रति पक्ष एवं प्रतिपक्ष के इस विश्वास का ही एक महत्वपूर्ण उदाहरण यह है कि लोकसभा में प्रथम लोकसभा के समय से 17 वीं लोकसभा तक हमेशा अध्यक्ष का निर्वाचन सर्वसम्मति से हुआ भले ही सत्ता पक्ष के पास बहुमत रहा है या सत्ता पक्ष अल्पमत में रहा हो या गठबंधन की सरकार रही हो हमेशा एक सर्वमान्य उम्मीदवार के पक्ष में सर्वानुमति रही है।
18वीं लोकसभा जिसका गठन 6 जून, 2024 को हो गया है और मंत्रिपरिषद ने भी 9 जून को शपथ ले ली है और अब जिस पद पर किसी लोकसभा सदस्य का निर्वाचन होना है वह है लोकसभा अध्यक्ष का पद और आज सबसे ज्यादा चर्चा इसी बात पर हो रही है कि सांसद या किस पार्टी के सांसद को यह जिम्मेदारी मिलने वाली है। जब किसी दल को स्पष्ट बहुमत मिलता है तब तो यह उस दल का आंतरिक मामला रहता है कि वह किस सांसद को लोकसभा अध्यक्ष के पद हेतु नामांकित करती है लेकिन चूंकि वर्तमान में गठबंधन की सरकार है ऐसी स्थिति में अध्यक्ष की भूमिका और अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है।
एन.डी.ए. गठबंधन में भारतीय जनता पार्टी की सबसे अधिक 240 सीटें हैं इसलिए उनके उम्मीदवार का स्वाभाविक तौर पर उस पद पर अधिकार बनता है लेकिन जो सहयोगी दल है टी.डी.पी. और ज.द.यू. भी उस पद के लिए कोशिश में है हालांकि ज.द.यू. ने एन.डी.ए. उम्मीदवार को समर्थन करने का फैसला किया है लेकिन टी.डी.पी. ने कहा है कि एन.डी.ए. आपसी सहमति से उम्मीदवार चुनेगा। इससे स्पष्ट है कि वे भी इस बात के लिए प्रयासरत हैं कि लोक सभा अध्यक्ष का पद टी.डी.पी. को मिले। वहीं इंडी गठबंधन में शामिल दलों ने भी यह कहा है कि यदि टी.डी.पी. इस पद के लिए उम्मीदवार उतारेगी तो इंडी गठबंधन समर्थन करेगा।
अब हम इस बात पर चर्चा करेंगे कि आखिर स्पीकर का पद इतना अहम क्यों है कि न केवल विपक्ष बल्कि गठबंधन में शामिल दल भी चाहते हैं कि यह पद उनकी पार्टी को मिले। इस सोच के पीछे कारण है लोकसभा अध्यक्ष के अधिकार एवं शक्तियां। जब गठबंधन की सरकार होती है तब स्पीकर की भूमिका बेहद खास हो जाती है।
जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है कि लोकसभा अध्यक्ष का मुख्य कार्य सदन को चलाना है और संसदीय मामलों में वे अंतिम निर्णयकर्ता होते हैं और उनके निर्णयों को चुनौती नहीं दी जाती। लेकिन इसके अलावा जो उनका मुख्य कार्य है दल बदल से संबंधित मामलों में अपना निर्णय देना। वे दल बदल से संबंधित मामलों में दल बदलने वाले सदस्य को अयोग्य घोषित कर सकते हैं।
चूंकी गठबंधन वाली सरकार में छोटे दलों के विभाजन और दूसरे दलों में विलय का खतरा बना रहता है और ऐसी परिस्थिति में अध्यक्ष को दसवी अनुसूची के तहत प्राप्त शक्तियों के पालन में वह चाहे तो दल को मान्यता दे या दल बदल करने वाले सदस्यों की सदस्यता समाप्त कर दें और यही कारण है कि गठबंधन में शामिल छोटे दलों का यह प्रेशर रहता है कि अध्यक्ष का पद उनके दल को मिले।
पूर्व में भी जब अल्पमत या गठबंधन की सरकार रही तो अध्यक्ष का पद सहयोगी दलों को दिया गया चूंकि गठबंधन सरकार में सरकार की सबसे पहली चुनौती लोकसभा अध्यक्ष पद पर किसी सांसद के निर्वाचन की होती है और यही कारण है कि 1996 में 11वीं लोकसभा में जब किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला तब भारतीय जनता पार्टी को सबसे बड़ा दल होने के कारण सरकार बनाने का अवसर दिया गया और उनके पास बहुमत नहीं था इसलिए उन्होंने अध्यक्ष पद हेतु उम्मीदवार की घोषणा नहीं की और कांग्रेस के श्री पी.ए. संगमा लोक सभा निर्विरोध निर्वाचित हुए।
12वीं लोक सभा में टी.डी.पी. के श्री जी.एम.सी. बालयोगी एवं 13वीं लोक सभा में एन.डी.ए. गठबंधन की सरकार बनी थी तब भी पहले टीडीपी के श्री बालयोगी अध्यक्ष बने और उनके निधन के बाद लोक सभा अध्यक्ष का पद शिवसेना के मनोहर जोशी को दिया गया। 14वीं लोकसभा में भी जब किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था तब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व में गठित यू.पी.ए. को सरकार बनाने का अवसर दिया गया तब यू.पी.ए. के सहयोगी दल सी.पी.आई. के श्री सोमनाथ चटर्जी को अध्यक्ष पद पर नामांकित किया गया।
जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है नियमों/प्रक्रियाओं के अलावा अध्यक्ष को अपने दायित्वों के निर्वहन में कुछ मामलों में अपने विवेक से भी काम लेना पड़ता है और अध्यक्ष को जो विवेकाधीन शक्तियां प्राप्त हैं, वही उस पद की महत्ता को और बढ़ाती है और संकट के समय अध्यक्ष विवेक का उपयोग कर निर्णय लेते हैं इसलिए उनसे यह अपेक्षा रहती है कि वे अपने विवेक का प्रयोग करके बिना किसी से प्रभावित हुए स्वतंत्र एवं निष्पक्ष निर्णय दें और इसी कारण अध्यक्ष का पद बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है।
विधान सभा एवं लोक सभा में यदि सबसे अधिक सम्मानजनक कोई पद है तो वह है अध्यक्ष का पद। अध्यक्ष की भूमिका लोक सभा एवं विधान सभाओं में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है और उस पद की गरिमा भी अपने आप में उच्च स्तर की होती है इसीलिए न केवल सभी सदस्य अध्यक्ष का सर्वाधिक सम्मान करते हैं बल्कि उनके पद की गरिमा को बनाये रखना भी सदस्यों का दायित्व है।
अध्यक्ष का प्रमुख कार्य सदन का संचालन करना है और इस संचालन में उन्हें निष्पक्ष बने रहना बहुत आवश्यक है क्योंकि जहां सत्ता पक्ष के पास बहुमत का सहारा होता है तो वहीं विपक्ष जो कि संख्या बल में कम रहता है उसके पास अध्यक्ष के संरक्षण का आसरा होता है और अध्यक्ष पक्ष एवं विपक्ष के बीच संतुलन स्थापित करते हुए सदन की कार्यवाही का सुचारू रूप से संचालन करते हैं।