Site icon Navpradesh

Hindi Medical Studies : बेहतरीन प्रयास है, हिंदी में मेडिकल की पढ़ाई

Hindi Medical Studies : Best effort is to study medicine in Hindi

Hindi Medical Studies

राजेश माहेश्वरी। Hindi Medical Studies : पिछले दिनों मध्य प्रदेश से एक खुशखबरी सामने आई। खबर यह थी कि अब मध्य प्रदेश में मेडिकल की पढ़ाई हिंदी में होगी। इसी के साथ भारत ऐसे देशों की सूची में शामिल हो गया है, जहां एमबीबीएस की पढ़ाई मातृभाषा में होगी। रूस, यूक्रेन, जापान, चीन और फिलीपींस जैसे देशों में भी मातृभाषा में मेडिकल की पढ़ाई होती है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के हाथों एमबीबीएस प्रथम वर्ष की उन तीन किताबों का विमोचन हुआ, जिनका हिंदी में अनुवाद किया गया है।

इसका क्या फायदा या नुकसान होगा? इन सवालों पर विशेषज्ञों की राय बंटी हुई है। कुछ इसे आधी-अधूरी तैयारी के साथ उठाया कदम बता रहे हैं तो इस मुहिम से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि ये शुरुआती कदम है, आगे सुधार होगा लेकिन फिलहाल शुरुआत का ही स्वागत किया जाना चाहिए। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का लक्ष्य भी रहा है कि विद्यार्थियों को मातृभाषा में शिक्षा प्रदान की जाये। दरअसल, अब तक भारतीय प्रतिभाओं को अपनी आधी ऊर्जा अंग्रेजी सीखने में खर्च करनी पड़ती थी। खासकर गांव-देहात के उन छात्रों को यह समस्या झेलनी पड़ती थी, जहां कई स्कूलों में छठी कक्षा के बाद अंग्रेजी भाषा का परिचय होता था।

हिंदी में मेडिकल की पढ़ाई का मकसद हिंदी मीडियम के छात्रों, खासकर ग्रामीण परिवेश से आए छात्रों के लिए इसे आसान बनाना है। यह इसलिये भी होना चाहिए था कि जनभाषा में शिक्षा हासिल करने से मरीज व डाक्टर के बीच सहज-सरल संवाद-संपर्क हो पायेगा। यह अच्छी बात है कि इस घोषणा के साथ ही सौ के करीब चिकित्सकों की एक टीम ने प्रथम वर्ष की मेडिकल की कुछ पुस्तकों का अनुवाद हिंदी में किया है।

लेकिन यह मात्र शुरुआत भर है इस दिशा में अभी लंबा सफर तय करना बाकी है। आजादी के बाद राजभाषा के रूप में हिंदी को स्थापित करने के मकसद से अंग्रेजी के शब्दों का जिस तरह जटिल शब्दों के रूप में अनुवाद किया गया, उससे हिंदी उपहास का ही पात्र बनी। लोगों से जोडऩे का मकसद लक्ष्य को न पा सका। बैंकों व अन्य संस्थानों में अंग्रेजी के जिन भारी-भरकम शब्दों का हिंदी में अनुवाद किया गया, वे इतने दुरूह व अव्यावहारिक थे कि लोगों को अंग्रेजी के शब्दों के प्रयोग में ही सुविधा होने लगी। कई बैंक अधिकारी भी इन शब्दों के उपयोग से परहेज करने लगे। ऐसी ही जटिल हिंदी का प्रयोग कई संस्थानों व सार्वजनिक स्थलों में नाम पट्टिका के अनुवाद के नाम पर किया गया कि इससे आमजन का मोह भंग होने लगा। कम से कम अब जब मेडिकल शिक्षा की हिंदी में उत्साहजनक शुरुआत हुई है तो इसकी पुनरावृत्ति नहीं होनी चाहिए।

इस पहल को लेकर कई तरह की चर्चाएं भी हवा में तैर रही है। जानकारों के (Hindi Medical Studies) अनुसार 10वीं-12वीं और उससे आगे भी साइंस की पढ़ाई हिंदी में उपलब्ध है, लेकिन तकनीकी शब्दावली देखें तो कई बार अंग्रेजी ही हिंदी से आसान लगती है। उदाहरण के लिए फिजिक्स में जेनरेटर कहना आसान है, लेकिन विद्युत जनित्र कहेंगे तो छात्र कैसे समझेंगे। प्रकाश, ध्वनि और गति के नियमों से लेकर कार्बन डेटिंग तक हिंदी में पढ़ाना मुश्किल है थोड़ा, अपेक्षाकृत अंग्रेजी में समझाना और समझना आसान लगता है। केमिस्ट्री में भी यही है और बायोलॉजी में भी। हिंदी में पढऩा-पढ़ाना नामुमकिन नहीं है, लेकिन मुश्किल तो है। जब साइंस में ये हालात हैं तो मेडिकल में तो और मुश्किल हो सकती है। बहरहाल मध्य प्रदेश सरकार ने फिलहाल एमबीबीएस के प्रथम वर्ष की तीन ही किताबों एनाटॉमी, फिजियोलॉजी और बायोकेमिस्ट्री का हिंदी अनुवाद कराया गया है। धीरे-धीरे अन्य किताबों को भी हिंदी में उपलब्ध कराया जाएगा।

मेडिकल की पढ़ाई कर रहे कुछ छात्रों का यह कहना है कि सर्वाइकल पेन, स्पाइनल कॉर्ड जैसे तकनीकी शब्द और कई सारी बीमारियों के नाम हिंदी में समझना बहुत ही मुश्किल हो सकता हैै मेडिकल में ऐसे तकनीकी शब्दों की भरमार है, जिन्हें शायद ही हिंदी में समझा जा सके। हालांकि यह कोई बड़ी समस्या नहीं है। समस्या इसलिए नहीं है क्योंकि स्पाइनल कॉर्ड को हिंदी मीडियम वाले भी स्पाइनल कॉर्ड ही पढ़ेंगे। तकनीकी शब्दावली को लेकर चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग का कहना था कि तकनीकी शब्दावलियों में बदलाव नहीं किया गया है। यानी ऐसे शब्द रोमन की बजाय देवनागरी लिपि में लिखे होंगे। इसमें कोई दो राय नहीं है कि मेडिकल शिक्षा में आज भी जिन लेखकों की अच्छी किताबें हैं वो अंग्रेजी में हैं। सारा पाठयक्रम इंग्लिश में है। मेडिकल टर्म का ट्रांसलेशन भी नहीं हो सका है। जो साइंटिफिक टर्म ट्रांसलेट हो पाए हैं, वो कनफ्यूजन क्रिएट करते हैं। सवाल ये है कि आगे अगर स्टूडेंट पीजी कोर्स के लिए चेन्नई जाएगा तो क्या वहां की भाषा में कर पाएगा।

इंटरनेशनल स्तर पर भारतीय डॉक्टरों का दर्जा उन तमाम देशों में जहां उनकी भाषा में मेडिकल की पढ़ाई होती है, से काफी अव्वल रहा है। इंटरनेशनल कांफ्रेंस में भी इंग्लिश को ही वरीयता दी जाती है। जो स्टूडेंट पांच साल में डॉक्टर बनेगा, माना वो हिंदी में पीजी भी कर लेगा, लेकिन फिर वो का कांफ्रेंस कैसे प्रजेंट करेगा, थीसिस कैसे करेगा। इसीलिए जरूरी है कि सबसे पहले हिंदी में मेडकिल और साइंटिफिक शब्द बनें, ताकि किसी पुस्तक का मूल भाव निकल निकलकर कर आए। अर्थ के साथ भाव भी आना जरूरी है। आज जरूरत इस बात की है कि हिंदी में मेडिकल शिक्षा के उपलब्ध पाठ्यक्रम जहां अनुवाद की जटिलताओं से मुक्त हों, वहीं ज्ञान की दृष्टि से वैश्विक मानकों के अनुरूप हों। वहीं यह अच्छी बात है कि इस शुरुआत पर फिजियोलॉजी, एनाटॉमी व बायोकेमेस्ट्री की जो तीन पुस्तकें हिंदी में आई हैं उनमें तकनीकी शब्दों को नहीं बदला गया है।

लोगों के जीवन से जुड़ा शिक्षा का यह क्षेत्र गंभीर प्रयासों की जरूरत बताता है। चिकित्सा विज्ञान नित नये शोधों का समावेश करके मेडिकल की पढ़ाई को समृद्ध कर रहा है। ऐसे में हिंदी में शुरू किये गये मेडिकल पाठ्यक्रम को लगातार अपडेट करने की जरूरत रहेगी। इसके लिये योग्य व अनुभवी विशेषज्ञों की मदद लगातार लेनी चाहिए। बल्कि दक्षिण में हिंदी का विरोध करने वाले राज्यों को भी प्रोत्साहित करना होगा कि मातृभाषा में तकनीकी व मेडिकल की पढ़ाई की शुरुआत में सहयोग करें।
निस्संदेह, इसमें विभिन्न भाषाओं के सर्वमान्य व स्वीकार्य शब्दों के प्रयोग से भाषा को और समृद्ध किया जा सकता है।

यहां मध्य प्रदेश सरकार की वह घोषणा भी स्वागत योग्य (Hindi Medical Studies) है जिसमें आने वाले समय में इंजीनियरिंग व पॉलिटेक्निक की पढ़ाई हिंदी में कराने की बात कही गई है। इससे उम्मीद जगी है कि मातृभाषा में पढ़ाई से छात्रों की मौलिक प्रतिभा का विकास होगा। वहीं यह भी महत्वपूर्ण है कि स्वदेशी भाषा में पढ़ाई करने से दशकों से विद्यमान ब्रेन ड्रेन की समस्या से भी मुक्ति मिलेगी।

Exit mobile version