प्रेम शर्मा। Hijab Controversy : पिछले दिनों कर्नाटक में हिजाब को लेकर मची हुड़दंग धीरे धीरे अन्य राज्यों तक पहुची, इसी बीच आहमदाबाद बम धमकाने के दोषियों को सजा के आदेश के बाद जमीयत के बयान ने हंगामा मचा दिया। आखिर इन दोनों मामलों में गम्भीरता से देखा जाए तो ऐसा लगाता है कि दोनों ही मामले में अनावश्यक हंगामा किया जा रहा है।
वैसे तो देश में बंड़े हंगामे आए दिन होकर पानी के बुलबुले की तरह ध्वस्त हो जाते है, लेकिन इस तरह के हंगामे देश की एकता की जड़े कमजोर करने का निरन्तर प्रयास जारी है। इन दोनों ही मामलों में कतिपय लोगों की जो संदिग्ध भूमिका सामने आ रही है वह इस बॉत का संकेत है कि देश में देशद्रोही ताकते देश की एकता और अखण्डता को कमजोर करने के लिए मौके बेमौके अपनी हरकतों से बाज नही आ रही है।
यह देखना दयनीय है कि जब ईरान में महिलाएं बुर्के के खिलाफ संघर्ष कर रही हैं और अफगानिस्तान में तालिबान बुर्का न पहनने वाली स्त्रियों पर कोड़े बरसा रहे हैं, तब कर्नाटक में कुछ छात्राएं हिजाब पहनकर पढ़ाई करने पर आमादा हैं। राज्य के उडुपी जिले के एक सरकारी कालेज में इस विवाद ने तब तूल पकड़ा, जब इसी दिसंबर की शुरुआत में छह छात्राएं हिजाब पहनकर कक्षा में पहुंच गईं। इसके पहले वे कालेज परिसर में तो हिजाब पहनती थीं, लेकिन कक्षाओं में नहीं।
आखिर अचानक ऐसा क्या हुआ कि वे अध्ययन कक्ष में हिजाब पहनकर (Hijab Controversy) जाने लगीं? इस सवाल की तह तक जाने की जरूरत इसलिए है, क्योंकि एक तो यह विवाद देश के दूसरे हिस्सों को भी अपनी चपेट में लेता दिख रहा और दूसरे, इसके पीछे संदिग्ध पृष्ठभूमि वाले कैंपस फ्रंट आफ इंडिया का हाथ दिख रहा है। यह पापुलर फ्रंट आफ इंडिया की छात्र शाखा है। इसे प्रतिबंधित किए जा चुके कुख्यात संगठन सिमी का डूप्लीकेट कहा जा रहा है। वैसे तो हर किसी को अपनी पसंद के परिधान पहनने की आजादी है, लेकिन इसकी अपनी कुछ सीमाएं हैं। स्कूल-कालेज में विद्यार्थी मनचाहे कपड़े पहनकर नहीं जा सकते।
इसी मनमानी को रोकने के लिए शिक्षा संस्थान ड्रेस कोड लागू करते हैं। इसका एक बड़ा कारण छात्र-छात्रओं में समानता का बोध कराना होता है। दुर्भाग्यपूर्ण केवल यह नहीं कि जब दुनिया भर में लड़कियों-महिलाओं को पर्दे में रखने वाले परिधानों का करीब-करीब परित्याग किया जा चुका है और इसी क्रम में अपने देश में घूंघट का चलन खत्म होने को है, तब कर्नाटक में मुस्लिम छात्राएं हिजाब पहनने की जिद कर रही हैं।
यह न केवल कूप-मंडूकता और एक किस्म की धर्माधता है, बल्कि स्त्री स्वतंत्रता में बाधक उन कुरीतियों से खुद को जकड़े रखने की सनक भी, जिनका मकसद ही महिलाओं को दोयम दर्जे का साबित करना है।बेवजह के विवादों पर हंगामां नई बात नहीं है।इस बीच महिलाओं के अधिकार से लेकर समाज सुधार जैसे कई तर्क इससे जोड़ दिए गए हैं। इसलिए जब यह मामला उच्च न्यायालय के सामने आया, तो अदालत ने उन जटिलताओं को भी समझा, जो इससे जोड़ दी गई हैं और इसकी संवेदनशीलता को भी ध्यान में रखा।
न्यायालय को यह एहसास था कि इस मामले में उसके फैसले के परिणाम बहुत दूरगामी हो सकते हैं। इसलिए मामले की सुनवाई कर रहे न्यायाधीश ने कहा कि इस मुद्दे की सुनवाई अदालत की बड़ी पीठ द्वारा की जानी चाहिए। राज्य के उडुपी जिले की लड़कियों ने अदालत में यह याचिका दायर की थी कि इस मामले में उन्हें अंतरिम राहत दी जाए, लेकिन न्यायाधीश ने अंतरिम राहत का फैसला भी बड़ी पीठ के ऊपर ही छोड़ दिया।
अब बॉत करें आतंकियों की सजा पर हंगामें की तो ऐसा लगाता है कि देश से गद्दारी करने वालों की कमी नही है। जमीयत का आतंकियो के प्रति प्रेम उनके ही समाज को अखर रहा है। जमीयत को विहिप ही नही बल्कि मुस्लिम समुदायों के कई संगठन घेरने लगे है। अहमदाबाद बम धमाकों के लिए जिम्मेदार 38 दोषियों को मौत और 11 को उम्रकैद की सजा स्वागत योग्य है लेकिन इस मामले का निपटारा करने में 13 साल का वक्त गुरजना इस बॉत का संकेत है कि आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई मेें इतनी सुस्ती के करण ही आतंकी गतिविधियों पर विराम नही लग पा रहा। कई बार फैसला जब तक आता है, जब लोग उसे भूल जाते है।
शुक्रवार को विशेष अदालत ने जब अहमदाबाद में 2008 के बम धमाकों के दोषियों को सजा सुनाई, तो लोगों को यह याद दिलाना पड़ा कि उस दिन कितनी बड़ी तबाही गुजरात के उस शहर ने देखी थी। 26 जुलाई की शाम एक के बाद एक, 70 मिनट के भीतर शहर के अलग-अलग हिस्सों में 21 धमाके हुए थे, जिनमें 56 लोगों की जान चली गई थी और 200 से ज्यादा लोग घायल हुए थे।
षड्यंत्र का पर्दाफाश कर सुरक्षा एजेंसियों ने एक साल के भीतर ही मामले में मुकदमा दायर हो गया। कुल 78 लोगों को आरोपी बनाया गया और अब जब 13 साल की अदालती कार्यवाही के बाद फैसला आया है, तो इनमें से 38 लोगों को मृत्युदंड दिया गया और 11 लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है।
यह भी बताया जा रहा है कि भारत के पूरे इतिहास में एक साथ इतने लोगों को मृत्युदंड की सजा कभी नहीं सुनाई गई। इस फैसले के तुरंत बाद अहमदाबाद से एक तस्वीर आई, जिसमें कुछ लोग अपने हाथ में प्लेकार्ड लिए हुए हैं। एक में कहा गया है, मानवता जीती और आतंकवाद हारा, दूसरे पर लिखा है- पीडि़त परिवारों को मिला न्याय। निस्संदेह, लोगों को न्याय मिला है। ऐसे फैसले व्यवस्था पर हमारी आस्था को भी बढ़ाते हैं।
ऐसे में जमीयत उलेमा-ए-हिंद जैसे इस्लामिक संगठनों की ओर से आतंकियों के साथ खड़े होने से देशवासी स्तब्ध हैं। जमीयत के अध्यक्ष अरशद मदनी ने कोर्ट के फैसले पर अविश्वास जताते हुए कहा है कि संगठन दोषी ठहराए गए लोगों के साथ हाई कोर्ट में मजबूती से खड़ा होगा और उन्हें कानूनी सहायता मुहैया कराएगा। जमीयत के इस रुख की हर ओर से निंदा हो रही है तथा इसे देश तोडऩे वाले लोगों तथा आतंकवाद को बढ़ावा देने के तौर पर देखा जा रहा है।
हालांकि विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने तो इसे लेकर जमीयत जैसे संगठनों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई तक की मांग की है। कुल मिलाकर इन दोंनों में मामले में एक समुदाय विशेष के चंद लोग ही शामिल है मगर इन दोनों मामलों में हंगामा जानबूझकर (Hijab Controversy) भड़काने की कोशिश निश्चित ही देश की एकता और अखण्डता के लिए खतरनाक है।