देश में विदेशी विश्वविद्यालयों की बढ़ती मौजूदगी और वैश्विक रैंकिंग (Higher Education Reform India) में प्रतिस्पर्धा को देखते हुए केंद्र सरकार ने उच्च शिक्षण संस्थानों को मजबूत बनाने की दिशा में कदम तेज कर दिए हैं।
शिक्षा मंत्रालय ने भारतीय विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए पांच और दस वर्षीय योजनाओं पर काम शुरू कर दिया है।
इन योजनाओं का मकसद देश के उच्च शिक्षण संस्थानों को विदेशी विश्वविद्यालयों के समकक्ष खड़ा करना और वर्ष 2035 तक उच्च शिक्षा के सकल नामांकन अनुपात (GER) को 50 प्रतिशत तक पहुंचाना है। वर्तमान में यह अनुपात करीब 29 प्रतिशत है।
यह पहल ऐसे समय में तेज की गई है, जब उच्च शिक्षा (Higher Education Reform India) से जुड़े कई नियामकों को मिलाकर एकल नियामक बनाने की प्रक्रिया अभी पूरी नहीं हो पाई है।
हालांकि, वर्ष 2020 में लागू नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) में इसकी घोषणा की गई थी। शिक्षा मंत्रालय का मानना है कि एकल नियामक के गठन से पहले एनईपी की अन्य प्रमुख पहलों को देश के उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रभावी रूप से लागू करना जरूरी है।
इन पहलों में कोर्स को बीच में छोड़ने और दोबारा शुरू करने की सुविधा, उद्योगों की जरूरत के अनुरूप नए पाठ्यक्रमों की शुरुआत, शोध और नवाचार को बढ़ावा देना, भारतीय ज्ञान परंपरा को पाठ्यक्रमों में शामिल करना और एक साथ दो डिग्री कोर्स करने की अनुमति जैसी व्यवस्थाएं शामिल हैं।
मंत्रालय के अधिकारियों के अनुसार, फिलहाल ये सुविधाएं सीमित संख्या में केंद्रीय विश्वविद्यालयों तक ही लागू हैं, जबकि देश में करीब 1200 विश्वविद्यालय और लगभग 50 हजार कॉलेज संचालित हो रहे हैं।
इसी को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार राज्यों के सहयोग से प्रत्येक विश्वविद्यालय के लिए पांच और दस वर्षीय विकास योजनाएं तैयार कर रही है। इन योजनाओं के जरिए संस्थानों की शैक्षणिक गुणवत्ता, शोध क्षमता और रोजगारपरकता को बेहतर बनाने पर जोर दिया जाएगा।
स्थानीय जरूरतों के अनुसार नए कोर्स पर फोकस
उच्च शिक्षण संस्थानों (Higher Education Reform India) की क्षमता बढ़ाने के साथ-साथ स्थानीय स्तर पर मांग वाले पाठ्यक्रमों की शुरुआत पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। उदाहरण के तौर पर, पर्यटन क्षेत्रों में स्थित विश्वविद्यालयों को पर्यटन और हॉस्पिटैलिटी से जुड़े नए कोर्स शुरू करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।
इसके लिए उद्योग जगत के साथ मिलकर क्षेत्रवार जरूरतों की मैपिंग की जा रही है। तय योजनाओं को लागू करने के लिए संस्थानों को वित्तीय सहायता और विशेषज्ञ सहयोग भी दिया जाएगा, खासकर ग्रामीण और दूरदराज इलाकों के कॉलेजों को।
एकल उच्च शिक्षा नियामक पर विधेयक जल्द संसद में
एकल उच्च शिक्षा नियामक की स्थापना से जुड़ा विधेयक अगले सप्ताह संसद में पेश किए जाने की संभावना है। इस प्रस्ताव को केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंजूरी मिल चुकी है। पहले इसे उच्च शिक्षा आयोग (HECI) विधेयक के नाम से जाना जाता था, लेकिन अब इसका नाम विकसित भारत शिक्षा अधिक्षण नियम रखा गया है।
यह नया कानून विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC), अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE) और राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद (NCTE) की जगह लेगा। हालांकि, मेडिकल और लॉ कॉलेजों को इसके दायरे से बाहर रखा जाएगा। प्रस्तावित व्यवस्था का उद्देश्य विश्वविद्यालयों को अधिक स्वायत्त और आत्मनिर्भर बनाना है।

