Haldwani of Uttarakhand : उत्तरखण्ड के हल्द्वानी में पिछले सौ सालों से लगभग पांच हजार लोगों ने अपने कच्चे पक्के मकान बनवा रखे है। अब रेलवे ने उस जमीन को अपनी बताते हुए उन्हे बेदखल करने की कार्यवाही शुरू ही है। हाईकोर्ट ने उन हजारों लोगों को जमीन खाली करने का आदेश दिया है। इसके बाद से इस मामले को लेकर उत्तराखण्ड में बवाल खडा हो गया है। रेलवे की उक्त जमीन पर अधिकांश एक वर्ग विशेष के लोग काबिज है। यही वजह है कि इस मामले को लेकर सियासत शुरू हो गई है। यहां तक कि जिस उत्तराखण्ड से जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती को कुछ लेना देना भी नहीं है उन्होने भी बेजा कब्जाधारियों के पक्ष में बयान देकर राज्य और केन्द्र सरकार पर निशाना साधा है कि वह एक वर्ग विशेष को प्रताडि़त कर रही है।
ओवैसी के अलावा समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के नेताओं ने भी इस कार्यवाही को लेकर राजनीति शुरू कर दी है। उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत तो उपवास पर ही बैठ गए हैं। हल्द्वानी में प्रभावित लोग इन नेताओं के उकसावे में आकर ही दूसरा शाहीन बाग बनाने की तैयारी कर रहे है। बहरहाल हाईकोर्ट के फैसले के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया है। विभिन्न क्षेत्रों में लोगों के द्वारा लगातार प्रदर्शन भी किए जा रहे हैं, ऐसे में आरपीएफ ने कई क्षेत्रों में पहुंचकर लोगों को जागरूक करते हुए कहा है कि कोई भी व्यक्ति ट्रैक पर न करे।
देखना होगा कि सुप्रीम कोर्ट का क्या निर्णय सामने आता है। इस मामले में सार्वोच्च न्यायालय के निर्णय का ही पालन किया जाना चाहिए और सभी को यह फैसला स्वीकार होना चाहिए। जहां तक सवाल रेलवे की संपत्ति का है तो वह सिर्फ हल्द्वानी में ही नहीं बल्कि देश के कोने कोने में रेलवे प्रशासन की लापरवाही के चलते अवैध कब्जों की भेंट चढ़ती जा रही है। देश का शायद ऐसा कोई प्रदेश बाकी हो जहां रेलवे की जमीन पर दशकों पूर्व बेजा कब्जा कर के बस्तियां न बसाई गई हों।
ऐसी अवैध बस्तियों को जब भी रेलवे प्रशासन खाली कराने की कवायद करता है तो इसका विरोध होने लगता है जिसके चलते रेलवे प्रशासन को न्यायालय की शरण में जाना पड़ता है। अभी भी रेलवे की अरबों खरबों रूपए की भूमि बेजा कब्जाधारियों ने हथिया रखी है। जिसे अवैध कब्जों से मुक्त करना रेलवे के लिए एक बड़ी चुनौती है।
इसलिए अब सरकार को चाहिए कि वह रेलवे की देशभर में जितनी भी अनुपयोगी पड़ी भूमि है उसका नए सिरे से पता लगाकर उन्हे चिन्हित करें और इस बारे में एक सुस्पष्ट नीति निर्धारित करें ताकि रेलवे की भूमि से बेजा कब्जा हटाया जाएं और भविष्य में रेलवे की भूमि पर अवैध कब्जा न होने पाएं।