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आदिवासियों के भगवान ‘धरती आबा’ बिरसा मुंडा

God of tribals 'Dharti Aaba' Birsa Munda

God of tribals Dharti Aaba Birsa Munda

God of tribals ‘Dharti Aaba’ Birsa Munda: सभ्यता और संस्कृति की दृष्टि से विश्व मानचित्र पर जगमगाता हुआ देश भारत आदिम जाति बाहुल्य देश है। यहां विविध आदिम जातियों की जनसंख्या दस करोड़ से अधिक है। भारत की कुल जनसंख्या की 8.4 प्रतिशत आबादी आदिम जातियों की है। भारत का हृदय प्रांत छत्तीसगढ़ भी आदिवासी बाहुल्य राज्य है।यहां 43 अनुसूचित जनजातियां एवं उनके 162उपसमूह निवासरत हैं। छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जनजातियों का प्रतिशत 30.62 है।

जनजातीयों का गौरवशाली इतिहास बताता है कि प्राचीन काल से इस समुदाय ने मां भारती की सुरक्षा में अपना तन- मन- धन सदैव न्योछावर किया है। इस बात के प्रबल साक्षी आदिवासियों के जननायक भगवान बिरसा मुंडा हैं । ब्रिटिश हुकूमत से भारत को स्वतंत्रता दिलाने में आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान, शौर्य,त्याग और बलिदान की गाथा को बिरसा मुंडा के जीवन का एक एक पल व्यक्त करता है।

भारत के गौरव ऐसे आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों को सम्मानित करने के लिए वर्ष 2021 में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा 15 नवंबर को ‘जनजातीय गौरव दिवस’ मनाने की घोषणा की गई, जो कि भगवान बिरसा मुंडा का जन्म दिवस है।आदिम जनजाति समुदाय के सबसे बड़े उद्धारक महानायक बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को रांची जिला बंगाल प्रेसीडेंसी के उलिहातु ग्राम में हुआ था, जो कि अब नवगठित राज्य झारखंड के खूंटी जिला में स्थित है।

बिरसा मुंडा ने छोटी उम्र में ब्रिटिश हुकूमत सहित शोषक जमींदारों के खिलाफ बड़े बगावत को अंजाम दिया था।आदिवासियों की गरीबी,अज्ञानता, भोलेपन का लाभ उठाने वाले मिशनरियों के विरुद्ध महाविद्रोह छेड़ दिया था ।मिशनरियों द्वारा भोले भाले आदिवासियों को बरगलाते धर्मांतरण का पाठ पढ़ाया जा रहा था। यह सब देखकर विचलित बिरसा मुंडा ने आदिवासियों के भीतर जन जागरण का सफल अभियान चलाया। जिससे प्रभावित होकर आदिवासी समुदाय उन्हें ‘धरती आबा अर्थात धरती के पिता’ के नाम से पूजने लगा।

आदिवासी पुनरुत्थान के महानायक बिरसा मुंडा को भगवान का दर्जा प्राप्त होना अंग्रेजों को खटकने लगा। मिशनरियों के धर्मांतरण के मार्ग पर बिरसा मुंडा सबसे बड़े बाधक बन गए थे। तब षडयंत्र पूर्वक अंग्रेजों ने बिरसा मुंडा को बंदी बना लिया ,यद्यपि उनके विरुद्ध कोई ठोस प्रकरण अंग्रेज नहीं बना पाए। दोष मुक्त होकर उनके कारावास से छूटने और पुनः आंदोलन करने का भय अंग्रेजों के भीतर भरा हुआ था। ऐसी स्थिति में बंदीगृह में बिरसा मुंडा की संदेहास्पद मृत्यु 9 जून 1900 को हो गई।उनकी मृत्यु को लेकर इतिहासकारों के अलग-अलग मत हैं।

करीब 25 वर्ष की अल्पायु में बिरसा मुंडा ने आदिवासी पुनरुत्थान के लिए जो कार्य किया उससे वह अजर अमर हो गए। महान क्रांतिकारी बिरसा मुंडा द्वारा ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ चलाए गए क्रांति को ‘उलगुलान’ नाम दिया गया था। उलगुलान अर्थात महा विद्रोह 1895 से लेकर 1900 तक चला था।उनके संघर्षों का ही सुफल रहा कि 1908 में एक कानून बना,जिसके तहत आदिवासियों की जमीन को गैर आदिवासियों के नाम नहीं किया जा सकता। वह कानून आज भी लागू है। आज भी उड़ीसा, झारखंड, बिहार,मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल आदि राज्यों के आदिवासी अंचलों में बिरसा मुंडा भगवान की तरह पूजे जाते हैं।

भगवान बिरसा मुण्डा की जयंती ’जनजातीय गौरव दिवस’ के उपलक्ष्य में 14 एवं 15 नवंबर को राजधानी रायपुर में दो दिवसीय राज्य स्तरीय समारोह का आयोजन किया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 15 नवंबर को जमुई बिहार से वर्चुअल रूप से जुड़कर इस समारोह का शुभारंभ करेंगे और पीएम जनमन योजना में शामिल जिलों के हितग्राहियों से चर्चा भी करेंगे।
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के मार्गदर्शन में छत्तीसगढ़ के सभी जिला मुख्यालयों में भी एक दिवसीय गौरव दिवस का आयोजन किया जाना है।

सरकार का यह निर्णय जनजाति सेनानियों के सम्मान, जनजाति संस्कृति का संरक्षण, संवर्धन तथा जनजाति जीवन शैली को शहरी नागरिकों को जानने का बृहद अवसर प्रदान करेगा। साथ ही छनकर आएगी यह बात “असभ्य कहता तुझको सभ्य संसार है, उसे मालूम नहीं तू ही उसका सच्चा पालनहार है”।

छत्तीसगढ़ के इतिहास में पहली बार आयोजित भगवान बिरसा मुंडा के भव्य जन्मोत्सव पर देश के 18 राज्यों के 22 आदिवासी नर्तकों का दल नयनाभिराम नृत्यों की प्रस्तुतियां देगा। साइंस कॉलेज रायपुर के मैदान में
प्रतिदिन पूर्वान्ह 11 बजे से लेकर रात्रि 8 बजे तक विविध कार्यक्रमों का आयोजन होगा।जिसमें आदिवासी कला संस्कृति के मर्मज्ञ शामिल होंगे।

‘अबुआ दिशुम अबुआ राज’ अर्थात अपना देश अपना राज की अलख जगाने वाले जनजाति अमर शहीद बिरसा मुंडा के साथ ही छत्तीसगढ़ के महान शहीद वीर नारायण सिंह, गेंदा सिंह, गुंडा धुर, भैरम देव, इंदरू केवट आदि को सादर नमन।

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