Freebies : गुजरात विधानसभा और नई दिल्ली महानगर पालिका के लिए होने जा रहे चुनाव के लिए विभिन्न राजनीतिक पार्टियों ने अपने-अपने चुनावी घोषणा पत्र जारी कर दिए है। इन घोषणा पत्रों में मुफ्तखोरी को बढ़ावा देने वाली घोषणाओं की भरमार है।
कर्जमाफी से लेकर छात्राओं को इलेक्ट्रानिक स्कूटर मुफ्त देने और महिलाओं को मुफ्त में यात्रा कराने की सुविधा देने सहित कई घोषाणाएं की गई है। मुफ्त बिजली पानी की घोषणा हो चुकी है। आम आदमी पार्टी ऐसी घोषणाओं में सबसे आगे है। उसने मुफ्त बिजली पानी और महिलाओं को मुफ्त में यात्राओं की घोषणाएं (Freebies) कर पहले नई दिल्ली विधानसभा चुनाव में प्रचंड़ बहुमत हासिल किया था।
इसके बाद यही फार्मूला अपना कर उसने पंजाब विधानसभा चुनाव में भी तीन चौथाई बहुमत हासिल कर अपनी सरकार बना ली है। अब फ्री वाला यह फार्मूला गुजरात विधानसभा चुनाव में भी आजमा रही है। आम आदमी पार्टी की देखा-देखी भाजपा और कांग्रेस भी मुफ्तखोरी को बढ़ावा देने वाली घोषणाएं कर रही है। यही हाल नई दिल्ली महा नगर पालिका चुनाव में भी है जहां मुफ्तखोरी को बढ़ावा देने वाली घोषणा करने की राजनीतिक दलों के बीच होड़ लग गई है। इस मामले में कोई भी पार्टी पीछे नहीं रहना चाहती। वोट कबाडऩे के लिए इस रतह की घोषणाएं करने से उन पार्टियों को रोकने में चुनाव आयोग सक्षम नहीं है।
पूर्व मे सर्वोच्च ने इस बारे में सरकार को चाहिए कि मुफ्तखोरी को बढ़ावा देने वाली घोषणाओं पर रोक लगाने वालों पर उचित कदम उठाएं लेकिन बात आई गई होकर रह गई। यही वजह है कि हर चुनाव में राजनीतिक पार्टियां फ्री वाले फार्मुले को बेधड़क अपना रही है। और मतदाताओं को प्रलोभन देकर चुनाव में सफलता पा रही है। आखिर यह आम जनता के गाड़े खुन पसीने की कमाई का ही पैसा है। जिसका उपयोग वोट हासिल करने के लिए किया जा रहा है। सरकारी खजाने का पैसा मुफ्तखोरी को बढ़ावा देने पर खर्च किया जाएगा। तो विकास के लिए पैसा कहा से आएगा।
आज स्थिति यह है कि जिन जिन राज्यों में मुफ्तखोरी को बढ़ाने वाली योजनाएं चल रही है वे कर्ज में डूब रहे हैं और पंजाब सहित कई राज्य को दिवालिएं पन की कगार पर पहुंच गए है। इसलिए यह आवश्यक है कि सरकार मुफ्तखोरी को बढ़ावा देने वाली घोषणाओं और योजनाओं पर रोक लगाने के लिए कारगर कदम उठाएं।
गरीब लोगों को रियायती (Freebies) दर पर राशन मुफ्त शिक्षा और मुफ्त चिकित्सा के अलावा और किसी भी तरह की मुफ्त सेवा देने वाली घोषणाओं पर रोक लगे तभी आम जनता टैक्स के रूप में सरकार को जो पैसे देती है। उसका सदुपयोग हो पाएगा और विकास का लाभ सभी को समान रूप से मिल पाएगा। किन्तु लाख टके का सवाल यह है कि बिल्ली के गले में घंटी बांधे कौन?