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पौधारोपण के नाम पर केवल निभाई जा रही है औपचारिकता

Formalism is being played only in the name of plantation

plantation

नवप्रदेश संवाददाता

मुंगेली। जिले में पौधारोपण Plantation के नाम पर केवल औपचारिकताएं निभाई जा रही है। पौधा रोपण के लिए लाखो रूपय खर्च करने के बाद भी पेड़ो को रख-रखाव के बिना नही बचाया जा सक रहा है। लगभग 4 वर्ष पूर्व मंडी परिसर वन महोत्सव 2015 के तहत वन विभाग द्वारा पौधरोपण Plantation किया गया था ।जिनमें से एक भी पौधा जीवित नहीं रह सका, तेज गर्मी, पानी के अभाव एवं देख-रेख के बिना रोपित पौधे पूरी तरह मुरझाकर जमीदोज हो चुके है।

इसी जगह पर हरेली पर्व पर फिर से वृक्षारोपण किया गया है। पूर्व में पौधे लगाकर कंटीले तार से घेरने के बावजूद देखरेख के अभाव में पौधे सूख गए थे। इस वर्ष भी घेरा तार लगाए गये है अब देखना यह है, कि कितने पौधें का देखभाल किया जा सकेगा और कितने पौधें जीवित रहेगें। पौधरोपण पर हर वर्ष पौधे लगाकर औपचारिकताएं पूरी कर दी जाती है। पौधे लगाने के बाद न तो उनकी सुरक्षा की जाती है।

पर्यावरण की जागरूकता के लिए राशि प्रदान की जाती है और खर्च भी होती है। किन्तु न तो पौधे का पता है और न ही पर्यावरण के लिए जागरूक किया जाता है। प्रतिवर्ष पौधरोपण के नाम पर विभिन्न विभागों को लाखों का आवंटन दिया जाता है परंतु उक्त राशि से रोपित किए गए पौधे की कोई सुध नहीं लेता।

अगले वर्ष फिर से उन्हीं स्थानों पर पौधरोपण के लिए राशि आवंटित कर दी जाती है।प्रदेश शासन द्वारा पूर्व में मंड़ी परिसर में वन महोत्सव मनाते हुये वन विभाग के द्वारा 3 अगस्त 15 को तत्कालिन खादय एवं नागरिक आपूर्ति मंत्रि, पुन्नुलाल मोहले जिला पचायत अध्यक्ष कृष्णा दुर्गा बघेल, षत्रुहन लाल चंद्राकर, सावित्रि अनिल सोनी, प्रकाष चन्द्र जैन , श्रीमति प्रतिमा तरूण खाण्डेकर, षिव प्रताप सिंह, के सान्दिध में पौधों का रोपण कराया था। पर्याप्त देख-रेख के अभाव में छह माह में ही पौधे मुरझाने लगे।

वर्तमान में यह बबुल के पेड़ो से भरे थे। गर्मी के अंतिम चरण में वन विभाग मानसून में पौधरोपण करने विभिन्न नर्सरियों में पौधे तैयार करता है। इसके बाद मानसून आते ही चारों ओर पौधरोपण त्यौहार शुरू हो जाता है। स्कूली बच्चों से लेकर जिले के आला अफसर, वन विभाग, उद्यानिकी, नगर पालिका, विभिन्न संगठन , संस्थाएं जगह- जगह उत्साह के साथ पौधरोपण करतीं हैं। पौधारोपणPlantation  के पश्चात देखरेख के अभाव में पौधे मर जाते हैं।

यही हाल शहर में लगाई गई नक्षत्र वाटिका का भी हो गया है। लगाए गए औषधि पौधे सूख गए या मर गए। बनाई गई फेंसिंग के अंदर बबुल के पेड़ एवं लंबी- लंबी घास उग आई है। इसकी न तो कोई देखरेख करने वाला है और ना ही इसे फिर से विकसित करने की कोई कार्ययोजना बनाई गई है।

पूछे जाने पर सभी अफसर एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डाल रहे हैं।जिले में व्यक्तिगत तौर पर या एकाध संस्था पौधरोपण Plantation की दिशा में अच्छा कार्य भी कर रही है। ये लोग किसी से ना तो मदद लेते और ना ही नेता-अफसर को बुलाते पर साल दर साल बारिश में पौधे रोपकर सालभर देखभाल करते हैं। पौधों के बढ़ जाने पर फिर आगे बढ़ जाते हैं। शासकीय विभागों में मांग के अनुरूप पौधे उपलब्ध कराए जाते हैं। पौधो की देखभाल की जिम्मेदारी संबंधित विभागों की होती है।

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