प्रेम शर्मा। Foreign Investment : भारत के साथ विदेशों के रिश्ते तेजी से बढ़ रहे है। जापान के प्रधानमंत्री फिमियो किशिदा ने अभी मार्च में ही भारत दौरे के दौरान अगले 5 साल में भारत में 3.2 लाख करोड़ रुपये का निवेश करने का ऐलान किया था। अब ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन की भारत यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से जिस तरह से साल के अंत तक मुक्त व्यापार समझौते को अंतिम रूप देने देने की प्रतिबद्धता दिखाई है। वह आने वाले समय में दोनों देेशों संबंधों को नई उंचाई देगा। भारत की वैश्विक कूटनीति और बदले हुए माहौल का परिणाम है कि भारत के प्रति विदेशों का विश्वास बढ़ रहा है।
पिछले एक साल में भारत में निवेश (Foreign Investment) करने वाले दस प्रमुख राष्ट्रों की चर्चा करने से पता चलेगा कि भारत से दोस्ती के लिए अधिकाधिक राष्ट्र आतूर है। पिछले मार्च 2021 से दिसम्बर 2021 के बीच दस राष्ट्रों ने भारत में भारी भरकम निवेश कर यह जता दिया है कि भारत तेजी से उभरता हुआ आर्थिक राष्ट्र है। इन दस माहों में सिंगापुर 86760 करोड़, अमरीका 55811 करोड़, मारिशस 48815 करोड़, केमैन आइसलैण्ड 20302 करोड़, नीदरलैण्ड 19723 करोड़, ब्रिटेन 10661 करोड़, जापान 6814 करोड़, यूएई 6277 करोड़, जर्मन 4326 करोड़ और साईप्रस 1037 करोड रूपये का भारी भरकम निवेश कर चुका है।
कई अन्य राष्ट्र भारत में निवेश कर रहे है या फिर इच्छुक है। खुद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण लोकसभा में कह चुकी है कि भारत सर्वाधिक विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) प्राप्त करने वाला देश बना हुआ है। अब बॉत करे जापान के प्रधानमंत्री और फिर ब्रिटेन के प्रधानमंत्री की भारत यात्रा के बारे में तो निश्चित ही इन दो राष्ट्राध्यक्षों की युक्रेन और रूस के युद्ध के बीच भारत की यात्रा कई मायने में महत्वपूर्ण है। इन यात्राओं से भारत के दूश्मन देश चीन और पाकिस्तान में हलचल है। भारत और ब्रिटेन के बीच जो नजदीकी देखी गई है, उसे वर्षों तक याद किया जाएगा।
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन का भारत दौरा यह सिद्ध करता है कि ब्रिटेन आर्थिक संबंधों को बढ़ाना चाहता है, साथ ही, रक्षा मामलों में भी भारत के साथ सहयोग बेहतर करने को लालायित है। हो सकता है, ब्रिटेन की यह कोशिश इसलिए भी हो कि रूस पर भारत की निर्भरता कम हो जाए, लेकिन तब भी भारत जिस तरह से अपना हित देखते हुए मजबूती से आगे बढ़ रहा है, वह मानीखेज है। खास कामयाबी यह कि ब्रिटेन भारत को एक ओपन जनरल एक्सपोर्ट लाइसेंस जारी करेगा, जिससे रक्षा खरीद आपूर्ति में कम समय लगेगा। इसके अलावा ब्रिटेन लड़ाकू जेट बनाने में भी भारत की मदद करेगा। हिंद महासागर में भारत की ताकत बढ़ाने की दिशा में भी वह मदद करना चाहता है। सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और स्वास्थ्य क्षेत्र में ब्रिटेन ने भारत में निवेश बढ़ाने की बात भी की है।
इतना ही नहीं, दोनों देश इसी साल के अंत तक एक व्यापक मुक्त व्यापार समझौता भी करने वाले हैं। इस तरह का समझौता पहले ही हो जाना चाहिए था, लेकिन अगर ब्रिटेन इस दिशा में अब बढ़ रहा है, तो भारत की बढ़ी हुई अहमियत को हम नजरंदाज नहीं कर सकते। भारत सीमाओं पर चीन की दखलदॉजी और पाकिस्तान द्वारा कश्मीर घाटी पर घुसपैठ पर लगता विराम भी इस बॉत का संकेत है कि वैश्विक शांति के लिए विश्व के अनेक राष्ट्र भारत के साथ खड़े है। भारत के रूस, इजराइल, जापान, कनाडा, फ्रांस, नेपाल और भूटान से संबंध जगजाहिर है।
अमेरिकी विदेश मंत्री हों या रूसी विदेश मंत्री या चीनी विदेश मंत्री या अब ब्रिटेन के प्रधानमंत्री, ये तमाम यात्राएं भारतीय शक्ति का प्रमाण हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बोरिस जॉनसन के बीच जो गर्मजोशी देखी गई है, उस पर न केवल भारतीय कूटनीतिज्ञों, बल्कि दुनिया की भी नजर होगी। दोनों ही नेता परस्पर संबंध विस्तार के लिए व्यग्र नजर आ रहे हैं, तो दुनिया के बदलते हालात की भी इसमें भूमिका है। कूटनीतिज्ञ भी इस बात को रेखांकित करते हैं कि विश्व की राजनीति में आज भारत का जो महत्व है, वह पहले नहीं था। पहले अमेरिका, ब्रिटेन जैसे देश भारत व पाकिस्तान के साथ एक समान व्यवहार के लिए बाध्य दिखते थे।
शीतयुद्ध के दौर में दोनों देशों को एक ही तराजू पर रखकर चलने की वैश्विक कोशिश ने भारत को कई बार बहुत निराश किया है। हम अपना पक्ष रखते तो थे, लेकिन उससे लाभ नहीं ले पाते थे। अब ऐसा लगता है कि दुनिया खुद आगे बढ़कर भारत साथ दोस्ती करना चाहती है। देखा जाए तो हमें पाकिस्तान के साथ तौलने का पश्चिमी तराजू अब शायद टूट चुका है। हमें विश्व-राजनय में अपनी वाजिब जगह और मजबूती, दोनों को कायम रखना है।
एक और ताजा मामला देखें, तो एक अमेरिकी कांग्रेस सदस्य ने पाक-अधिकृत कश्मीर की यात्रा की, जिस पर भारत ने आपत्ति जताई, इसके बाद अमेरिकी सरकार को स्पष्ट करना पड़ा कि डेमोक्रेट सांसद की यात्रा से बाइडन सरकार का कोई लेना-देना नहीं है। दुनिया में अभी कोई ऐसा देश नहीं है, जो भारत को रूस का पुराना साथी होने के नाते कठघरे में खड़ा कर दे। भारत बहुत संभलकर चल रहा है। वह न तो रूस के खिलाफ गया है, न ही यूक्रेन के विरोध में खड़ा दिखा है।
यह संतुलन भारतीय विदेशी (Foreign Investment) कूटनीति का नया सशक्त पहलू है। हर हाल में भारत को अपना हित देखते हुए चलना है। वैश्विक स्तर पर अब यह चर्चा हो रही है कि भारत सिर्फ बाजार नहीं है, कोई भी देश भारत को सिर्फ बाजार मानकर न चले। संबंधों का विस्तार उन्हीं देशों के साथ होना चाहिए, जिनको हमारी पीड़ाओं का भी अंदाजा हो। भारत की विदेश नीति के इन महत्वपूर्ण आधार स्तंभों जैसे असंलग्नता की नीति, नि: शस्त्रीकरण में विश्वास, सहअस्तित्व अथवा पंचशील, अन्तर्राष्ट्रीय सद्भाव, सहयोग एवं मित्रता, साधनों की शुद्धता पर आधारित, रंगभेद का विरोधत्र विश्व शांति मे विश्वास, नस्लवाद का विरोध ने हमें वैश्विक स्तर पर मजबूत बनाया है।