रायपुर/नवप्रदेश। Fertilizer Crisis : छत्तीसगढ़ में धान एवं अन्य खरीफ फसलों की बोवाई का काम जून में शुरू हो जाता है। जून में राज्य में रासायनिक खादों की मांग अधिक रहती है। मानसून के सही समय दस्तक देते ही किसानों के चेहरे खिल उठे हैं। दूसरी ओर उन्हीं किसानों को अब चिंता सताने लगी है। इसकी वजह यह है कि अभी धान का थरहा लगाने का समय है, ऐसे में छत्तीसगढ़ के अधिकतर समितियों में खाद और धान के बीच की कमी है। उधर, आप पार्टी ने खाद की कालाबाजारी को लेकर भी केंद्र सरकार पर निशाना साधा है।
किसान बोले- डिमांड से मिला कम बीज
सेवा सहकारी समिति मर्यादित भिलाई 3 धान का बीज और खाद लेने पहुंचे पचपेड़ी के किसान अश्वनी धनकर ने बताया कि समितियों में खाद और बीज नहीं है। किसान डिमांड कर रहे हैं, लेकिन समिति प्रबंधक आज आएगा, कल आएगा कह रहे हैं।उनका कहना है कि छत्तीसगढ़ के अधिकतर सोसाइटी में खाद और धान का बीज नहीं है। पचपेड़ी से आए गोपाल कृपाल का कहना है कि डीएपी नहीं है। धान का बीज नहीं मिल रहा है। अगर तीन से चार दिन में धान का बीज नहीं मिला तो धान का थरहा लगाने में हम पिछड़ जाएंगे। इससे पैदावार और फसल दोनों में दिक्कत होगी।
वहीं गनियारी से आए किसान सुरेंद्र कुमार का कहना है कि धान का कोई भी बीज समितियों में नहीं है। समिति प्रबंधक का कहना है कि पत्र लिखा गया है, आएगा तो देंगे। इस बारे में कृषि विभाग दुर्ग का कहना है कि उन्होंने किसानों को डीएपी उपलब्ध कराने के लिए मार्कफेड को पत्र लिखा है। किसानों में स्वर्णा धान की काफी अधिक डिमांड है। हमने डिमांड 250 क्विंटल बीज का भेजा था, लेकिन यह डिमांड के मुताबिक काफी कम बीज मिला है।
मोदी सरकार प्रदेश में खाद की आपूर्ति कर रही है बाधित : कोमल हुपेंडी
दूसरी ओर आम आदमी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष (Fertilizer Crisis) कोमल हुपेंडी ने मोदी सरकार को घेरते हुए खाद की कालाबाजारी का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार राज्य में उर्वरकों की आपूर्ति बाधित कर रही है और भाजपा उनके कारनामों को छिपाने का काम कर रही है।
आम आदमी पार्टी के उपाध्यक्ष वदूद आलम ने बताया कि रासायनिक उर्वरकों का आबंटन केंद्रीय उर्वरक मंत्रालय द्वारा कराया जाता है। दुर्भाग्यजनक है देश में मोदी सरकार बनने के बाद राज्यों को उर्वरक सप्लाई करने में लगातार कोताही बरती जा रही है, यह स्थिति छत्तीसगढ ही नहीं पूरे देश में है। देश के किसी भी राज्य में मोदी सरकार उर्वरकों की आपूर्ति नहीं कर पा रही है।
धान की बोनी को लेकर इतना रखा गया लक्ष्य
छत्तीसगढ़ सरकार के आंकड़ों की बात करें तो इस साल 1.23 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में धान की बोनी का लक्ष्य रखा गया है। इसके लिए कृषि विभाग ने मार्कफेड और बीज विकास निगम के माध्यम से जिले की 86 सहकारी समितियों में खाद और बीच का भंडारण कराया गया है। मानसून के आते ही किसानों ने धान की बोनी शुरू कर दी है। इतना इंतजाम होने के बाद भी किसानों को खाद और बीज के संकट का सामना करना पड़ रहा है।
2525 मीट्रिक टन फास्फेट का हो चुका है वितरण
दुर्ग जिले में खरीफ की फसल के लिए कुल 37 हजार 700 मीट्रिक टन खाद के भंडारण का लक्ष्य रखा गया है। इसमें 15 हजार 800 मीट्रिक टन यूरिया, 7400 मीट्रिक टन सुपर फास्फेट, 9300 मीट्रिक टन डीएपी, 1600 मीट्रिक टन इफ्को और 3600 मीट्रिक टन पोटाश शामिल है। दिए गए लक्ष्य के अनुपात में भंडारित किए गए 13074 मीट्रिक टन यूरिया खाद में से 10192 मीट्रिक टन का वितरण हो चुका है। इसी तरह 2975 मीट्रिक टन फास्फेट में से 2525 मीट्रिक टन का वितरण हो चुका।
20 समितियों में ही डीएपी का स्टॉक
4917 मीट्रिक टन डीएपी में से 4722 मीट्रिक टन का उठाव हो चुका है। वर्तमान में 145 मीट्रिक टन डीएपी खाद ही बचा हुआ है. दुर्ग जिले में बोनी के समय में किसानों में खाद और बीज की भारी डिमांड है। ऐसे में जिले की 86 में से मात्र 20 समितियों में ही डीएपी का स्टॉक है। किसानों के मुताबिक समितियों से उन्हें स्वर्णा धान का बीज नहीं मिल पा रहा है। फसल पिछड़े न इसके लिए वह 1001, 1010, मौखरी, आईआर 36, महामाया, राजेश्वरी, क्रांति जैसे दूसरे धान के बीच की मांग कर रहे हैं, लेकिन समिति में किसी भी किस्म के धान का बीज नहीं है।
ये है खाद मिलने का आंकड़ा
अप्रैल , मई और जून 2022 में राज्य को यूरिया की कुल आपूर्ति 3.29 लाख टन होनी थी, लेकिन केवल 2.20 लाख टन यूरिया ही प्राप्त हुआ है।
डीएपी मिलना था 1.80 लाख टन मिला केवल 73.22 हजार टन।
राज्य सरकार ने केंद्र से खरीफ के लिए लगभग 13.70 लाख मीट्रिक टन विभिन्न रासायनिक खादों को राज्य को आपूर्ति करने की मांग की थी।
यूरिया 6.50 लाख टन डीएपी 3 लाख टन, पोटाश 80 हजार टन एनपीके 1.10 लाख टन एवं सुपर फास्फेट 2.30 लाख टन शामिल है।
यूरिया की उपलब्धता खरीफ के लक्ष्य के विरूद्ध 62 प्रतिशत है।
एनपीके की उपलब्धता खरीफ के लक्ष्य के विरूद्ध 30 प्रतिशत है।
डीएपी की उपलब्धता 39 प्रतिशत है।
पोटाश की उपलब्धता 35 प्रतिशत (Fertilizer Crisis) है।