प्रेम शर्मा। Farmers Budget : केेन्द्र की सरकार लगातार किसानों के हितों पर बॉत कर रही है। सरकार यह दावा कर चुकी है कि किसानों की आय 2022 तक दोगूनी करनी है। ऐसे में उत्तर प्रदेश के बलरामपुर में आयोजित सरयू नहर नेशनल प्रोजेक्ट के उद्घाटन के दौरान प्रधानमंत्री के जीरो बजट फार्मिक को धरातल में उतरने की जरूरत है। देश का किसान वाकई बहुत परेशान है। तेजी से घटती भूमि, महंगी खाद, मौसम की मार और उत्पादन का बेहतर मूल्य न मिल पाने से कर्जदार और भूखमारी का शिकार हो रहा अन्नदाता प्रति वर्ष सैकड़ों की संख्या में आत्महत्या कर रहा हैं उत्तर प्रदेश के बलरामपुर में थे।
यहां पर उन्होंने सरयू नहर नेशनल प्रोजेक्ट का उद्घाटन किया. इस प्रोजेक्ट से 30 लाख किसानों को फायदा होगा और राज्य के 9 जिलों में सिंचाई के लिए पानी की व्यवस्था हो जाएगी. इस मौके पर अपने संबोधन में पीएम मोदी ने किसानों के लिए शुरू की गई तमाम योजनाओं का जिक्र किया और कहा कि देश के किसान दिनरात मेहनत कर हर क्षेत्र में उत्पादन बढ़ा रहे हैं। जनसभा को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि 16 दिसंबर को सरकार प्राकृतिक खेती पर एक बहुत बड़ा आयोजन करने जा रही है। प्रधानमंत्री के मुताबिक प्राकृतिक खेती या जीरो बजट फार्मिंग से हमारी धरती मां भी बचती हैं। पानी भी बचता है और उत्पादन भी पहले से ज्यादा होता है। उन्होंने किसानों से अपील की कि वे प्राकृतिक खेती पर आयोजित होने वाले कार्यक्रम से जुड़े और मुझे पूरा यकीन है कि उसे देखने के बाद वे अपने खेत में इसे करने के लिए प्रोत्साहित होंगे।
जीरो बजट प्राकृतिक खेती करने का एक तरीका है जिसमें बिना किसी लागत के खेती की जाती है. कुल मिलाकर कहें तो यह पूरी तरह से प्राकृतिक खेती हैं। निश्चित ही वक्त और जरूरत के हिसाब से जीरो बजट फार्मिग किसानों के लिए बेहतर विकल्प है पर इसे यर्थाथ के धरातल में उतराने के लिए सरकार को अंतिमपायदान तक स्वंय मेहनत करनी होगी। एक तरफ जहॉ देश कई अन्य समस्याओं से जुझ रहा है। आपदॉए और मौसम की ऑख मिचैली किसानों के लिए सिरदर्द बनी है।
उत्तर प्रदेश में छुट्टा जानवरों और नीलगाय से किसान परेशान है, उस स्थिति में सरकार को जीरो बजट फार्मिग को धरातल में उतारने के लिए जीरो से ही प्रयास करना होगा। किसानों की दुर्दशा की बॉत करे तो महाराष्ट्र में 2017 में 2426, 2018 में 2239 और 2019 में 2680 किसानों ने आत्महत्या और कर्नाटक में 2017 में 1157, 2018 में 1365 और 2019 में 1331 किसानों की आत्महत्या के केस सामने आए थे। आंध्र प्रदेश देश का ऐसा राज्य हैं जहां साल 2018 के मुकाबले 2019 में किसानों की आत्महत्या के मामले दोगुने हो गए थे।
वैसे तो जीरो बजट (Farmers Budget) प्राकृतिक खेती बाहर से किसी भी उत्पाद का कृषि में निवेश को खारिज करता है। जीरो बजट प्राकृतिक खेती में देशी गाय के गोबर एवं गौमूत्र का उपयोग करते हैं। इस विधि से 30 एकड़ जमीन पर खेती के लिए मात्र 1 देशी गाय के गोबर और गोमूत्र की आवश्यकता होती है। जीरो बजट फार्मिंग में गौपालन का भी विशेष महत्व है। क्योंकि देशी प्रजाति के गौवंश के गोबर तथा गोमूत्र से जीवामृत, घन जीवामृत, जामन बीजामृत बनाया जाता है।
इनका खेत में उपयोग करने से मिट्टी में पोषक तत्वों की वृद्धि के साथ-साथ जैविक ‘गतिविधियों का विस्तार होता है।जीवामृत का उपयोग सिंचाई के साथ या एक से दो बार खेत में छिड़काव किया जा सकता है। जबकि बीजामृत का इस्तेमाल बीजों को उपचारित करने में किया जाता है। जीरो बजट प्राकृतिक खेती में हाइब्रिड बीज का उपयोग नहीं किया जाता है। इसके स्थान पर पारस्परिक देशी उन्नतशील प्रजातियों का प्रयोग किया जाता है। इस विधि से खेती करने से किसान को बाजार से खाद एवं उर्वरक, कीटनाशक तथा बीज खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती है। जिससे उत्पादन की लागत शून्य रहती है।
एकल कृषि पद्धति को छोड़कर बहुफसली की खेती करते हैं। यानि एक बार में एक फसल न उगाकर उसके साथ कई फसल उगाते हैं। जीरो बजट प्राकृतिक खेती को करने के लिये 4 तकनीकों का प्रयोग खेती करने के दौरान किया जाता है। जीरो बजट (Farmers Budget) नेचुरल फार्मिंग मूल रूप से महाराष्ट्र के एक किसान सुभाष पालेकर द्वारा विकसित रसायन मुक्त कृषि का एक रूप है। यह विधि कृषि की पारंपरिक भारतीय प्रथाओं पर आधारित है। अब आंध्र प्रदेश और हिमाचल इसका प्रयास किया जा रहा है।
इस विधि में कृषि लागत जैसे कि उर्वरक, कीटनाशक और गहन सिंचाई की कोई आवश्यकता नहीं होती है। इस विधि के तहत चाहे किसी भी फसल का उत्पादन किया जाए उसकी लागत मूल्य जीरो होनी चाहिये।कृषि कार्य हेतु आवश्यक सभी संसाधन घर में ही उपलब्ध होने चाहिये। वर्ष 2015 में शुरू किये गए कुछ पायलट कार्यक्रमों की सफलता से प्राप्त अनुभवों को आंध्र प्रदेश में व्यवहार में लाया गया जिसका परिणाम यह हुआ कि यह जेडबीएनएफ नीति को लागू करने वाला देश का पहला राज्य बन गया। जेडबीएनएफ नीति को लागू करने वाली एजेंसी रिथु स्वाधिकार द्वारा प्रदत्त जानकारी के अनुसार, इस कार्यक्रम को विभिन्न चरणों में क्रियान्वित किया जाएगा।
प्रत्येक मंडल में कम-से-कम एक पंचायत को इस नई विधि में स्थानांतरित करने की दिशा में काम किया जाएगा। 2021-22 तक इस कार्यक्रम का प्रसार राज्य की प्रत्येक पंचायत में करने की योजना है, ताकि 2024 तक पूर्ण कवरेज के साथ इसे लागू किया जा सके। बहरहाल किसानों के हित में अगर विभिन्न प्रकार की सब्सिडी को रोककर भी अगर सरकार जीरो बजट फार्गिग को शुन्य से शुरूआत कर एक दो दो वर्षो में 90 प्रतिशत किसानों को जोडऩे में सफल हो जाती है तो इसे कृषि क्रांति का स्वर्णिम युग माना जाएगा।