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संपादकीय: फडणवीस को महाराष्ट्र की कमान

Fadnavis gets command of Maharashtra

Fadnavis gets command of Maharashtra

Fadnavis gets command of Maharashtra: महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के परिणाम घोषित होने के 12 दिनों बाद अंतत: पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस को ही महाराष्ट्र की कमान सौंप दी गई। वैसे तो महाराष्ट्र में भाजपा के नेतृत्व वाले महायुति गठबंधन को बहुमत मिलने पर देवेन्द्र फडणवीस का ही मुख्यमंत्री बनना तय था।

महाराष्ट्र में सबसे में ज्यादा 132 सीटें मिली और वह सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी तो देवेन्द्र फडणवीस का मुख्यमंत्री बनना पूरी तरह से सुनिश्चित हो गया। इसके बावजूद उनके नाम की अधिकृत घोषणा होने में 12 दिन का समय इसलिए लग गया कि पूर्व मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ही मुख्यमंत्री बनने के सपने देखने लगे।

हालांकि उन्होंने चुनाव के पूर्व ही देवेन्द्र फडणवीस के मुख्यमंत्री बनाये जाने पर अपनी सहमति दे दी थी लेकिन चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद शिवसेना की दूसरी सबसे पार्टी बनने पर उनके में मन में मुख्यमंत्री बनने की लालसा जाग गई। नतीजतन महाराष्ट्र के नये मुख्यमंत्री के चयन में पेच फंस गया। एकनाथ शिंदे अचानक गांव चले गये। फिर उनकी तबीयत खराब हो गई।

जिसकी वजह से मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा होने में विलंब हुआ और मुख्यमंत्री पद को लेकर तरह तरह की अटकलें भी लगने लगी। अंतत: एकनाथ शिंदे देवेन्द्र फणडवीस के नाम पर सहमत हो गये। दरअसल महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में इस बार सबसे ज्यादा 168 मराठा विधायक चुने गये है। इसलिए देवेन्द्र फडणवीस जैसे गैर मराठा नेता का मुख्यमंत्री बनना आसान नहीं था। भाजपा हाईकमान ने देवेन्द्र फडणवीस को ही यह जिम्मेदारी सौंपी थी कि वे दोनों मराठा नेताओं एकनाथ शिंदे और अजीत पवार को मनाये ताकि मराठाओं में असंतोष न फैले।

अजीत पवार को नाराज ही नहीं हुए थे और वे फिर से उपमुख्यमंत्री बनने के लिए अपनी सहमति दे चुके थे। किन्तु एकनाथ शिंदे नाराज हो गये थे। आखिरकार उनकी भी नाराजगी दूर कर दी गई। इसके लिए देवेन्द्र फडणवीस को काफी मशक्कत करनी पड़ी। देेवेन्द्र फणडवीस की राह असान नहीं थी। यह अलग बात है कि भाजपा हाईकमान और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की वे पहली पसंद थे किन्तु उनका गैर मराठा होना उनके लिए माईनस प्वांइट बन गया था।

यही वजह है कि उनके सीएम बनने में 12 दिनों का समय लग गया। अब उन्होंने तीसरी बार महाराष्ट्र की कमान संभाल ली है। देवेन्द्र फडणवीस 2014 में पहली बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने थे। और उनके नेतृत्व में भाजपा व शिवसेना के गठबंधन वाली सरकार ने अपने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया था।

इस दौरान महाराष्ट्र का चुहुमूखी विकास भी हुआ था। इसलिए 2019 के विधानसभा चुनाव में भी महाराष्ट्र के मतदाताओं ने भाजपा और शिवेसना के गठबंधन की ही सरकार बनाने के लिए जनादेश दिया था। लेकिन शिवसेना के अध्यक्ष उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बनने की जिद पर अड़ गये और एक नाटकीय घटनाक्रम के बाद देवेन्द्र फडणवीस ने अजीत पवार के समर्थन से अपनी सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया। और मुख्यमंत्री पद की सपथ ले ली। उनके साथ अजीत पवार ने उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली लेकिन इस बीच महाराष्ट्र की राजनीति में शरद पवार ने बड़ा खेला कर दिया। उन्होंने अजीत पवार को वापस अपने खेमे बुला लिया।

मात्र 80 घंटे के भीतर देवेन्द्र फडणवीस मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ गया। इसके बाद शरद पवार ने 2 विपरीत धु्रवों का ेमिलाते हुए शिवसेना और कांग्रेस में समझौता करा दिया और महाअघाड़ी गठबंधन की सरकार बन गई। इस तरह उद्धव ठाकरे के मुख्यमंत्री बनने का चिर प्रतिक्षित सपना साकार हो गया था। उस समय देवेन्द्र फडणवीस ने एक शेर पढा़ था कि – मेरा पानी उतरता देखकर किनारे पर घर मत बना लेना मैं समंदर एक दिन लौटकर आउंगा।

आखिरकार वे लौटकर आ ही गये। देवेन्द्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री पद की शपथी भी ले ली है और अब वे अपनी तीसरी पारी शुरू करने जा रहे है। उनके सामने चुनौतियों का लंबा सिलसिला है। खासतौर पर पूर्व मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को मनाकर रखना उनके लिए बड़ी समस्या होगी। गौरतलब है कि ये वही एकनाथ शिंदे है जिन्होंने अपनी मात्र संस्था शिवसेना के साथ बगावत की थी और शिवसेना पर काबिज हो गये है। ऐसे में वे भरोसे के लायक कतई नहीं है। हालांकि भाजपा को महाराष्ट्र में 132 सीटें मिली है और उसे अजित पवार की पार्टी का समर्थन प्राप्त है।

ऐसे में यदि एकनाथ शिंदे बगावती रूख अख्तियार भी करते है तो भी देवेन्द्र फडणवीस की सरकार के लिए कोई ,खतरा पैदा नहीं होगा। लेकिन उनके अलग होने से महाराष्ट्र में खासतौर पर मराठाओं के बीच गलत संदेश जायेगा इसलिए एकनाथ शिंदे को राजी रखना होगा। उम्मीद की जानी चाहिए कि देवेन्द्र फडणवीस महायुति गठबंधन में सामंजस्य बनाकर रखने में सफल होंगे और उनके नेतृत्व में महायुति की सरकार अपने पांच साल का कार्यकाल सफलतापूर्वक पूरा करेगी।

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