डॉ. श्रीनाथ सहाय। Election Results : पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजे आ चुके हैं। चार राज्यों में बीजेपी और पंजाब में आम आदमी पार्टी ने विजय पताका फहराई है। यूपी का मुकाबला बेहद कांटे का माना जा रहा था। लेकिन 2017 की तर्ज पर जनादेश भाजपा के पक्ष में रहा है। बीजेपी ने सहयोगी दलों के साथ 274 सीटें जीती हैं। यह स्पष्ट बहुमत से भी ज्यादा है।
संपूर्णानंद और 1985 में नारायण दत्त तिवारी के बाद योगी आदित्यनाथ उप्र के तीसरे मुख्यमंत्री हैं, जिन्हें लगातार दूसरी बार जनादेश मिला है। भाजपा ने उप्र के साथ-साथ उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में भी सरकारें रिपीट करने लायक जनादेश हासिल किया है, लिहाजा जनादेश को ‘भगवा’ करार दिया है। ये चुनाव परिणाम कहीं न कहीं मोदी के कांग्रेस मुक्त भारत के जुमले को हकीकत में बदलते नजर आये हैं।
मोदी व केंद्र सरकार के भविष्य के लिये निर्णायक माने जा रहे उत्तर प्रदेश में अपनी पूरी ताकत झोंकने के बाद भाजपा ने मनमाफिक परिणाम पाया है। जनता ने योगी की झोली फिर पांच साल के लिये भर दी है। साथ ही देश के सबसे बड़े राज्य ने 2024 के लिये मोदी की उम्मीदों को नई परवाज दी है। इसी तरह उत्तराखंड में तमाम मिथकों को किनारे कर भाजपा की वापसी हुई है, लेकिन एक बार फिर मौजूदा मुख्यमंत्री चुनाव हारा है।
बहरहाल, इस छोटे पर्वतीय राज्य में राजनीतिक अस्थिरता की आशंकाएं खत्म हुई हैं। वहीं कांग्रेसी दिग्गज हरीश रावत के राजनीतिक भविष्य पर विराम चिन्ह लग गया है। कांग्रेस के पास उत्तराखंड में बड़े-बड़े नेता तो हैं, लेकिन जमीन पर पार्टी की मौजूदगी नहीं हैं। कितने बूथों पर तो उसके एजेंट भी नहीं रहे. कांग्रेस की जो पूरे देश में हालत है, कमोबेश वही हालत अब उत्तराखंड में भी है. राष्ट्रीय स्तर पर देखें, तो कांग्रेस के पास कई वर्षों से कोई अध्यक्ष नहीं है।
इसका मतलब है कि उसके संगठन का ढांचा बिल्कुल जर्जर हो चुका है, बल्कि कहीं-कहीं तो वह है ही नहीं। उतराखंड में उनकी जो स्थिति रही है, उसको वे सही से पहचान नहीं पाये, जबकि इसके विपरीत भारतीय जनता पार्टी के पास यहां जमीनी स्तर पर एक मजबूत सांगठनिक ढांचा है।
कमोबेश, गोवा व मणिपुर में भी भाजपा के मनमाफिक हुआ है। गांवा में हालांकि, यह उम्मीद जरूर की जा रही थी कि विधानसभा चुनाव में भाजपा अच्छा करेगी, क्योंकि इससे पूर्व वह पंचायत चुनाव में अच्छा प्रदर्शन कर चुकी है। पर आप और टीएमसी के आ जाने से लगा था कि यह समीकरण कुछ बदल सकता है। मनोहर पर्रिकर के गुजरने के बाद जब प्रमोद सावंत गोवा के मुख्यमंत्री बने, तब भाजपा के भीतर उनका उस तरह का कद नहीं था जैसा पर्रिकर का था।
पार्टी के अंदर भी उनको बहुत ज्यादा पसंद नहीं किया जा रहा था। लेकिन कह सकते हैं कि वे कैडर के आदमी थे और भाजपा का झुकाव कैडर के लोगों की तरफ होता है। हो सकता है मनोहर पर्रिकर ने भी अपने बाद मुख्यमंत्री के लिए पहले उनका नाम सुझाया हो।
उत्तराखंड के हिमालय से मणिपुर के पहाड़ों तक तथा समुद्रतट पर गोवा तक कामयाबी से भाजपा प्रफुल्लित है। मगर पंजाब के नतीजों ने आम आदमी पार्टी को नई ताकत और अरविंद केजरीवाल के राष्ट्रीय कद को नई ऊंचाई दी है। जैसा कि मतदान के बाद के सर्वेक्षणों में कहा जा रहा था कि पंजाब में आप की सरकार बन रही है, वैसा ही हुआ। लेकिन कामयाबी का संख्याबल इतना बड़ा होगा, इसका अनुमान चुनाव पंडितों को भी नहीं रहा होगा। वर्तमान व निवर्तमान मुख्यमंत्रियों को पंजाब के जनमानस ने जिस तरह सिरे से खारिज किया, उससे साफ है कि जनता बदलाव का मन बना चुकी थी।
कांग्रेस में सत्ता संघर्ष का जैसा विद्रूप सामने आया उसने जागरूक पंजाबी मतदाताओं को बदलाव के लिये बाध्य किया। सही मायने में पंजाब के जागरूक मतदाता वर्ग ने परंपरागत राजनीतिक दलों को सिरे से खारिज कर दिया। कांग्रेस की अंदरूनी कलह ने पंजाब के संवेदनशील मतदाता को खासा खिन्न किया। महत्वाकांक्षाओं के आत्मघाती कदम ने कांग्रेस को कहीं का नहीं छोड़ा। तमाम विज्ञापनबाजी, आसमान से तारे तोड़ लाने के वायदे तथा मुफ्त के तमाम वायदों से भी नाराज मतदाताओं का मन नहीं बदला।
जाहिर बात है कि देश के आम मिजाज से अलग (Election Results) प्रतिक्रिया देने वाले पंजाब का जनमानस देश के परंपरागत राजनीति दलों से लंबे समय से खिन्न चला आ रहा था। एक-आध बार के अपवाद को छोड़ दें तो वह हर पांच साल में बदलाव के पक्ष में फैसला देता रहा है। वर्ष 2014 में जब पूरे देश में मोदी लहर थी पंजाब के जनमानस ने आप को सार्थक प्रतिसाद देकर अपने प्रतिक्रियावादी रवैये से अवगत करा दिया था। यह स्पष्ट था कि पंजाब का मतदाता कांग्रेस को फिर से सत्ता में लौटाने के लिये बिल्कुल तैयार नहीं था। अकालियों की कारगुजारियां भी उसे रास नहीं आ रही थीं।
साल भर चले किसान आंदोलन का झंडा पंजाब के किसान व सामाजिक संगठनों ने उठाये रखा। केंद्र सरकार के प्रति उनकी नाराजगी तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को वापस लेने के बाद कम होने की कोई गुंजाइश नहीं थी। खेती संस्कृति में रचे-बसे पंजाब ने किसान आंदोलन में बड़ी कीमत चुकायी थी। उसके जख्म अभी हरे थे। ऐसे में भाजपा व कैप्टन अमरेंद्र के गठबंधन को वोट देने का तो सवाल ही नहीं था। वैसे भी भाजपा की नैया उसके सबसे पुराने सहयोगी अकाली दल के साथ ही पार उतरती रही है। ऐसे में आम आदमी पार्टी को आजमाने के लिये एक मौका देना मतदाताओं ने मुनासिब समझा।
प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री योगी के विकासवाद, महिला सशक्तीकरण, मुफ्त अनाज, पक्का मकान आदि इतने संवेदनशील और जनता को सीधा संबोधित करने वाले मुद्दे साबित हुए कि अंतिम जनादेश का रंग ‘भगवा’ हो गया। सरकार आम आदमी की दहलीज तक गई, कमोबेश उप्र में योगी आदित्यनाथ ने यह करके दिखाया, जिसका फायदा भाजपा को मिला। यह जनादेश विशुद्ध रूप से धर्म, जाति और संप्रदाय से हटकर ‘सामाजिक न्याय’ का भी है और सवर्णों का समर्थन भाजपा के ही पक्ष में गया। उनकी नाराजगी के कयास फालतू साबित हुए।
वहीं एक अहम बिन्दु महिला सुरक्षा का इस चुनाव में सामने आया है। भाजपा ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए जिस तरीके से काम किया है उससे महिलाओं का भाजपा पर विश्वास पुख्ता हुआ है। एक महिला के लिए सुरक्षा से बड़ी और कोई चीज नहीं होती है। महिलाएं भाजपा को एक ऐसे दल के रूप में देख रही हैं, जो उनकी सुरक्षा के लिए काम कर रही है। कुल मिलाकर, इन चुनावों का राष्ट्रीय राजनीति पर जो असर होगा वह यह कि अब महिलाओं की भागीदारी बढ़-चढ़कर दिखायी देगी।
बहरहाल यह जनादेश विराट (Election Results) और व्यापक है। इस विश्लेषण का आधार यह है कि विभिन्न राज्यों में हिंदू और सवर्णों के साथ-साथ दलित, ओबीसी, पिछड़े, आदिवासी, स्थानीय समुदायों और मुसलमानों ने भी भाजपा के पक्ष में जनादेश दिया है।