यशवंत धोटे
रायपुर/नवप्रदेश। उत्तरप्रदेश के राज्यपाल रहते मोतीलाल वोरा और हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल रहे गुलशेर अहमद 1993 के विधानसभा चुनाव में केन्द्रीय चुनाव आयोग के लपेटे में आ गए थे। मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन थे। गुलशेर अहमद को राज्यपाल का पद गंवाना पड़ा जबकि मोतीलाल वोरा जिला निर्वाचन अधिकारी की रिपोर्ट के आधार पर बाल -बाल बच गए थे।
दरअसल मामला यह था कि उस समय दोनों राज्यपाल के बेटे अविभाजित मध्यप्रदेश की क्रमश: दुर्ग से अरूण वोरा और सतना से सईद अहमद विधानसभा सीट से कांग्रेस के प्रत्याशी थे। जैसा कि अभी दशहरा, दिवाली, चुनाव और चुनाव आचार संहिता एक साथ चल रहे, कमोवेश वैसा ही हाल नवंबर 1993 में था।
दोनों ही राज्यों के राज्यपाल दीपावली के अवसर पर अपने-अपने गृहनगर दिवाली मनाने आए थे। हालंाकि दुर्ग के उस समय के जिला निर्वाचन अधिकारी रहे बसन्तप्रताप सिंह ने वोरा को टेलीफ ोन पर ही आगाह किया था आप संवैधानिक पद पर है संभव हो तो न ही आए तो ठीक रहेगा। लेकिन वोरा का कहना था मैं दीपावली पर हर साल जब अपने घर जाता हंू तो इस बार भी जांउगा।
तब बसन्त प्रताप सिंह ने उनसे कहा था कि यदि आप आ ही रहे हैं तो घर से बाहर न निकलिएगा। 1993 में अरूण वोरा का पहला चुनाव था। वोरा दुर्ग आए त्योहार मनाया अपने लोगों से मेल-मिलाप कर वापस लखनउ चले गए। कुछ इसी तरह का घटनाक्रम सतना में घट रहा था। उस समय के हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल गुलशेर अहमद सतना अपने गृहनगर आए थे उनके बेटे सईद अहमद सतना विस सीट से कांग्रेस के प्रत्याशी थे उनका भी यह पहला चुनाव था।
लेकिन गुलशेर अहमद उनके बेटे के चुनाव प्रचार में पहुंचे, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अर्जुन सिंह का स्वागत करने पहुंच गए और यह तस्वीर सतना के किसी अखबार में छप गई। इसी तस्वीर के आधार पर भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने चुनाव आयोग में शिकायत की। जांच हुई और सही पाए जाने पर केन्द्रीय चुनाव आयोग ने न केवल सतना का चुनाव रद्द किया बल्कि राज्यपाल गुलशेर अहमद के बर्खास्तगी की सिफ ारिश राष्ट्रपति से की।
मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषण के कड़े रवैय्ये के चलते गुलशेर अहमद को राज्यपाल का पद छोडऩा पड़ा। जिस दिन 26 नवंबर 1993 को गुलशेर अहमद का इस्तीफा हुआ उसी दिन दिल्ली में भाजपा के वरिष्ठ नेताओं का प्रतिनिधि मंडल दिल्ली में मुख्य चुनाव आयुक्त से मिला और शिकायत यह की गई कि इसी तरह का मामला दुर्ग में भी हुआ है। उस शिकायत के मुताबिक उत्तरप्रदेश के राज्यपाल रहे मोतीलाल वोरा ने दुर्ग में अपने बेटे अरूण वोरा के लिए प्रचार किया है। उनके खिलाफ भी कार्रवाई की जाए।
इस प्रतिनिधि मंडल में वरिष्ठ भाजपा नेता अटल बिहारी बाजपेई, मुरली मनोहर जोशी, लालकृष्ण आडवानी, प्रमोद महाजन के अलावा और भी नेता थे। इन नेताओं ने जो शिकायत आयोग को की थी वहीं पत्रकारों को भी बताई। चुनाव आयोग से फेक्स दुर्ग के निर्वाचन कार्यालय पंहुचता इससे पहले समाचार एजेंसी भाषा के प्रिन््टर पर फ्लेश -फ्लेश -फ्ेलश कर खबर चल गई। चूंकि मैं उस समय दुर्ग से निकलने वाले दैनिक अमर किरण अखबार के डेस्क पर काम करता था तो मेरी नजर इस फ्लेश पर पड़ी और मैंने जिला निर्वाचन अधिकारी बसंत प्रताप सिंह से फोन पर पूछा कि क्या आपके पास आयोग से इस मामले में अभी तक कोई निर्देश आए हैं।
इस पर उनका कहना है कि अभी तक कुछ आया नहीं है यदि आपके पास कोई जानकारी है तो हमें बताए। (बसंत प्रताप सिंह मध्यप्रदेश के चीफ सेक्रेटरी पद से रिटायर होकर अभी राज्य निर्वाचन आयुक्त हैं) तब मैंने उन्हें बताया कि भाषा के प्रिन्टर में खबर चल रही है कि वोरा जी के खिलाफ आयोग में शिकायत हुई है। हालांकि एकाध घंटे के अन्तराल में उनके पास भी फेक्स आ गया।
चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन का यह मामला इसलिए संवेदनशील था कि एक राज्य के राज्यपाल को इस्तीफ़ा देना पड़ा था और चुनाव रद्द हो गए थे। तब जिला निर्वाचन अधिकारी ने 24 घंटे अंदर आयोग को रिपोर्ट दी और वोरा जी का राज्यपाल पद जाते-जाते बच गया। रात 10 बजे के आसपास कार्यालय में ही चुनाव काम निपटाते समय टीवी पर जब बसन्त प्रताप सिंह की नजरें पड़ी तो पता चला कि आयोग ने वोरा को क्लीन चीट दे दी।
टीवी न्यूज के खत्म होते ही फि र मोतीलाल वोरा ने बसन्त प्रताप सिंह को फ़ोन कर धन्यवाद कहा। हालांकि आप जब मुझे आने से रोक रहे थे तब मुझे बुरा लगा था लेकिन आप मेरे शुभ चिन्तक निकले इसलिए धन्यवाद। दरअसल 1992 के बाबरी विध्वंस के बाद भाजपा की चार सरकारें बर्खास्त हुई थी उसी के बाद हुए मध्यावधि चुनाव का घटनाक्रम ये है। उस समय उत्तर प्रदेश में भी राष्ट्रपति शासन लगा हुआ था।