कका के खिलाफ भतीजे को लड़ाने की तैयारी में बीजेपी!
यशवंत धोटे
रायपुर/नवप्रदेश। Durg Assembly Election 2023: राजनीति में प्रोफाइल और हाईप्रोफाइल का बड़ा महत्व है। राजधानी रायपुर के बाद दुर्ग संभाग की 20 में से 5 मंत्रियों वाली और एक-एक वर्तमान और पूर्व मुख्यमंत्री वाली विधानसभा सीट को हाइप्रोफाइल श्रेणी में रखा गया है। दरअसल दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों के अलावा अन्य दल और राजनीतिक संगठन चुनावी मोड में आ चुके हैं। अभी हम यहां पर हाइप्रोफाइल सीटों की बात कर रहेे हैं।
संभागवार बात करें तो दुर्ग संभाग की 20 सीटोंं में से पाटन, दुर्ग ग्रामीण, दुर्ग शहर, साजा, कवर्धा, डौंडीलोहारा, राजनांदगांाव और अहिवारा जैसी सीटों पर या तो मंत्री या मुख्यमंत्री या पूर्व मुख्यमंत्री मौजूदा विधायक के तौर पर प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। इस बार सबसे हाईप्रोफाइल सीट है दुर्ग जिले की पाटन विधानसभा सीट इस सीट से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कांग्रेस के प्रत्याशी होंगे और जैसे कि भाजपा इस सीट पर सासंद विजय बघेल को लड़ाने की तैयारी कर रही है।
उस हिसाब से यह प्रदेश की सबसे हाट सीट होगी। यहां चाचा भतीजे का अलावा पद के लिहाज से मुख्यमंत्री और सांसद तो आमने-सामने होगें। वहीं बघेल वर्सेस बघेल का एक नरेटिव भी सेट करने की कोशिश होगी। भाजपा ने इसलिए विजय बघेल को घोषणापत्र समिति का संयोजक बनाया है।
दुर्ग शहर, दुर्ग ग्रामीण व अहिवारा सीट :
इसी जिले की दूसरी, तीसरी और चौथी सीट क्रमश: दुर्ग ग्रामीण व दुर्ग शहर, भिलाई नगर अहिवारा हाइप्रोफाइल सीट मानी जा सकती है। दुर्ग शहर से अरूण वोरा तीसरी बार मैदान में होंगे। यह उनका 1993 के बाद से सातवां चुनाव होगा। एक बार जीतनेे के बाद लगातार तीन चुनाव हारे, फिर पांचवां और छठवां चुनाव जीते। अभी वेयर हाउंसिग कारपोरेशन के अध्यक्ष हंै और हाइप्रोफाईल इसलिए कि ये सीट कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे मोतीलाल वोरा की पारम्परिक सीट है और इस बार वोरा जी नहीं है दो साल पूर्व ही उनका निधन हुआ है।
वोरा जी की छत्रछाया के बिना पहली बार अरूण मैदान में होंगे। भाजपा से यहा इस बार नए चेहरे की तलाश हो रही हैं भाजपा का अपना अनुभव है कि वह इस सीट को लोप्रोफाइल मोड में जीतती रही है। जैसे 1998 में पहली बार हेमचंद यादव जैसे एक साधारण कार्यकर्ता ने अरूण वोरा को हरा दिया था और उसके बाद दो बार जीते। कमोबेश इस बार भी लोप्रोफ ाइल केंडिडेट की तलाश जारी है।
दुर्ग ग्रामीण विधानसभा :
दुर्ग ग्रामीण की सीट इसलिए हाइप्रोफाइल हो जाती है कि यहा से ताम्रध्वज साहू अभी प्रतिनिधत्व कर रहे हैं जो राज्य मंत्रिमंडल में कद्दावर मंत्री है। इससे पहले वे दुर्ग के इकलौते सांसद भी रहे है और वो भी तब जीते थे जब मोदी लहर उफान पर थी और भाजपा की नेता सरोज पांडे सामने थी। 2018 में तो वे मुख्यमंत्री की कुर्सी तक भी पंहुच ही गए थे लेकिन राजनीतिक समीकरण कुछ ऐसे बने कि उन्हें मौजूदा स्टेटस से संतोष करना पड़ा। यदि सब कुछ ठीक रहा तो वे इस बार फिर दुर्ग ग्रामीण की सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार होंगे। हालांकि 2018 के चुनाव में उनके सामने महिला बाल विकास मंत्री रमशीला साहू थी।
इस बार भाजपा यहा कुछ नया प्रयोग करना चाह रही है। इस सीट को इसलिए हाइप्रोफाईल माना जा रहा है कि 2018 में यहा से प्रतिमा चन्द्राकर को प्रत्याशी घोषित करने के बाद उनकी टिकिट काटकर ताम्रध्वज साहू को दी थी। हालांकि टिकिट कटने के बाद प्रतिमा चन्द्राकर को लोकसभा की टिकिट दी थी जो वे हार गई। 2008 के परिसीमन में बनी इस सीट पर किसी भी पार्टी का स्थाई कब्जा नहीं कह सकते। पहली बार यहां से प्रतिमा चन्दाकर विधायक चुनी गई।
2013 में भाजपा की रमशीला साहू ने उन्हें हराया और रमशीला साहू रमन मंत्रीमंडल में महिला बाल विकास मंत्री बनी। 2018 में उनकी टिकिट काटकर जागेश्वर साहू को दी गई उन्हें ताम्रध्वज साहू ने हरा दिया। पहली बार कांग्रेस ने यह सीट भारी मतों यानि 24 हजार वोटो से जीती जबकि इससे पहले कांग्रेस ने 1500 और भाजपा ने 2600 वोट से ये सीट जीती थी।
अहिवारा विधानसभा :
इसी तरह अहिवारा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है और यहा के विधायक गुरू रूद्रकुमार मंत्री हैं। इस सीट की खासबात यह है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल इस क्षेत्र में निवास करते हैं। और यहां के स्थानीय निकायों में कांग्रेस का कब्जा होने के बावजूद कांग्रेस इस सीट से जीत को लेकर आश्वस्त नहीं है। हालांकि भाजपा यहां लो प्रोफाइल प्रयोग करने की कोशिश में है। ये सीट भी 2008 के परिसीमन की उपज है।
भिलाई नगर विधानसभा :
इससे ज्यादा हाट सीट तो भिलाई नगर विधानसभा सीट है जहां से हर बार विधायक बदल जाता है। बी फार्म की गड़बड़ी की शिकार रही इस सीट से अभी देवेन्द्र यादव विधायक हैं वे 2018 में पहली बार लड़े और जीते हालांकि इससे पहले वे 4 साल महापौर रहे । इस सीट का दूसरा पक्ष ये है कि यहां भाजपा के कददवर नेता प्रेमप्रकाश पांडे चुनाव लड़ते पिछला चुनाव वे काफी करीबी मुकाबले यानि 2000 वोट से हारे। इस बार उनकी तैयारी तगड़ी है।
इस सीट का इतिहास रहा है कि हर बार यहा से विधायक बदल जाता है। 1993 में इस सीट के लिए विधायक रवि आर्या के नाम से बी फार्म आया था लेकिन बदरूददीन कुरैशी को टिकिट मिली और वे प्रेमप्रकाश पांडे से चुनाव हार गए। हालांकि 1990 के चुनाव में पहली बार प्रेमप्रकाश पाडेंय चुनाव जीते तो पटवा मंत्रीमंडल में मंत्री रहे। लेकिन 98 के चुनाव में वे बीडी कुरैशी से चुनाव हार गए। 2003 में जीते तो नवगठित राज्य की पहली भाजपा सरकार में विधानसभा के अध्यक्ष बने लेकिन 2008 में फिर हार गए । 2013 में जीते तो मंत्री बने लेकिन 2018 में फिर हार गए।
इस बार फिर दोनों देवेन्द्र यादव और प्रेमप्रकाश पंाडे के आमने सामने होने के आसार है। हालांकि देवेन्द्र ने यह सीट लोप्रोफाईल होकर जीती थी और इस बार भी लोप्रोफाईल जैसा ही कुछ है लेकिन भाजपा से प्रेमप्रकाश पांडेय की टिकिट फायलन होते ही यह सीट हाइप्रोफाईल हो जाना है। यह दुर्ग जिले की 6 में से 4 विधानसभा सीटों के हाई और लो प्रोफाईल हो जाने की तथा कथा है।