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80 साल के बुजुर्ग के केस में एक्सिस व सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया पर ठोका हर्जाना

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जिला उपभोक्ता फोरम, दुर्ग ने 6580 रुपए का लगाया हर्जाना

परिपक्वता राशि में से पैसे काटने व राशि तय तारीख के बाद बिना ब्याज देने का मामला

दुर्ग/नवप्रदेश। जिला उपभोक्ता फोरम, दुर्ग (distric consumer forum, durg) ने 80 वर्षीय बुजुर्ग (octogenarian) के परिवाद पर दो बैंकाें पर 6580 रुपए का हर्जाना (recompense) लगाया है। इनमें एक्सिस बैंक (axis bank) व सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया (central bank of india) शामिल हैं।  बुजुर्ग (octogenarian) के दो अलग-अलग परिवादों पर सुनवाई करते हुए फोरम के अध्यक्ष लवकेश प्रताप सिंह बघेल, सदस्य राजेन्द्र पाध्ये एवं लता चंद्राकर ने बैंकों पर हर्जाना लगाया।

एक्सिस बैंक का मामला

पहले परिवाद में 80 वर्षीय (octogenarian) उमाशंकर पटेरिया ने एक्सिस बैंक (axis bank) के खिलाफ शिकायत की। बताया कि उनके द्वारा दिनांक 8 अगस्त 2014 को आवर्ती जमा योजना के तहत खाता खोला गया। इसमें प्रतिमाह 20000 रुपये 24 माह तक उनके बचत खाते से डेबिट होकर आवर्ती जमा खाते में जमा होता रहा। परिपक्वता दिनांक 13 अगस्त 2016 को परिवादी को 532600 रुपये प्राप्त होने थे।

लेकिन बैंक ने इसमें से 2144 रुपये घटाकर 530546 रुपये का भुगतान किया। एवं परिपक्वता राशि का भुगतान 13 अगस्त की बजाय दिनांक 16 अगस्त 2016 को किया। 3 दिन की विलंबित अवधि का ब्याज भी परिवादी को नहीं मिला। लिहाजा उन्होंने घटाई गई राशि 2144 रुपये के साथ 3 दिन का ब्याज 436 रुपये एवं मानसिक क्षति तथा वाद व्यय दिलाने की प्रार्थना की थी।

परिवादी के पक्ष में फैसले की वजह

अनावेदक बैंक (axis bank) ने दलील दी कि परिवादी के बचत खाता में 2144 रुपये बतौर आयकर टीडीएस काटा गया है, लेकिन फोरम (district consumer forum, durg) ने पाया कि बैंक दस्तावेजों में इस साबित नहीं कर सका।

वहीं आरबीआई की गाइडलाइन के अनुसार बैंक जमाओं की परिपक्वता तिथि और उसके पश्चात की तिथि पर सार्वजनिक अवकाश होने की स्थिति में उपभोक्ता को अवकाश की तिथि का ब्याज दिया जाना है, लेकिन बैंक ने ऐसा नहीं किया।

सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया का मामला

दूसरे मामले में सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया (central bank of india) के खिलाफ परिवादी उमाशंकर पटेरिया की शिकायत यह थी कि उसने सेंट्रल बैंक में फिक्स डिपाजिट करवाया था जो दिनांक 24 दिसंबर 2016 को परिपक्व हुआ।

लेकिन कार्यालयीन अवकाश का अनुचित फायदा लेते हुए बैंक ने परिवादी को 2 दिन विलंब से राशि का भुगतान किया गया। जबकि उसे 2 दिन के विलंबित अवधि का ब्याज 59 रुपये अतिरिक्त प्राप्त होना चाहिए था, जो 25 माह बाद मिला।

परिवादी के पक्ष में फैसला इसलिए

बैंक ने कहा कि उसकी संपूर्ण शाखाएं पूर्णतः कंप्यूटराइज्ड हो चुकी हैं इसलिए ब्याज की गणना कंप्यूटर के माध्यम से होने से दखलअंदाजी नहीं होती। 15 फरवरी 2019 को परिवादी के खाते में 59 रुपये ट्रांसफर कर दिए गए हैं। लेकिन फोरम ने इसे खारिज कर दिया।

फोरम (district consumer forum, durg) ने कहा कि भले ही बैंक की शाखा पूर्णतः कंप्यूटराइज्ड है। पर परिवादी ने बार बार आवेदन देकर बैंक का ध्यानाकर्षण उसकी गलती की ओर कराया था। लिहाजा बैंक की जिम्मेदारी बनती थी कि वह तत्परतापूर्वक कार्रवाई करता, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। लिहाजा दोनों मामलों बैंक ने 6580 रुपए का हर्जाना (recompense) लगाया।

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