नीरज मनजीत। Destroyed Pakistan : हिमालय से भी ऊँची, सागर से भी गहरी, शहद से भी मीठी और फ़ौलाद से भी मज़बूत है हमारी दोस्ती” यह गर्वोक्ति थी चीन के विदेशमंत्री वांग यी की। आज से सात बरस पहले उन्होंने सीना फुलाकर इसे तब कहा था, जब एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उनसे पूछा गया कि चीन और पाकिस्तान की दोस्ती के मायने क्या हैं। इसके दो साल पहले भी वे ऐसा बड़बोलापन दिखा चुके थे। एक बयान में उन्होंने कहा था कि “अभी तो पाकिस्तान से हमारी दोस्ती की शुरुआत हुई है। देखते जाइए हम पाकिस्तान को एशिया का टाइगर बना देंगे।” एशिया का टाइगर से उनका मतलब था कि वे पाकिस्तान को कोरिया और जापान की तरह इंडस्ट्रियल हब बना देंगे। यह बड़बोलापन तब दिखाया गया था, जब शी जिनपिंग ने 2013 में महत्वाकांक्षी परियोजना ‘चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा’ (सीपेक) पर आधिकारिक तौर पर काम शुरू करवा दिया था।
इस परियोजना के तहत चीन के झिनजियांग प्रान्त के कशगर से बलूचिस्तान के ग्वादर बंदरगाह तक तीन हजार किमी लंबी हाई टेक सड़क और रेलवे ट्रैक का निर्माण किया जाना था। यह गलियारा पाक अधिकृत कश्मीर, गिलगित बाल्टिस्तान और बलूचिस्तान के अंदरूनी इलाकों से होते हुए ग्वादर तक जाता। 2030 में पूरी होने वाली इस परियोजना में चीन 46 बिलियन डॉलर की मोटी रकम खर्च करने वाला था। इस समझौते के बाद चीन चौगुना खुशी में था। पहली खुशी यह थी इस गलियारे से ग्वादर पोर्ट तक चीनी माल पहुँचाने में चीन को हर साल करोड़ों डॉलर की बचत होगी। दूसरी खुशी इस बात की थी कि पाकिस्तान अमेरिका के खेमे से निकलकर चीन की गोद बैठने के लिए बाख़ुशी राज़ी हो गया है।
तीसरी ख़ुशी थी कि पाकिस्तान के साथ मिलकर उसे भारत पर नाजायज़ दबाव डालने और भारत को घेरने की सहूलियत हासिल हो रही थी। चौथी ख़ुशी थी कि बलूचिस्तान की ज़मीन में दबे बेशक़ीमती मिनरल्स का चीन के कब्ज़े में आने का रास्ता खुल रहा था। पाकिस्तानी सदर इमरान खान, पाक आर्मी और आईएसआई की ख़ुशी का तो कोई पारावार ही नहीं था। अमेरिका और भारत के बीच बढ़ती रणनीतिक और कारोबारी नज़दीकियों से वैसे ही इनकी नींद उड़ी हुई थी। शीतयुद्ध के दौरान और उसके बाद अफग़़ानिस्तान में तालिबान और अमेरिका के बीच चल रहे युद्ध के दौरान पाक हुक्मरानों को वाशिंगटन से डॉलर और मिठाई के डिब्बे भेजे जाते थे। धीरे-धीरे ये डिब्बे मिलने बंद हो रहे थे। सीधी बात यह थी कि पाक हुक्मरानों को अमेरिका ने अपनी गोद से उतार दिया था।
पिछले 50 वर्षों से पाक हुक्मरान इस क़दर अमेरिका पर आश्रित रहे थे कि अपने पैरों पर खड़े होकर मुल्क चलाना उन्हें कभी आया ही नहीं। इसलिए चीन को मुल्क किराए पर देने में उन्हें कोई हिचकिचाहट नहीं हुई। पहले अमेरिका किरायेदार था, अब उसकी जगह चीन ले रहा था। भारत से सतत शत्रुता और भारत को सतत नुकसान पहुँचाने के इरादे से अंधे हुए पाक हुक्मरान देख नहीं पा रहे थे कि चीन इस मोटी रक़म का एक बड़ा हिस्सा कजऱ् के तौर पर दे रहा है। पाक हुक्मरानों को लग रहा था कि चीन को साथ लेकर वे धीरे-धीरे कश्मीर पर कब्ज़ा करने में कामयाब हो जाएंगे। यह विडंबना ही थी कि पाकिस्तान बनने के बाद से ही पाक हुक्मरान अपने मुल्क की तरक़्क़ी के बारे में न सोचकर सिफऱ् भारत को नीचा दिखाने और नुक़सान पहुँचाने की साजि़शें ही रचता रहे हैं।
चीन पाकिस्तान के समझौते के ठीक दस साल बाद अब हालत यह है कि ऊँची गहरी मीठी और मजबूत दोस्ती” के बीच दरारें लगातार चौड़ी होती जा रही हैं। आज के हालात के मद्देनजऱ चीनी विदेश मंत्री इस रिश्ते के सवाल पर मुँह छिपाते नजऱ आ रहे हैं। आर्थिक गलियारे का काम पूरी तरह रुक चुका है। चीन की कई बिलियन डॉलर की रक़म इस प्रोजेक्ट में फँसी हुई है। पाकिस्तान के अंदरूनी हालात और राजनीतिक अस्थिरता ऐसे मक़ाम पर है कि कोई नहीं जानता कि इस प्रोजेक्ट पर कब काम शुरू होगा। चीन के लिए यह भारी फि़क्र का सबब बन गया है। उससे न निगलते बन रहा है, न उगलते। दरअसल गोरिल्ला संगठन बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (बीएलए) शुरू से ही इस प्रोजेक्ट की खि़लाफ़त कर रही है।
वैसे तो बीएलए का गठन बलूचिस्तान को पाकिस्तान से आज़ाद कराने के लिए किया गया था और 1970 के बाद से ही बीएलए और पाक आर्मी के बीच संघर्ष शुरू हो गया था, मगर सन दो हजार के बाद से बीएलए ने हमलों की तासीर बढ़ा दी थी। पाक आर्मी भी कई दशकों से बलोचों पर भारी ज़ुल्म ढा रही है। बीएलए और बलूचिस्तान के बाशिंदे हर क़ीमत पर इस प्रोजेक्ट को धराशायी करना चाहते हैं। हाल के वर्षों में पाकिस्तान में काम कर रहे चीनी इंजीनियरों और कामगारों पर बीएलए ने कई आत्मघाती हमले किए हैं। पिछले दिनों कराची में बीएलए की एक महिला गोरिल्ला के आत्मघाती हमले से 11 चीनी नागरिकों की मौत हो गई थी।
इधर अफग़़ानिस्तान के आतंकी संगठन टीटीपी ने भी पाक आर्मी और हुक्मरानों की नाक में दम कर रखा है। जब से शाहबाज़ सरकार ने सत्ता संभाली है, तब से टीटीपी ने पाक आर्मी पर आत्मघाती हमले तेज कर दिए हैं। दरअसल शाहबाज़ शरीफ़ का झुकाव अमेरिका की तरफ़ है। अमेरिका ने हाल ही में टीटीपी से निबटने के लिए पाकिस्तान को 45 अरब डॉलर की मोटी रकम दी है। इस बात से टीटीपी और अफग़़ानिस्तान की तालिबान सरकार बुरी तरह चिढ़ी हुई है। हालत यह है कि शाहबाज़ सरकार और पाक आर्मी अमेरिका और चीन के बीच जारी रस्साकशी में बुरी तरह फँस चुकी है और पाकिस्तान की विदेश नीति धराशायी होने की कगार पर है। दिवालिया होते पाकिस्तान का खजाना ख़ाली है, विदेशी कारोबार ठप्प है और कोई भी देश उसे कजऱ् देने के लिए तैयार नहीं है।
नतीजतन महंगाई बेरोजगारी और जन असंतोष अपने चरम पर है। अब तो पाक अधिकृत कश्मीर के नागरिक भी साफ़ साफ़ कहने लगे हैं कि पाक हुक्मरानों ने सिफऱ् उनका शोषण ही किया है और बेहतर है कि हम भारत से जा मिलें। पाकिस्तान की इस हालत के लिए पाक हुक्मरान, पाक आर्मी और आईएसआई ही पूरी तरह जिम्मेदार है, जिन्होंने अंधे भारत विरोध के चलते पाकिस्तान को बरबादी के रास्ते पर डाल दिया है।
पाकिस्तान आज जिस दलदल में जा फँसा है, उसके लिए पाकिस्तान की मासूम जनता क़तई जिम्मेदार नहीं है। पाक हुक्मरानों ने जनता को इस क़दर भुलावे में रखा हुआ है कि वे सही रास्ता चुन ही नहीं पा रहे हैं। एक तरफ़ पाक आर्मी और आईएसआई के अफ़सर अरबपति होते जा रहे हैं, तो दूसरी तरफ़ जनता मुफ़लिस होती जा रही है। ऐसे में पाकिस्तान का अंजाम क्या होगा, इसका उत्तर भविष्य के गर्भ में है।