Debate in Parliament : भाजपा सांसद वरूण गांधी ने मुफ्त की रेवडिय़ां बंटे जाने के मुद्दे को लेकर संसद में बहस कराने की मांग को लेकर एकदम सहीं टिप्पणी की है। वरूण गांधी ने इस बारे में खरी खरी सुनाते हुए कहा है कि मुफ्त की रेवडिय़ां पर चर्चा कराने से पहले सांसदों को मिलने वाली पेंशन और अन्य सुविधाओं को बंद कराने के मुद्दे पर चर्चा की जानी चाहिए।
निश्चित रूप से उनकी यह मांग सही है। यह ठीक है कि सुप्रीम कोर्ट (Debate in Parliament) के दखल के बाद अब चुनाव आयोग और केन्द्र सरकार मुफ्तखोरी को बढ़ावा देने वाली घोषणाओं और योजनाओं पर रोक लगाने के लिए गंभीरता पूर्वक विचार कर रही है लेकिन इसके साथ ही सांसदों और विधायकों को दी जाने वाली पेंशन और अन्य सुविधाओं कों बंद करने पर भी चर्चा की जानी चाहिए। माननियों की पेंशन और अन्य सुविधाओं पर सरकार के खजाने पर हर माह करेाड़ों का भार पड़ता है।
एक ओर तो सरकार ने सेना में चार साल की नियुक्ति वाली योजना लागू की है ताकि उसे पेंशन न देना पड़े और सरकारी कर्मचारियों की भी पेंशन बंद कर दी गई है जो पूरे ३० साल तक सरकार की सेवा करते है तो फिर सिर्फ पांच साल के लिए सांसद या विधायक बनने वाले नेताओं को पेंशन क्यों दी जा रही है। न सिर्फ पेंशन दी जाती है बल्कि उन्हे और भी कई सुविधाएं प्रदान की जाती है इसलिए मुफ्त की रेवडिय़ां बंटे जाने वाली योजनाओं पर रोक लगाने की शुरूआत क्यों न माननीयों की पेंशन बंद कर के की जाएं।
गौरतलब है कि सांसद हो या विधायक इसमें से अधिकांश माननीय करोड़पति ही होते है क्योंकि किसी सामान्य व्यक्ति के लिए चुनाव में करोड़ों रूपए खर्च करना संभव नहीं है। जो पहले से ही धनाद्य है और जनप्रतिनिधि बनने के बाद और भी संपन्न हो जाते है उन्हे पेंशन देने का भला क्या तूक है। भाजपा सांसद वरूण गांधी बधाई के पात्र है जिन्होने माननीयों के पेंशन और अन्य सुविधाओं पर रोक लगाने की मांग उठाने का साहस दिखाया है।
अन्य सांसदों को भी दलगत भावना से ऊपर उठकर इस मांग का समर्थन करना चाहिए ताकि सरकार माननीयों को दी जाने वाली पेंंशन और अन्य सुविधाओं को बंद कर पाएं। किन्तु दिक्कत यह है कि इसके लिए माननीय ही तैयार नहीं होंगे। भला मुफ्त की सौगात कौन छोडऩा चाहेगा।
मजे की बात तो यह है कि जब भी माननीयों के वेतन (Debate in Parliament) भत्ते या पेंशन में वृद्धि करने का प्रस्ताव आता है तो सभी राजनीतिक पार्टियां एकमत से ऐसे प्रस्ताव का समर्थन कर देती है। ऐसे में उनसे यह उम्मीद करना बेमानी है कि वे अपनी पेंशन से हाथ धोने के लिए तैयार होंगे। सरकार को खुद होकर इस बारे में कारगर पहल करनी होगी।