दंतेवाड़ा/नवप्रदेश। दंतेवाड़ा (dantewada primary school) के प्राथमिक स्कूल की बेहद रोचक व चौंका देने वाली अपनी ही कहानी है। कक्षाएं उतनी ही हैं, जितनी की एक सामान्य प्राथमिक स्कूल (primary school) में होती है, यानी पहली से पांचवीं तक। शिक्षकों की कमी भी नहीं है।
इसके बावजूद भी तमाम ऐसे कारण व विसंगतियां मौजूद हैं जो इस स्कूल को सबसे जुदा बना देते हैं।
बात हो रही है दंतेवाड़ा (dantewada primary school) के कटेकल्यान ब्लॉक की लखारास ग्राम पंचायत के पंडेमपारा स्थित प्राथमिक स्कूल की।
यहां छह बच्चों को दो-दो शिक्षक (two teacher teaching six students) पढ़ा रहे हैं ।
जी हां, पांच कक्षाओंं के इस स्कूल में सिर्फ छह बच्चों का ही दाखिला हुआ है। तुर्रा ये कि छह के छह एक ही कक्षा वो भी पहली में दाखिल हैं।
चार कक्षाओं में न कोई पढ़ रहा न पढ़ाने की जरूरत
यानी अन्य चार कक्षाओं में न तो कोई बच्चा पढ़ रहा है और न ही पढ़ाने के लिए शिक्षकों की जरूरत ही है। लेकिन बड़ा आश्चर्य ये है कि इन छह बच्चों को पढ़ाने के लिए स्कूल में दो शिक्षक (two teacher teaching six students) नियुक्त हैं। इन शिक्षकों के नाम पंकज नेताम और जितेंद्र कुमार निषाद हैं।
स्कूल का भवन भी नहीं, लग रहा आंगनबाड़ी में
पंडेमपारा का स्कूल इसलिए भी खास है क्योंकि इसका अपना पूरी तरह बना भवन नहीं है। स्कूल के शिक्षक पंकज व जितेंद्र खुद इस बात को बताते हैं।
दोनों ने बताया कि आधा-अधूरा दिख रहा भवन स्कूल का है जो वर्षों से निर्माण कार्य पूरा होने की बांट जोह रहा है। स्कूल भवन के अभाव में अब छह ब’चों को गांव की आंगनबाड़ी में पढ़ाया जा रहा है।
एक ही भवन पर दो-दो बोर्ड
स्कूल भवन के अभाव में गांव की आंगनबाड़ी में आंगनबाड़ी के साथ ही स्कूल भी संचालित हो रहा है। एक ही भवन पर दो बोर्ड लगे हुये हैं।
एक स्कूल का व दूसरा आंगनबाड़ी का। स्कूल के बोर्ड में इसका डाइसकोड- 22161501203 भी लिखा गया है।
स्कूल से पांच गुना ज्यादा बच्चे आंगनवाड़ी में
स्कूल में जितने बच्चे पढ़ रहे हैं, उससे 5 गुना अधिक ब’चे ब’चे तो आंगनबाड़ी में दर्ज हैं। जिनकी संख्या 31 है।
ऐसे में लोगों कहना है कि प्रशासन को इस मामले पर संज्ञान लेत हुए स्कूल को या तो मर्ज कर देना चाहिए या फिर यहां बच्चों की उपस्थिति बढ़ाने केे लिए पर बड़े स्तर पर प्रयास करने चाहिए। पर फिलहाल ऐसा कुछ होता दिखाई नहीं दे रहा है।
ये है नियम
वर्ष 2009 में पारित शिक्षा का अधिकार कानून के मुताबिक प्राथमिक स्कूलों में छात्र शिक्षक अनुपात 30:1 होना चाहिए। जबिक उच्च प्राथिमक स्तर पर यह 35:1 अपेक्षित है। अमूमन इस अनुपात के आधार पर प्राथमिक स्कूलों में शिक्षकों की संख्या निर्धारित होती है।