नीरज मनजीत। Dangerous Pakistan : अमेरिका की तरफ पींगे बढ़ाते पाकिस्तान को राष्ट्रपति जो बाइडेन ने ऐसा झटका दिया है कि पाक आर्मी और आईएसआई के हाथों से तोते उड़ गए हैं। पाकिस्तानी प्रशासन और मीडिया में हाहाकार मचा हुआ है। किसी को वजह समझ में नहीं आ रही है। बाइडेन ने शुक्रवार को अपने एक बयान में कहा था कि एटमी ताक़त से लैस पाकिस्तान दुनिया का सर्वाधिक ख़तरनाक देश है। उन्होंने इसका कारण बताते हुए कहा कि पाकिस्तान की सरकार और आर्मी के बीच कतई तालमेल नहीं है, इसलिए पाकिस्तान के एटमी हथियार आतंकवादी संगठनों के हाथ लग सकते हैं।
उनका इशारा तालिबान आतंकियों (Dangerous Pakistan) की ओर भी था और भारत के खिलाफ साजिशें रचते आतंकियों की तरफ भी था, जिन्हें आर्मी और आईएसआई की खुली शह मिली हुई है। पिछले एक हफ़्ते में अमेरिका की ओर से पाकिस्तान को मिला दूसरा झटका है। पहला झटका बुधवार को तब मिला था जब बाइडेन प्रशासन ने अपने स्ट्रेटेजिक ड्राफ़्ट में भारत को हिन्द-प्रशांत इलाके में अपना सबसे बड़ा रणनीतिक साझेदार बताया था। इस ड्राफ़्ट में अमेरिका ने साफ़ तौर पर कहा है कि रूस की वॉर मशीन से निबटना और चीन के विस्तारवादी मंसूबों पर लगाम लगाना उसकी प्राथमिकताओं में है। ड्राफ़्ट में कहा गया है कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और दुनियाभर में लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं को मजबूत करके और उन्हें साथ लेकर ही रूस और चीन का प्रतिरोध किया जा सकता है।
दरअसल पाकिस्तान को लेकर बाइडेन प्रशासन के कुछ हालिया फैसलों से शाहबाज़ शरीफ़ प्रशासन और पाक आर्मी को लगने लगा था कि उन्होंने एक बार फि र अमेरिका को शीशे में उतारने में कामयाबी हासिल कर ली है। शाहबाज़ ने अप्रैल में पाकिस्तान की बागडोर संभाली थी और कुर्सी पर बैठते ही उन्होंने कहा था कि यदि अमेरिका पाकिस्तान को चीन के बराबर मदद देता है, तो वे अमेरिका की तरफ़ खड़े हो जाएंगे। आमतौर पर अंतरराष्ट्रीय राजनय में ऐसी खुली सौदेबाज़ी नहीं की जाती, पर शाहबाज़ तो अमेरिका की तरफ़ जाने के लिए इस क़दर लालायित थे कि वे कूटनीति के मेयार का ही ख़्याल नहीं रख पा रहे थे। अमेरिका ने उस वक़्त इस ऑफऱ पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं दी थी।
अकस्मात ही पिछले हफ्तों में आई कुछ खबरों ने वैश्विक कूटनीति के प्रेक्षकों को चौंका दिया। पाकिस्तान में जंग खा रहे एफ 16 लड़ाकू विमानों की मरम्मत के लिए बाइडेन प्रशासन ने 4500 करोड़ डॉलर की मोटी रकम देने की मंजूरी दे दी। तर्क दिया गया कि तालिबानी लड़ाकों का मुकाबला करने के लिए पाकिस्तान के हाथ मजबूत किए जा रहे हैं। हालाँकि यह बात किसी के गले नहीं उतरी।
भारत ने तो बाक़ायदा अमेरिका के इस क़दम पर कड़ा विरोध दर्ज कराया। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अमेरिका में एक प्रेस वार्ता में कहा कि अमेरिका का तर्क ग़ैरवाजिब है, क्योंकि सभी जानते हैं कि पाकिस्तान इस मदद का इस्तेमाल भारत के खि़लाफ़ ही करेगा। जयशंकर की बात ग़लत नहीं है, इसलिए कि हम इतिहास पर गौर करें, तो हर दफ़ा आईएसआई और आर्मी ने विदेशी इमदाद लेकर भारत के विरुद्ध ही साजि़शें रची हैं।
इसके बाद पाकी विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो और आर्मी चीफ कमर जावेद बाजवा के अमेरिका प्रवास पर उनका जैसा स्वागत किया गया, उससे शाहबाज़ प्रशासन की उम्मीदें आसमान छूने लगीं। उन्हें लगने लगा कि पाकिस्तान के पुराने दिन लौट आएँगे, जब शीतयुद्ध का दौर था और एशिया में शक्ति संतुलन के लिए वाशिंगटन पाकिस्तान को डॉलर और मिठाई के डिब्बे भेजता था। शाहबाज़ सरकार, आर्मी और आईएसआई को कतई उम्मीद नहीं थी कि यह ख़्वाब इतनी जल्दी टूट जाएगा।
दरअसल पाकिस्तान ने दोनों हाथों में लड्डू पकडऩे की कोशिश की थी और दुनिया ने देखा कि उसके दोनों हाथ ख़ाली हैं। चीन का दिया अधखाया लड्डू फि़लहाल उसके हाथ से गिर चुका है और अब अमेरिका की तरफ़ बढ़ा हाथ भी बाइडेन ने बुरी तरह झटक दिया है। शाहबाज़ सरकार की सोच शायद यह थी कि चीन तो वैसे ही पाकिस्तान में फँसा हुआ है, लगे हाथ क्यों न अमेरिका को भी पटा लिया जाए।
रूस यूक्रेन युद्ध के परिपेक्ष्य में जब भारत का थोड़ा सा झुकाव रूस की तरफ़ देखा गया, तो पाकिस्तान लगा कि भारत के प्रति अमेरिका का रुख बदल रहा है। शाहबाज़ इसका फ़ायदा उठाने की फिऱाक़ में थे। लेकिन दुनिया ने देखा कि अमेरिका के रुख में कोई बदलाव नहीं आया है। इसकी एक वजह और भी है। पिछले साल अमेरिका ने लोकतांत्रिक देशों का एक डिजिटल शिखर सम्मेलन बुलाया था। इस समिट में भारत को ख़ास तरज़ीह दी गई थी। तानाशाही और एकाधिकारवाद के मुकाबले वैश्विक लोकतंत्र को मजबूत करना समिट का मुख्य उद्देश्य था। स्पष्ट है कि वैश्विक समुदाय में लोकतंत्र के प्रति प्रतिबद्धता दृढ़ता से दिखाने के लिए भारत ही अमेरिका का प्रमुख साझेदार हो सकता है।
पिछले कई वर्षों से पाकिस्तान विफलता (Dangerous Pakistan) के नए रेकॉर्ड बना रहा है। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था टूट चुकी है। महंगाई चरम पर है। पाक में मौजूद आतंकी संगठनों पर लगाम नहीं लगा पाने की वजह से एफएटीएफ ने उसे ग्रे लिस्ट में डाल रखा है। कोई भी देश डूबती इकोनॉमी के वजह से मदद करने के लिए तैयार नहीं है। चीन ने भी आने हाथ खींच लिए हैं। सीपैक का काम रुकने से चीन के अरबों रुपये की रकम पाकिस्तान में फँसी हुई है। इस नाकामी के लिए हम पाकिस्तान की जनता को जिम्मेदार नहीं ठहरा रहे। इसके लिए पूरी तरह पाक आर्मी और आईएसआई ही जिम्मेदार है।