राजेश माहेश्वरी। Covid Vaccination : कोरोना महामारी को हराने के लिये टीकाकरण ने बड़ी भूमिका निभायी है। प्रधानमंत्री मोदी के जन्मदिन पर देश भर में ढाई करोड़ से ज्यादा लोगों को टीका लगाया गया। अब तक देश में 81 करोड़ से ज्यादा लोगों को बचाव का टीका लग चुका है। भारत जैसे विशाल आबादी वाले देश में ये आंकड़ा भले ही कम लग रहा हो, लेकिन विश्व परिदृश्य के हिसाब से भारत कई छोटे देशों की कुल आबादी से कई गुना ज्यादा टीकाकरण कर चुका है।
निस्संदेह देश की आधी से अधिक आबादी को कोरोना जैसी घातक बीमारी से बचाव के लिये टीकाकरण देश के स्वास्थ्य तंत्र और सरकार की बड़ी उपलब्धि है। वहीं दूसरी ओर तथ्य यह भी है कि देश की आबादी लगभग 135 करोड़ है। ऐसे में देश में दिसंबर तक वयस्क आबादी के पूर्ण टीकाकरण के लक्ष्य को हासिल करने के लिये अभियान में तेजी लाने की जरूरत से भी इंकार नहीं किया जा सकता। वहीं इस तथ्य से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि अभी उन्नीस करोड़ से अधिक लोगों को ही दोनों डोज लगी हैं।
ऐसे में यह प्रश्न स्वाभाविक है कि पहले और दूसरे टीके की संख्या में इतना अंतर क्यों है? क्या पहला टीका लगाना सरकार की प्राथमिकता में शामिल है? विशेषज्ञों के अनुसार संक्रमण की एक अन्य लहर को रोकने के लिए इस साल के अंत तक 60 फीसदी आबादी को वैक्सीन की दोनों खुराकें दी जानी आवश्यक हैं।
देश में 16 जनवरी को टीकाकरण अभियान (Covid Vaccination) की शुरुआत के बाद 10 करोड़ के आंकड़े पर पहुंचने में 85 दिन लगे थे, वहीं इस महीने की सात से 21 तारीख के बीच टीकाकरण का आंकड़ा 60 करोड़ से 81 करोड़ पर पहुंच गया। आंकड़ों के अनुसार 99 प्रतिशत स्वास्थ्यकर्मियों ने पहली डोज और 82 प्रतिशत स्वास्थ्यकर्मियों ने दोनों डोज ले ली है। इसके अलावा, 100 प्रतिशत फ्रंटलाइन वर्कर्स को पहली डोज जबकि 78 प्रतिशत को वैक्सीन को वैक्सीन की दोनों डोज दे दी गई है। भारत में पहले 10 करोड़ लोगों को वैक्सीन डोज देने में 85 दिन लगे थे।
10 से बीस करोड़ का आंकड़ा पार करने में 45 दिन और 20 से 30 करोड़ के आंकड़े तक पहुंचने में 29 दिन लगे. 30 करोड़ डोज के आंकड़े से 40 करोड़ तक पहुंचने में 24 दिन लगे। और 50 करोड़ डोज का आंकड़ा पार करने में 20 दिन लगे।. निस्संदेह, इक्यासी करोड़ लोगों को टीका लगाना हमारी बड़ी उपलब्धि है, लेकिन सार्वजनिक स्थलों में बढ़ती भीड़ व कोरोना से बचाव के उपायों के प्रति हमारी लापरवाही चिंता बढ़ाने वाली है। हम न भूलें कि केरल व महाराष्ट्र अभी दूसरी लहर के कहर से मुक्त नहीं हो पाये हैं। फिलहाल आने वाले संक्रमण के आधे से अधिक मामले इन राज्यों से आ रहे हैं।
इसमें दो राय नहीं कि भारत को समय रहते देश में तैयार व देश में विकसित टीका मिल गया। हम इसके लिये विकसित देशों के मोहताज नहीं रहे। महत्वपूर्ण यह भी कि वयस्कों को यह टीका मुफ्त लगाया गया। पहले टीकाकरण को लेकर आम लोगों में जिस तरह की उदासीनता और संकोच का भाव दिखता था, वह अब नहीं है और लोग तेजी से टीका लगवा रहे हैं। दूसरी लहर तक कुछ नेताओं के बरगलाने और तमाम भ्रांतियों के चलते लोग टीका लगवाने से संकोच कर रहे थे, पर अब ऐसा नहीं है। वर्तमान में टीकाकरण का काम तेजी से जारी है।
जो लोग पहले टीका लगवाने से भागते थे, उन्होंने देखा कि उनके आस-पास रहने वाले सभी पढ़े-लिखे लोग सपरिवार टीका लगा रहे हैं और किसी की मृत्यु भी कोविड से नहीं हो रही है, तो उन्होंने समझ लिया कि टीका लगवाने से कोई खास परेशानी नहीं होगी और वे भी टीका लगवाने के लिए प्रेरित हुए। आज प्रतिदिन लाखों की संख्या में लोग टीके लगवा रहे हैं। वर्तमान में सरकार के समक्ष टीके की आपूर्ति की समस्या है, न कि टीका लगवाने वालों को घर से निकालने की। हालांकि अभी निश्चिंत होने का समय नहीं है, क्योंकि खतरा अभी टला नहीं है।
विभिन्न राज्यों में कुछ न कुछ नए मामले सामने आ ही रहे हैं। केरल और महाराष्ट्र में भारी संख्या में प्रति दिन नए मामले सामने आ रहे हैं।
देश में वयस्क आबादी 94 करोड़ है, जिसे पूरी तरह टीकाकृत करने के लिए 188 करोड़ खुराक की आवश्यकता होगी। खास बात है कि सीरम इंस्टीट्यूट साल के शुरुआत में हर महीने 6.5 करोड़ कोविशील्ड की खुराक का उत्पादन कर रहा था, वह जून में 10 करोड़, अगस्त में 12 करोड़ पर पहुंच गया। उम्मीद है कि सितंबर में यह 20 करोड़ को भी पार कर जायेगा। इससे टीकाकरण की गति को तीव्र करने में सरकार को सहूलियत मिलेगी।
साथ ही दो अन्य टीकों- कोवैक्सीन (Covid Vaccination) और स्पूतनिक से भी अभियान को मजबूती मिल रही है। हालांकि, कुछ राज्यों में टीकाकरण अभियान बहुत धीमा है। अभी तक 18 प्रतिशत वयस्कों को ही दोनों खुराकें और 58 प्रतिशत को एक खुराक मिल सकी है। सार्थक यह है कि देश में कई अन्य टीके ट्रायल के अंतिम चरण में हैं। अच्छी बात यह भी है कि देश ने बच्चों के लिये जायडस-कैडिला की जायकोव-डी वैक्सीन विकसित कर ली है। हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि जिन बच्चों को हार्ट, लंग या लीवर जैसी गंभीर बीमारियों से जूझना पड़ा है, उन्हें ही पहले वैक्सीन दी जाये। आमतौर पर माना जाता है कि बच्चों में वयस्कों के मुकाबले रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है। बहरहाल, बारह से सत्रह साल के बच्चों को वैक्सीन अक्तूबर से देनी आरंभ की जायेगी।
विशेषज्ञ अक्तूबर में कोरोना की तीसरी लहर की आशंका जता रहे हैं। दरअसल, यह देश में त्योहारों का मौसम होगा और हमारी लापरवाही भारी पड़ सकती है। लोगों को भीड़ में जाने से बचने की भी जरूरत है। ऐसे समय में, जब तमाम तरह की सामाजिक और औद्योगिक गतिविधियां शुरू हो चुकी हैं, तो कोविड उपयुक्त व्यवहार का पालन जरूरी है। चूंकि अब लगभग सभी स्कूल भी खुल चुके हैं, इसलिए बच्चों की सुरक्षा पर भी ध्यान देना जरूरी है। उन्हें कोविड उपयुक्त व्यवहार के पालन के प्रति जागरूक करना होगा।
इस समय कोविड के चलते अन्य रोगों से बचाव के तरीकों पर उतना ध्यान नहीं दिया जा रहा है, जो गलत है। बहरहाल, दूसरी लहर की भयावहता के बावजूद पूरे देश में सख्त लॉकडाउन न लगाये जाने के परिणाम अब अर्थव्यवस्था में सकारात्मक बदलाव के रूप में दिखे हैं। कई सेक्टरों में आशाजनक परिणाम सामने आये हैं। विकास दर में तेजी आई है। लेकिन कोरोना से लड़ाई अभी लंबी चलनी है, जिसमें संक्रमण से बचाव के परंपरागत उपायों पर ध्यान देना होगा। इसके लिये जहां व्यक्तिगत स्तर पर भी सतर्कता जरूरी है, वहीं टीकाकरण अभियान में तेजी लाने की जरूरत है।
दुनियाभर से आ रही संक्रमण और टीकाकरण की वर्तमान तस्वीर चिंताजनक है। इससे संक्रमण में कभी भी तेजी आ सकती है। ऐसे में मामलों की निरंतर निगरानी के साथ-साथ स्वास्थ्य देखभाल की बुनियादी सेवाओं को भी मजबूत करने की जरूरत है।