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Covid Pandemic : बेसहारा बच्चों को ‘महतारी दुलार योजना’ ने दिया सहारा

Covid Pandemic: 'Mahatari Dular Yojana' gave support to destitute children

Covid Pandemic

रायपुर/नवप्रदेश। Covid Pandemic : हाल ही में एक सर्वेक्षण रिपोर्ट में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को सर्वोच्च स्थान दिया गया था। आपको बता दें कि सीएम बघेल को यह रैंक यूं ही नहीं मिला, बल्कि कोविड काल में माता-पिता को खो चुके स्कूली बच्चों को छत्तीसगढ़ सरकार ने बड़ी राहत दी है। उस दौरान भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़ में कई कल्याणकारी योजनाओं की शुरुआत की थी। यही वजह है कि उनकी प्रतिष्ठा दिन-ब-दिन बढ़ती ही जा रही है।

कोरोना महामारी (Covid Pandemic) ने बालक सिद्धांत और संस्कृत से उनके पिता को छीनकर उनको बेसहारा कर दिया। ऐसे समय में छत्तीसगढ़ महतारी दुलार योजना इन बच्चों का सहारा बनीं है और उनके सुखद भविष्य का मार्ग प्रशस्त किया है। अब ये दोनों बच्चे स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट अंग्रेजी माध्यम स्कूल में नि:शुल्क शिक्षा प्राप्त कर रहे है और उन्हें हर माह 500 रूपये की छात्रवृत्ति भी मिलेगी।

बालक सिद्धांत और संस्कृत के पिता स्व. सौरभ तिवारी रायपुर में एक प्राईवेट जॉब करते थे। बच्चों की माता गृहणी है। 14 अप्रैल 2021 को कोविड महामारी की चपेट में आने से सौरभ की मौत हो गई थी। जिसके बाद तिवारी परिवार के घर की आर्थिक व्यवस्था चरमरा गई। पहले दोनों बच्चे प्राईवेट अंग्रेजी स्कूल में पढ़ रहे थे। पिता के मौत के बाद उनकी शिक्षा में बाधा आ गई। बच्चों की माता को इस बात की चिंता हो गई कि अब वह उन्हें अच्छी शिक्षा नहीं दे पाएगी।

इसी दौरान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के पहल पर छत्तीसगढ महतारी दुलार योजना लागू की गई। जिसके तहत कोरोना से मृत छत्तीसगढ़ के निवासियों के (Covid Pandemic) बेसहारा बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा के साथ साथ छात्रवृत्ति भी प्रदान की जाएगी। बच्चों के नाना नरेश तिवारी ने बताया कि उन्हें इस योजना की जानकारी मिलते ही शिक्षा विभाग में आवेदन किया और इन बच्चों को स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट अंग्रेजी माध्यम स्कूल चकरभाठा में कक्षा तीसरी में दाखिला मिल गया। अब ये बच्चें हसते खेलते नये स्कूल ड्रेस पहनकर अपना भविष्य संवारने स्कूल जाने लगे हैै।

नरेश तिवारी का कहना है कि महतारी दुलार योजना छत्तीसगढ़ सरकार की अद्भुत योजना है। यह बेसहारा बच्चों का सबसे बड़ा सहारा बन रही है। सिद्धांत और संस्कृत की अंग्रेजी मीडियम स्कूल में अच्छी शिक्षा के लिए साल में 80 हजार रूपए फीस भरने पड़ते थे, जो उनके पिता की मृत्यु के बाद संभव नहीं था। योजना से उन्हें जो मदद मिली है, इसके लिए वे सरकार के अत्यंत आभारी है।

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