इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा है कि सरकारी विभागों में बढ़ते भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए सेवानिवृत्त कर्मचारियों को भी किसी तरह की छूट नहीं दी जानी चाहिए।
अदालत ने यह बात उस समय कही जब तकनीकी अवर अभियंता (Corruption Case High Court) के रूप में कार्य कर चुके विपिन चंद्र वर्मा ने अपने खिलाफ शुरू की गई विभागीय जांच को चुनौती दी थी। वर्मा 30 जून, 2025 को सेवानिवृत्त हुए थे और उन पर 2015 से 2022 के बीच हुई अनियमितताओं का आरोप है। यह शिकायत एक विधायक के रिश्तेदार ने की थी, जिसके बाद मामला जांच के लिए जिलाधिकारी को भेजा गया।
अभियंता ने हाईकोर्ट में दलील दी कि सेवानिवृत्ति (Corruption Case High Court) के बाद उनके और विभाग के बीच नियोक्ता–कर्मचारी संबंध खत्म हो जाता है, इसलिए सितंबर 2025 में जारी किया गया कारण बताओ नोटिस अवैध है। उन्होंने यह भी कहा कि शिकायत राजनीति से प्रेरित है और नियमों का पालन किए बिना जांच शुरू की गई।
सरकारी पक्ष ने अदालत में स्पष्ट किया कि मामले में 2022 की अनियमितताएं भी शामिल हैं जो चार वर्ष की समयसीमा के भीतर आती हैं, इसलिए यह विभागीय कार्रवाई नियम 351-A के दायरे में पूरी तरह वैध है।
अदालत ने सरकारी दलील को स्वीकार करते हुए कहा कि नियमों की आड़ लेकर जांच (Corruption Case High Court) से बचने की कोशिश नहीं की जा सकती। जस्टिस मंजू रानी चौहान ने कहा कि एक लोक सेवक सिर्फ वेतन लेने के लिए नहीं बल्कि राष्ट्र निर्माण में योगदान देने के लिए अपनी सेवाएं देता है, इसलिए उसके आचरण पर सवाल उठने पर जवाबदेही तय करना जरूरी है।

