कोरोना वायरस (corona virus) के संक्रमण के बीच देश और दुनिया से इस वैश्विक महामारी (Global Epidemic) के खौफ और जारी लॉकडाउन (lockdown) के कारण अनेक लोगो द्वारा आत्महत्या करने की लगातार खबरें आ रही है। विडंबना है कि एक तरफ यह महामारी जहाँ हजारों लोगों की जिंदगी छीन रही है वहीं दूसरी ओर सैकड़ों – हजारों लोग इस बीमारी के भय और आशंकाओं के कारण अनेकानेक मानसिक और शारीरिक रोगों का शिकार हो रहे हैं।
गौरतलब है कि कोरोना संक्रमण (corona virus) की विभीषिका से आसन्न आर्थिक संकट से निराश होकर जर्मनी के हेस्से प्रांत के वित्त मंत्री थॉमस शेफर ने आत्महत्या कर ली वहीं देश के अलग – अलग हिस्सों से कोरोना के दहशत और लॉकडाउन के कारण जारी आर्थिक संकट व बेरोजगारी के कारण अनेक लोगों द्वारा खुदकुशी करने की भी खबरें हैं। विचारणीय है कि इस कोरोना के बढ़ते मामले और फैली अफरा-तफरी के बीच भविष्य में भी इस प्रकार के मामले बढऩे की संभावना है। इस बीच देश में लॉकडाउन (lockdown)अवधि बढाए जाने और देश में कोरोना संक्रमण के बढ़ते आंकड़ों ने आम लोगों में बेचैनी बढ़ा दी है फिलहाल इस जानलेवा महामारी से कब छुटकारा मिलेगा? इसका जवाब न तो दुनिया के सरकारों के पास है और न ही चिकित्सा वैज्ञानिक भी कुछ कहने की स्थिति में हैं।
बहरहाल जब एक ओर देश और दुनिया की सरकारें कोरोना महामारी (Global Epidemic) से जा रही जानों को बचाने में जुटी है तो दूसरी ओर इस आपदा ने लोगों को मानसिक तौर पर बड़ी तेजी से तोडऩा शुरू कर दिया है। इस संक्रमण के रोकथाम के जारी लॉकडाउन से जहाँ दुनिया की रफ्तार थम चुकी है वहीं इसका सर्वाधिक विपरीत असर वैश्विक अर्थव्यवस्था पर पडऩा अवश्यंभावी है। पहले से ही आर्थिक मंदी, छंटनी और बेरोजगारी की मार झेल रहे भारत में इस आपदा का भारी संकट भविष्य में भी परिलक्षित होना लाजिमी है। लॉकडाउन ने देश की अर्थव्यवस्था, उद्योग और व्यवसायों की कमर बुरी तरह से तोड़ दी है।
जहाँ लाखों लोगों के रोजगार छीन गए हैं वहीं भविष्य में अब रोजगार के नए संभावनाओं पर भी ग्रहण लगना निश्चित है। देश की अर्थव्यवस्था अब कब पटरी पर लौटेगी और स्थिति कब सामान्य होगी? इसका उत्तर काल के गाल में है। हालांकि केंद्र और राज्य सरकारों ने लॉकडाउन के मद्देनजर भारी – भरकम आर्थिक पैकेज और राहत योजनाओं की घोषणा की है। इन उपायों से लोगों को फौरी राहत मिल सकता है लेकिन विशाल आबादी वाले भारत के लिए यह स्थायी हल नहीं है। इस महामारी से निपटने और इसके आर्थिक, सामाजिक दुष्प्रभावों को खत्म करने में कितना वक्त लगेगा? इसका अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल है।
बहरहाल इतिहास गवाह है कि किसी वैश्विक महामारी (Global Epidemic) का मनोवैज्ञानिक प्रभाव और परिणाम वैयक्तिक और सामुदायिक रूप से काफी गहरा होता है जो जिंदगी के ताने – बाने को छिन्न – भिन्न कर देता है। वर्तमान परिवेश में मानव जीवन में यह सब कुछ दृष्टिगोचर हो रहा है,इस विभीषिका ने समाज के हर वर्ग पर जबरदस्त मनोवैज्ञानिक प्रभाव डाला है। चिकित्सा वैज्ञानिकों और मनोवैज्ञानिकों की मानें तो संक्रामक बीमारियां लोगों में बड़ी तेजी से घबराहट और चिंता बढ़ातीं हैं फलस्वरूप एक बड़ी आबादी अनेक मानसिक रोगों जैसे अवसाद, तनाव, भावनात्मक अस्थिरता, उदासी, चिंता, घबराहट, गुस्सा, नींद नहीं आना जैसी अनेक मनोविकृतियों का शिकार हो जाती है।
भारत के मनोचिकित्सकों के संगठन इंडियन साइक्रेटिक सोसायटी के शोध के मुताबिक कोरोना महामारी (corona) के कारण देश में पिछले कुछ हफ्तों में लगभग 20 फीसदी मानसिक रोगी बढ़े हैं। इंडियन कौंसिल फॉर रिसर्च के अनुसार हर पांच भारतीय में से एक किसी न किसी मानसिक रोग से पीडि़त है। चिंता की बात यह है कि कोरोना के बाद यदि देश में मानसिक रोगियों के आंकड़े बढ़ते हैं तो देश में इन रोगियों के काउंसिलिंग और उपचार के लिए पर्याप्त चिकित्सक और अन्य संसाधन उपलब्ध नहीं है। जानकारी के मुताबिक देश और दुनिया में केवल एक फीसदी हेल्थ वर्कस ही मेंटल हेल्थ के इलाज से जुड़े हैं।
उपरोक्त के परिप्रेक्ष्य में कोरोना जैसी संक्रामक विभीषिका का आंकलन करें तो इस बीमारी के जनक, प्रकृति, उपचार और परिणाम के बारे में चिकित्सा वैज्ञानिकों के पास सटीक जानकारी नहीं होने के कारण यह इस रोग के संक्रमितों के साथ – साथ उन लोगों पर भी काफी ज्यादा मनोवैज्ञानिक प्रभाव डाल रहा है जो इससे संक्रमित नहीं है और स्वस्थ हैं। भारत जैसे देश में जहाँ सामाजिक मेल-जोल लोगों के मूल स्वभाव में है वहाँ लोग लॉकडाउन के कारण सामाजिक एकांत में है।
घरों में कैद रहने, रोग के संक्रमण से बचाव हेतु लागू जरूरी बंदिशों तथा देश और दुनिया में संक्रमित रोगियों के बढ़ते आंकड़ों की वजह से हर उम्र के लोग मानसिक तनाव के जद में आ रहे हैं। इन परिस्थितियों के मद्देनजर भविष्य में गैर संक्रामक बीमारियों जैसे डायबिटीज, उच्च रक्तचाप, हृदय रोगियों और मनोरोगियों की संख्या में बढ़ोतरी से इंकार नहीं किया जा सकता है। बहरहाल इन परिस्थितियों के लिये इंटरनेट और इलेक्ट्रानिक मीडिया बहुत हद तक जिम्मेदार हैं।
सोशल मीडिया के दौर में हमें इस रोग से संबंधित अनेक जानकारियां और सूचनाएं इस माध्यम से हासिल कर रहे हैं। सोशल मीडिया प्लेटफार्म में इस रोग के संबंध में परोसी जा रही अनेक भ्रामक जानकारी और अफवाहों की वजह से लोग बहुत ज्यादा पैनिक या भयभीत हो रहे हैं तथा शंकास्पद हो रहे हैं। दूसरी ओर कतिपय इलेक्ट्रॉनिक मीडिया चैनल भी इस महामारी के बारे में घबराहट भरे निराशाजनक खबरें प्रसारित कर रहे हैं।
कोरोना के आघात से जूझ रहे लोगों के मनो – मस्तिष्क पर ऐसी खबरें नकारात्मक प्रभाव डाल रही है फलस्वरूप लोग मानसिक दबाव में है और लोग खुदकुशी जैसे कदम उठा रहे हैं। लोगों को यह नहीं भूलना चाहिए कि विश्व समाज ने इसके पहले भी अनेक घातक महामारियों का सामना किया है जिसमें करोड़ों लोगों की जानें गई थी लेकिन अंतत: मनुष्य ने इस महामारी पर विजय पाई थी।
कोरोना महामारी के बारे में भी यह प्रमाणित है कि इस रोग से मरने वालों की संख्या अपेक्षाकृत अन्य महामारियों की तुलना में काफी कम है और बचाव संबंधी नियमों, सोशल डिस्टेंसिंग और आवश्यक स्वच्छता के द्वारा इस रोग से आसानी से बचा जा सकता है। दुनिया भर के आंकड़े देखें तो इस रोग संक्रमित होने वाले मरीजों में स्वस्थ होने वालों की संख्या मरने वालों से कई गुना अधिक है। अमूमन भारत में भी यही स्थिति है और देश में संक्रमण की स्थिति नियंत्रण में है तथा इस संक्रमण के उपचार के लिए देश में पर्याप्त चिकित्सा सुविधाएं जो किसी विकसित देशों से कमतर नहीं है।
बहरहाल आज इस रोग से जारी जंग में विजय के लिए साकारात्मक विचार लाना इस रोग से संक्रमित और संदिग्ध लोगों के साथ – साथ ऐसे लोगों के लिए भी बहुत जरूरी है जो इस संक्रमण से बचाव के लिए घरों में हैं। किसी भी प्रकार के रोगों के संक्रमण और बचाव में रोग प्रतिरोधक क्षमता की एकमात्र महत्वपूर्ण भूमिका होती है। प्रतिरक्षा तंत्र को किसी दवा या भोजन से तुरंत मजबूत नहीं किया जा सकता।
जीवन में सकारात्मकता और स्वस्थ जीवनशैली से ही रोग प्रतिरोधक क्षमता बरकरार या बढ़ सकती है जो इस संक्रमण के बचाव और उपचार में अत्यावश्यक है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के पहले महानिदेशक डॉ. ब्रांक चिशहोम जो स्वयं एक मनोचिकित्सक थे ने कहा था कि “बगैर मानसिक स्वास्थ्य के सच्चा शारीरिक स्वास्थ्य संभव नहीं है”। आयुर्वेद चिकित्सा विज्ञान में भी निरोग व्यक्ति उसे ही कहा गया है जो शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ हो।
(लेखक शासकीय आयुर्वेद कालेज, रायपुर में सहायक प्राध्यापक हैं।)