रायपुर/नप्रदेश। कोरोना (corona in chhattisgarh) छत्तीसगढ़ में परास्त होता नजर आ रहा है। राज्य सरकार द्वारा बरती जा रही सतर्कता व ऐहतियाती उपायों से राज्य में कोरोना (corona in chhattisgarh) पॉजिटिव के केस बढ़ नहीं रहे हैं। वहीं दूसरी ओर एम्स रायपुर (aiims raipur) के डाक्टरों ने अपने समर्पण व मरीजों को बेहतरीन चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराकर कोरोना को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया। अब तक अकेले एम्स से 7 मरीज डिस्चार्ज हो चुके हैं। और अब यहां छत्तीसगढ़ के पॉजिटिव बचे सिर्फ 1 मरीज का इलाज चल रहा है। एम्स रायपुर (aiims raipur) को मिल रही इस सफलता के पीछे के राज जानने की कोशिश नवप्रदेश ने, जिससे एम्स के डायरेक्टर प्रो. डॉ. नितिन नागरकर कुछ यूं बयां किया…
आइसोलशन वार्ड तब से जब छग में नहीं था कोई पेशेंट
डॉ. नागरकर ने बताया कि कोरोना वायरस से निपटने के लिए एम्स ने पहले से ही कंटेनजेंसी प्लान तैयार कर लिया था। जब छत्तीसगढ़ में कोरोना का एक भी मरीज नहीं था तब भी एम्स में भी आइसोलेशन वार्ड बना लिया गया था। अन्य रोगियों की जांच के लिए अलग व्यवस्था कर दी गई थी। आईसीएमआर अप्रूव्ड लैब भी यहां पहले से मौजूद थी, जिससे यहां कोरोना की टेस्टिंग भी जल्द शुरू हो गई थी।
मरीजों के खान-पान में शामिल किया जा रहा प्रोटीन सप्लिमेंट
एम्स के डायरेक्टर ने बताया कि एम्स में भर्ती कोरोना पॉजिटिव मरीजों को यहां के डॉक्टर न केवल बेहतर इलाज मुहैया करा रहे हैं, बल्कि उनके खान-पान का भी विशेष ख्याल रखा जा रहा है। मरीजों को कम तेल व मसाले वाला भोजन दिया जाता है। साथ ही उनकी डाइट में प्रोटीन सप्लिमेंट शामिल किए जाते हं। जिस प्लेट में उन्हें खाना दिया जाता है वह भी डिस्पोजेबल होती है। ऐसा नहीं कि प्लेट को फिर से धोकर उसे दोबारा इस्तेमाल किया जाए।
आईसीएमआर द्वारा चिह्नित दवाओं से इलाज
कोरोना संक्रमितों के इलाज को लेकर डॉ. नागरकर ने बताया कि एम्स में भर्ती मरीजों का इलाज आईसीएमआर द्वारा चिह्नत दवाओं से ही किया जा रहा है। इलाज में हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन का भी इस्तेमाल हो रहा है।
मरीजों के प्रति डॉक्टरों का रवैया संवेदनशील
एम्स में अब तक जितने भी कोरोना संक्रमितों का इलाज हुआ या हो रहा है। उन सबका व्यवहार डॉक्टरों के प्रति सहयोगात्मक रहा है। डॉक्टर नागरकर ने बताया कि एम्स के डॉक्टर भी इस बात को लेकर संवेदनशील हैं कि उन्हें मरीजों के साथ किस तरह का व्यवहार करना है।
डॉक्टर-नर्सों को दिया जाने वाला पीपीई 8 घंटे बाद डिस्ट्राय
कोरोना संक्रमितों का इलाज करने वाले डॉक्टरों को दिया जाने वाला मास्क समेत पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्वीपमेंट (पीपीई) एक बार के इस्तेमाल (8 घंटे) के बाद निर्धारित प्रक्रिया अनुसार डिस्ट्राय कर दिया जाता है। डॉ. नागरकर ने बताया कि मरीजों से लेकर डॉक्टरों तक की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय मानकों का पालन किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि आम तौर पर ओटी में इस्तेमाल होने वाले कपड़े के कास्च्यूम को धोकर दोबारा इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन कोरोना की भयावता को देखते हुए एम्स में इसका इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है। संक्रमितों का इलाज करने वाले सभी डॉक्टर्स-नर्स को वन टाइम यूज वाला कॉस्च्यूम ही दिया जा रहा है, ताकि संक्रमण फैलने की जरा भी आशंका न रहे।
हफ्ते भर ड्यूटी के बाद दो हफ्ते के लिए क्वारंटाइन
एम्स में कारोना संक्रमितों का इलाज कर रहे डॉक्टरों-नर्सों की अलग-अलग टीम बनाए गई है। एक टीम का स्टाफ हफ्तेभर काम करता है फिर उन्हें दो हफ्ते के लिए क्वारंटाइन कर दिया जाता है। क्वारंटाइन की सुविधा अस्पताल परिसर में ही अलग से की गई है। बकौल डॉ. नागरकर, मरीजों का इलाज कर रहे डॉक्टरों को घर भी नहीं जाने दिया जाता। उनके रहने-खाने की पूरी व्यवस्था परिसर में ही की गई है।
500 अतिरिक्त बेड की तैयारी पूरी, वेंटिलेटर की और दरकार
एम्स के डायरेक्टर ने बताया कि अभी एम्स रायपुर में कोरोना संक्रमितों के इलाज के 200 बेड की व्यवस्था है। भविष्य में यदि मरीज बढ़ते भी हैं तो इसके लिए भी 500 अतिरिक्त बेड की तैयारी भी पूरी कर ली गई है। आईसीयू, वेंटिलेटर भी तैयार है। लेकिन यदि भविष्य में पेशेंट बढ़ते हैं तो वेंटिलटर की संख्या बढ़ानी होगी। उन्होंने कहा कि दूसरे फ्लू जैसे एच 1 एन 1 के मरीज भी आ रहे। उन्हें वेंटिलेटर की जरूरत पड़ रही है। इसलिए वेंटिलेटर बढ़ाए जाने की जरूर है। हालांकि अब तक कोराना के एक-दो पेशेंट को ही वेंटिलेटर की जरूर पड़ी है। लेकिन भविष्य के बारे में कोई अनुमान नहीं लगाया जा सकता।
केंद्र व राज्य दोनों से मिल रहा सहयोग
डॉ. नागरकर ने बताया कि केंद्र व राज्य सरकार दोनों की ओर से एम्स को पूरा सहयोग मिल रहा है। जो सामग्री केंद्र को भेजनी होती है वो केंद्र सरकार भेजती है। फिर जरूरत पड़ने पर हम राज्य सरकार से भी संपर्क करते हैं। हमारी डिमांड के मुताबिक राज्य सरकार भी जरूरी सामग्री व मदद उपलब्ध कराती है।
डिस्चार्ज होने के बाद 14 दिन का क्वारंटाइन जरूरी
डिस्चार्ज होने के बाद भी मरीज को 14 दिन घर में क्वारंटाइन रहना जरूरी है। यदि स्वस्थ हो चुका मरीज 28 दिन तक क्वारंटाइन में रहे तो ज्यादा बेहतर है।