नई दिल्ली/नवप्रदेश। कोरोना (corona fears high altitude) को ऊंचाई से डर लगता है। पढ़कर आश्चर्य हो रहा होगा, लेकिन यह हकीकत है। समुद्र तल से अधिक ऊंचाई पर स्थित पहाड़ी इलाकों (high altitude) में लोगों को कोरोना संक्रमण का खतरा कम है। शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन (study) में ये निष्कर्ष निकाला है। एक प्रतिष्ठित अंग्रेजी समाचार पत्र में इस संबंध की रिर्पोट प्रकाशित हुई है। रिपोर्ट के मुताबिक शोधकर्ताओं ने तिब्बत, बोलविया, इक्वाडोर में किए गए अध्ययन के मुताबिक, समुद्रतल से अधिक ऊंचाई पर रहने वाले लोगों को कोरोना वायरस का खतरा कम होता है।
उत्तराखंड का दिया उदाहरण
अध्ययन (study) के मुताबिक समुद्रतट से 3000 मीटर या इससे अधिक ऊंचाई पर रहने वाले लोगों को इससे कम ऊंचाई पर रहने वाले लोगों की तुलना में कोरोना (corona fears high altitude) वायर का खतरा कम होता है। भारत में उत्तराखंड में अभी तक 1000 से अधिक प्रकरण हैं। लेकिन इसमें राज्य के समतल क्षेत्र में काफी प्रकरण हैं। ऊंचाई वाले स्थान पर भी जो प्रकरण मिले हैं, उनमें अधिकतर वे लोग हैं, जो समतल क्षेत्र से ऊपरी भाग में गए हैं।
इन वजहों से पहाड़ी इलाकों के लोगों में कम होता है खतरा
शोधकर्ताओं के मुताबिक, पहाड़ी भागों (high altitude) में दिन व रात के तापमान काफी अंतर होता है।
इसके अलावा हवा भी शुष्क होती है।
इसकी वजह से बीमारी फैलने की आशंका कम होती है।
इसके अलावा सूर्य से आने वाली अल्ट्रावायलेट किरणें भी समतल भाग की तुलना में अधिक होती है।
अल्ट्रावॉयलेट किरणें प्राकृतिक सैनिटाइजर का काम करते हैं।
ऊंचे स्थानों पर अल्ट्रावॉयलेट किरणों से वायरस निष्क्रय होकर फैलता नहीं है।
इसी प्रकार हवा का दाब भी वायरस के प्रभाव को कम करने में मदद करता है।
ऑक्सीजन की कमी भी साबित होती है कारगर
ऊंचाई वाले स्थानों पर ऑक्सीजन की कमी शरीर में एसीई 2 रसेप्टर्स पर प्रभाव डालती है।
इसी रिसेप्टर के जरिए कोरोना वायरस शरीर की मांसपेसियों पर अटैक करता है।
ऊंचाई वाले स्थानों पर रहने वाले लोगों में ऑक्सीजन की कमी से होने वाले हायपॉक्सिया यानी शरीर में ऑक्सीजन का स्तर कम होने की स्थित के विरुद्ध लड़ने की क्षमता विकसित होती है।
ऊंचाई पर रहने वाले लोग एक्युट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम (श्वसनसंबंधी समस्या) से बचाव होता है।