आशीष वशिष्ठ। Corona Crisis : कोरोना का संकट इसकी संक्रामक प्रवृत्ति और स्वास्थ्य पर इसके प्रभाव को लेकर देश में तमाम तरह की आशंकाएं व्यक्त की जा रही हैं। नए वेरिंएट के बारे में विशेषज्ञों के पास ज्यादा जानकारी नहीं है, लेकिन अनजाने वायरस ने सबको भयभीत कर रखा है। विशेषज्ञों की माने तो जहां तक इसकी संक्रामक क्षमता का सवाल है तो यह सही है कि यह ज्यादा संक्रामक है। दक्षिण अफ्रीका और यूरोप के देशों में जिस गति से यह फैला है, वह इसका सबूत भी है। वायरस का यह स्वरूप गंभीर रूप से बीमार करता है, अभी तक इसका कोई संकेत नहीं है।
बल्कि अभी तक जो भी चीजें सामने आई हैं, उससे पता चलता है कि कि संक्रमित लोगों को अस्पतालों में भर्ती कराने की बहुत ज्यादा आवश्यकता नहीं पड़ी और इससे लोगों की जान नहीं जा रही है, जैसा कि हमें वायरस के डेल्टा स्वरूप में देखने को मिला था। रही बात टीकों के प्रभाव की तो यह संभावना ज्यादा है कि टीकों का असर कम हो जाए। क्योंकि टीकों से बनने वाले एंटीबॉडी का स्तर कुछ समय बाद कम हो जाता है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि टीके वायरस से पूरी तरह हार जाएंगे।
भारत में भी कोरोना के केस लगातार प्रकाश में आ रहे हैं। सबसे ज्यादा चिंता की बात ये है कि अभी तक हमारे देश में पूरी जनता को कोरोना वैक्सीन की ही दोनों खुराक नहीं मिल सकीं। विशेषज्ञों द्वारा माना जा रहा है कि यह वैरिएंट डेल्टा से भी ज्यादा तेजी से फैलने वाला वैरिएंट है। एक अनुमान के अनुसार डेल्टा से सात गुणा अधिक तेजी से यह फैलता है। यद्यपि ओमीक्रान के बारे में चिकित्सा विशेषज्ञ ये कह रहे हैं कि कोरोना का टीका भी इसके संक्रमण से बचा नहीं सकता किन्तु साथ ही ये भी दावा भी किया जा रहा है कि जिन्हें दोनों खुराक मिल चुकी हैं उनको खतरा अपेक्षाकृत कम होगा।
ये देखते हुए भारत में कोरोना टीकाकरण के अभियान में शत-प्रतिशत लक्ष्य हासिल करने के ईमानदार प्रयास अनिवार्यता बन गए हैं। इसके पहले कि सभी वयस्कों के बाद बच्चों के टीकाकरण की शुरुवात होती, नये वायरस के खौफ ने चिंता के नए कारण उत्पन्न कर दिए हैं।
कोरोना की तीसरी लहर आशंका के विपरीत अब तक नहीं आई जिसके कारण देश सामान्य स्थिति में लौटने लगा है।
शिक्षण संस्थान खोले जाने के साथ ही रेल और हवाई यातायात पर लगी रोक भी हटाई जाने लगी। कोरोना काल में लगाये गए तमाम प्रतिबंधों (Corona Crisis) को या तो समाप्त कर दिया गया या फिर उनमें शिथिलता की जा रही है। शादियों में आमंत्रितों की संख्या पर लगाई गई बंदिश खत्म होने से सामाजिक जीवन में उत्साह लौटता नजर आने लगा।
बीते कुछ माह में उद्योग-व्यापार जगत ने आशाजनक प्रदर्शन करते हुए आर्थिक स्थिति में सुधार के संकेत दिए। नवम्बर माह में जीएसटी संग्रह ने एक बार फिर छलांग भरते हुए 1.31 लाख करोड़ का आकंडा छू लिया। इस बारे में पता चला है कि इस वित्तीय वर्ष के जीएसटी संग्रह का 80 फीसदी लक्ष्य पूरा हो चुका है।
सबसे उत्साहजनक बात ये है कि निर्यात के क्षेत्र में आशातीत परिणाम आ रहे हैं। कई क्षेत्रों में भारत कोरोना काल से पहले वाली स्थिति से भी बेहतर प्रदर्शन कर रहा है। इसी कारण विश्व भर में आर्थिक विकास दर का आकलन करने वाली पेशेवर एजेंसियां इस वर्ष भारत को सर्वोच्च पायदान पर रखते हुए सबसे तेज बढ़ती अर्थव्यवस्था मान रही हैं।
लेकिन ओमिक्रान फैला तब सारे अनुमान और आंकड़े धरे रह जायंगे। गत दिवस कर्नाटक में दो लोगों के संक्रमित होने की पुष्टि होने के बाद पूरे देश में ओमिक्रान से बचाव के प्रति कड़ाई बरतने की जरूरत है। इस बारे में ध्यान रखने वाली बात ये है कि कोरोना की तीसरी लहर का भय भले ही जाता रहा हो लेकिन अभी भी 8 से 10 हजार कोरोना मरीज नित्य प्रति देश में पाये जा रहे हैं। ऐसे में अतिरिक्त सतर्कता की बेहद जरूरत है। दूसरी लहर के कमजोर पडने ओर टीकाकरण हो जाने के बाद अधिकतर लोग ये मान बैठे थे कि कोरोना गुजरे जमाने की बात हो चुकी है लेकिन ये पूरी तरह गलत है।
ताजा आंकड़े बता रहे हैं कि उसके अवशेष अभी बाकी हैं और जरा सी असावधानी संक्रमण के विस्फोट का कारण बन सकती है। स्मरणीय है कि कोरोना को लेकर शुरुआती तौर पर बरती गई लापरवाही कितनी महंगी पड़ी थी। इसी तरह पहली लहर के बाद पूरा देश जिस तरह बेफिक्र हुआ उसके कारण ही इस वर्ष की पहली तिमाही लाखों मौतों की गवाह बनी।
बुद्धिमत्ता का तकाजा है कि ओमिक्रान चाहे आये या न आए लेकिन कोरोना से बचाव के लिए जो सावधानियां आवश्यक हैं उनका पालन जारी रखना होगा। इस बीमारी के बारे में अभी चिकित्सा जगत बहुत ज्यादा नहीं जानता। लेकिन मास्क, शारीरिक दूरी और हाथ धोने जैसे उपाय किये जाते रहें तो संक्रमण से बचा जा सकता है। अंतर्राष्ट्रीय आवागमन शुरू होने से ओमिक्रान का फैलाव होना बहुत आसान है।
हालांकि विदेश से आने वालों की जांच की प्रक्रिया शुरू हो गई है किन्तु इस काम के लिए तैनात सरकारी मशीनरी अपने दायित्व निर्वहन में पूरी तरह ईमानदार रहे ये देखना जरूरी है क्योंकि आज ही खबर आई है कि आंध्र प्रदेश में विदेश से आये दर्जनों व्यक्ति बिना जाँच के लापता हैं। ऐसे लोग ही बीमारी को फैलाने के कारण बनते हैं।
कहावत है दूध का जला छाछ भी फूं-फूंककर पीता है। इस आधार पर कोरोना का दंश भोग चुके देश में किसी भी प्रकार के संक्रमण से बचने के लिये जरूरी उपाय करने के प्रति स्वप्रेरित जागरूकता होनी चाहिये। ये कहना कतई गलत न होगा कि कोरोना की मार झेल लेने के बाद भी सरकार और जनता दोनों के स्तर पर अपेक्षित सावधानी का अभाव है।
बेशक सरकार की अपनी जिम्मेदारी इस तरह की आपदा (Corona Crisis) के समय होती है किन्तु जनता को भी अपनी जान की सुरक्षा के प्रति गंभीर होना चाहिए। हमें तीसरी लहर से बचने के लिए सावधानी बरतने की जरूरत है। लेकिन सोशल मीडिया पर लाकडाउन जैसी अफवाहों के कारण नागरिकों में भ्रम निर्माण हो रहा है। इन अफवाहों पर विश्वास न रखे।