रायपुर/नवप्रदेश। कोरोना (corona) संक्रमण के मामले छत्तीसगढ़ (chhattisgarh) में अब बढ़ने लगे हैं, लेकिन अन्य राज्यों की तुलना में स्थिति काफी नियंत्रण में है। राज्य सरकार टेस्टिंग (testing) का ग्राफ बढ़ाने विभिन्न पहलुओं व तकनीकों को ध्यान में रखकर काम कर रही है। कोरोना (corona) से निपटने सरकार केे इन प्रयासों के तकनीकी पहलुओं को अपने पाठकों से रूबरू कराने के लिए नवप्रदेश ने पंडित जवाहरलाल नेहरू स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय (medical college raipur) के माइक्रोबायलॉजी के विभागाध्यक्ष डॉ. अरविंद नेरल से बातचीत की।
पेश है बातचीत के अंश…
हर जांच का अपना महत्व
कोरोना की जांच के लिए विभिन्न तकनीकें अपनाई जा रही हैं, इसकी वजह क्या हो सकती है?
जवाब: वैसे तो कोरोना (कोविड 19) की जांच (testing) के लिए आरटीपीसीआर टेस्ट ही उत्कृष्ट मानदंड है। लेकिन हर जांच का अपना महत्व है। जैसे रैपिड एंटीबॉडी टेस्ट किट केे परिणामों से प्रथमदृष्ट्या यह पता चल सकता है कि किसी क्षेत्र विशेष में कितने लोग संक्रमण से प्रभावित हो सकते हैं। इससे हर्ड इम्यूनिटी का पता चलता है। जिससे वैज्ञानिकों व नीति निर्माताओं को आगे की बचाव व रोकथाम के उपायों संबंधी रणनीति बनाने में आसानी जाती है।
रैपिड टेस्ट के बाद अब टू नॉट टेस्ट की चर्चा हो रही है, इसका क्या महत्व है?
जवाब: टू नॉट टेस्ट रैपिड एंटीबॉडी टेस्ट से ज्यादा कन्फर्मेटिव होता है। इसमें भी आरटीपीसीआर की तरह ही संदिग्ध मरीज के गले व नाक का स्वैब लिया जाता है। हालांकि इसमें भी कोविड 19 का पता नहीं चलता, लेकिन कोरोना (corona) फैमिली के अन्य वायरस जैसे मर्स, सार्स आदी का पता चलता है। इस टेस्ट में भी यदि किसी की रिपोर्ट पॉजिटिव आती है तो उसे भी कोविड 19 का पता लगाने के लिए आरटीपीसीआर से कन्फर्म करना होता है। टू नॉट टेस्ट के लिए रायपुर के लालपुर स्थित इंटरमिडिएट रेफरंस लैबोरेटरी (आईआरएल) में व्यवस्था की गई है। यहां करीब 14 मशीनों से जांच का काम चल रहा है।
यदि किसी का टू नॉट टेस्ट पॉजिटिव आए और आरटीपीसीआर टेस्ट ( कोविड 19)निगेटिव आए तो क्या उसका इलाज कोविड 19 के पॉजिटिव मरीज की तरह ही होता है?
जवाब : जी हां, क्योंकि आखिरकार कोविड 19 भी कोरोना वायरस फैमिली का ही है। लेकिन उपचार व दवाओं का डोज कैसा हो यह संबंधित मरीज को देख रहे डॉक्टर पर निर्भर करेगा।
आरटीपीसीआर में लगता है ज्यादा वक्त
तो क्या सभी सैंपल का आरटीपीसीआर टेस्ट ही कराया जाना उचित नहीं है?
जवाब: आरटीपीसीआर टेस्ट की रिपोर्ट मिलने में रैपिड टू नॉट टेस्ट की तुलना में ज्यदा वक्त लगता है। टू नॉट टेस्ट की रिपोर्ट आने में करीब एक घंटा लगता है, जबकि आरटीपीसीआर की रिपोर्ट में आने में छह घंटे लगते हैं। जबकि रैपिड टेस्ट का रिजल्ट मिनटों में हासिल हो जाता है। ऐसे में यदि किसी शख्स को कोरोना या इस फैमिली से जुड़े अन्य वायरस के संक्रमण संबंधी तुरंत इलाज की जरूरत हो तो रैपिड टेस्ट व टू नॉट टेस्ट बेहतर विकल्प हैं। क्योंकि इन टेस्ट की रिपोर्ट पॉजिटिव आने पर संबंधित संदिग्ध मरीजों का जल्दी से आरटीपीसीआर टेस्ट कराया जा सकता है।
क्या रैपिड टेस्ट में पॉजिटिव आए सैंपल को टू नॉट टेस्ट के लिए भेजा जाता है?
जवाब: नहीं, रैपिड टेस्ट में पॉजिटिव सैंपल को सीधे आरटीपीसीआर टेस्ट केे लिए ही भेजा जाता है।
प्रदेश में कोरोना टेस्ट के लिए आरटीपीसीआर टेस्ट लैब की संख्या बढ़ाने में लंबा समय लग गया, वहज।
जवाब: आरटीपीसीआर से कोरोना (corona) टेस्ट के लिए आईसीएमआर ने सुरक्षा संबंधी अंतरराष्ट्रीय स्तर के प्रोटोकॉल तय किए है। आईसीएमआर के लिए हर मेडिकल कॉलेज में जाकर निरीक्षण करना संभव नहीं था और आखिरकार उन्होंने छत्तीसगढ़ में मेडिकल कॉलेजों को कोरोना टेस्टिंग (आरटीपीसीआर) की अनुमति देने का जिम्मा एम्स को सौंपा। मेडिकल कॉलेज रायपुर की ही बात करें तो यहां एम्स के माइक्राबायोलॉजी विभाग के एक्पर्ट की टीम आई। हमारी लैब लगभग तैयार थी फिर भी उन्होंने कुछ सुझाव दिए, जिन पर हमने अमल किया तब जाकर मंजूरी मिली। अब यह सुविधा मेडिकल कॉलेज रायपुर (medical college raipur) के अलावा जगदलपुर व रायगढ़ के मेडिकल कॉलेजों में उपब्ध हो गई है। जिससे अब प्रदेश में पहले की तुलना में कोरोना के टेस्ट भी अधिक हो रहे हैं।
अब हमारी क्षमता एम्स जैसी
कोरोना जांच को लेकर की गई तैयारियों में क्या आपको व विभाग केे अन्य स्टाफ को चुनौतियों का सामना करना पड़ा?
जवाब : हर नए काम में थोड़ा बहुत सीखना तो होता ही है। लेकिन स्वाइन फ्लू को लेकर हमें प्राप्त अनुभव इसमें काम आ रहा है। कोविड 19 की जांच उसी मशीन में होती है, जिसमें स्वाइन फ्लू की जांच होती थी सिर्फ किट अलग होती है। हालांकि हमारे यहां के कुछ स्टाफ ने एम्स में प्रशिक्षण लिया और फिर अन्य स्टाफ को प्रशिक्षित किया।
क्या टेस्टिंग में अब मेडिकल कॉलेज की क्षमता एम्स जैसी हो गई है?
जवाब: हां, कह सकते हैं क्योंकि अब हमारे यहां भी हर दिन 400-500 सैंपल की जांच होती है। एम्स की तरह हमारे पास भी दो मशीनों से टेस्ट हो रहे हैं।