Control Inflation : त्यौहारी सीजन शुरू होते ही आम आदमी को महंगाई का एक और झटका लगा है। घरेलू रसोई गैस के दामों में 15 रुपए की वृद्धि कर दी गई है। यदि रसोई गैस के दामों में इसी तरह आग लगी रही तो वह दिन दूर नहीं दिखता कि लोगों को फिर लकड़ी कोयला आदि का उपयोग करने के लिए बाद्ध होना पड़े। पेट्रोल और डीजल के दामों में भी लगातार वृद्धि का क्रम जारी है।
देश के अनेक शहरों में पेट्रोल के कीमतों में पहले ही शतक जड़ रखा और अब डीजल भी शतक जडऩे की ओर अग्रसर है। पेट्रोलियम पदार्थों के मुल्य में बढ़ोत्तरी होने का सीधा प्रभाव आवश्यक वस्तुओं पर पड़ता है। इसके दाम आसमान छूने लगते है। ट्रांसपोर्टिंग महंगी होने से खाद्य पदार्थों से लेकर फलो, सब्जियों और दूध आदि के मुल्य भी बढऩे लगते हैं। जिससे आम आदमी का घरेलू बजट गड़बड़ा जाता है। गौरतलब है कि कोरोना काल के कारण पहले ही गरीब औैर मध्यम वर्ग के लोगों के सामने आर्थिक संकट गहराया हुआ है।
उपर से महंगाई (Control Inflation) बढऩा दूबर पर दो आषाढ़ वाली कहावत को चरितार्थ करता है। बढ़ती महंगाई पर लगाम लगाने के लिए सरकार को कड़े कदम उठाने चाहिए और इसके लिए विपक्ष को भी सरकार पर दबाव बनाना चाहिए। लेकिन सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों ही आम आदमी पर पड़ती महंगाई की मार से बेखबर बने हुए है। यदि स्थिति बनी रही तो आम आदमी के लिए जिना मुहाल हो जाएगा। भोजन की थाली से दाल और हरी सब्जियां नदारद हो रही है।
आगे चलकर चटनी रोटी खाने की नौबत आ जाए तो भी ताजूब नहीं होगा। ऐसी स्थिति आए। इसके पहले ही सरकार को महंगाई पर नियंत्रण लगाने के लिए कारगर पहल करनी होगी। दाम बांधना निहायत जरूरी है। पेट्रोलियम पदार्थों के मुल्य में होने वाली निरंतर वृद्धि को रोकने के लिए उसे जीएसटी के दायरे में लाया जाना चाहिए। इस बारे में भी सरकार को गंभीरता पूर्वक विचार करना चाहिए।
दरअसल पेट्रोलियम पदार्र्थों को जीएसटी के दायरे में लाने के लिए केन्द्र और राज्य सरकारों के बीच सहमति नहीं बन पा रही है और न ही सहमति बनाने के लिए कोई पहल हो रही है। पेट्रोलियम पदार्थों पर केन्द्र सरकार को कर वसूली ही है। अलग-अलग राज्यों की सरकारे भी पेट्रोल और डीजल पर मनमाना कर वसूल करती है। यदि इन्हें जीएसटी के दायरे में ला दिया जाता है तो।
सरकारों की कमाई कम हो जाएगी। यही वजह है कि इसे जीएसटी के दायरे में लाने के लिए कोई तैयार नहीं हो रहा है। यदि पेट्रोल औैर डीजल जीएसटी के दायरे में आ जाते है तो इनके कामों में 30 से 40 प्रतिशत कमी हो सकती है। जिससे महंगाई पर लगाम (Control Inflation) लगाने में सरकार को आसानी हो सकती है। लेकिन लाख टके का सवाल यह है कि बिल्ली की गले में घंटी बांधेगा कौन?