दुर्ग/नवप्रदेश। यदि इच्छाओं-भावनाओं या नाराजगी का दमन किया जाए तो आगे चलकर वह 4 गुना रफ्तार से वापस लौटतीं हैं। मंगलवार को कांग्रेस (Congress Troubles) के नव संकल्प शिविर में जिस तरह की नाराजगी फूटी, कह सकते हैं कि वह आगे चलकर चार गुना होने वाली है।
जाहिर है कि इसका सीधा असर विधानसभा और उसके बाद लोकसभा (Congress Troubles) के चुनावों पर होगा। संभव है कि नगरीय निकाय के चुनावों पर भी हो। कांग्रेस के जमीनी कार्यकर्ता नेताओं के रवैय्ये से बेहद नाराज हैं।
प्रदेश में अपनी सत्ता है, विधायक भी अपने है और महापौर भी… बावजूद इसके निचले स्तर के कार्यकर्ताओं की पूछ परख नहीं है। उन्हीं कार्यकर्ताओं पर चुनावी जीत की अपेक्षाएं लादी जा रही है। भाजपा, जिसे कैडर बेस पार्टी कहा जाता है, उसके नेता चुनाव से कुछ पहले कार्यकर्ताओं के साथ छोटी-छोटी बैठके (Congress Troubles) करते हैं।
इन बैठकों में इन नाराज कार्यकर्ताओं से भड़ास निकलवाई जाती है। फि र नेता उन नाराज कार्यकर्ताओं को आश्वस्त करते हैं कि अब सब कुछ ठीक होगा। कार्यकर्ता इसी बात से खुश हो जाता है कि उसने अपनी नाराजगी से नेताओं को अवगत करा दिया। इसके बाद वह पार्टी के लिए काम करता है।
लेकिन इधर कांग्रेस में कार्यकर्ताओं की न नाराजगी दूर करने की चेष्टा की गई, न ही उन्हें भड़ास निकालने दी गई। अब यही भड़ास बढ़ती चली जाएगी। अब तक चुनाव लड़ते रहे कांग्रेस के लोग जो गलतियां लगातार करते रहे, अब भी उसे दोहरा रहे हैं।
दुर्ग शहर में पार्टी प्रत्याशी की लगातार 2 जीत काफी अहम है, लेकिन उपेक्षित और छोटे-छोटे कामों के लिए भटकते कार्यकर्ताओं की ओर पीठ कर लेने का नतीजा भी आने वाले दिनों में उन्हें ही भुगतना ह
किसी का भी ध्यान युवाओं की ओर नहीं गया : नव संकल्प शिविर में वक्ताओं को क्या कहना है, यह पीसीसी ने पहले ही तय कर रखा था। यह भी तय था कि उदयपुर शिविर में लिए गए संकल्पों पर ही चर्चा करानी है।
उसी शिविर में जिन मुद्दों पर मंथन हुआ था, उसकी जानकारी भी नेताओं-कार्यकर्ताओं के साथ बांचनी है। ऐसा ही किया भी गया। लगे हाथ शिविर में मौजूद कार्यकर्ताओं से भावी पार्टी प्रत्याशी की जीत का संकल्प भी लिया गया।
प्रदेश प्रभारी गिरीश देवांगन से लेकर गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू समेत अन्य लोगों ने एक सरीखी बातें कही, लेकिन किसी का भी ध्यान युवाओं की ओर शायद नहीं गया।
शिविर के बाद जिन युवाओं को जोश से भरा हुआ होना चाहिए था, उनमें नाराजगी का भाव यह बताने के लिए काफी था कि दुर्ग का संकल्प शिविर अपनी उपयोगिता साबित करने में नाकाम रहा है।
50 फीसदी युवाओं को पद देना हुआ था तय : सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह थी कि उदयपुर शिविर में 50 फ ीसदी नौजवानों को पद देना तय किया गया था। दुर्ग के शिविर में यदि 50 फीसदी युवाओं को बोलने का अवसर दिया जाता है तो आनंद मंगलम् में आयोजित यह शिविर शायद बेहतर संदेश दे पाता।
जिन युवाओं के नाम वक्ता सूची में थे, उन्हें बाद में गुटों के हिसाब से बांट दिया गया और जो स्थानीय नेताओं के गुटों से अलहदा नजर आए, उन्हें किनारे लगा दिया गया। युवक कांग्रेस के कई कार्यकर्ता इसके सटीक उदाहरण हैं।
नेता ऐसा व्यवहार क्यों कर रहे : युवक कांग्रेस की प्रदेश प्रवक्ता एनी पीटर का कहना था कि आने वाले चुनावों में जब सबको मिल-जुलकर काम करना है तो फि र नेता ऐसा व्यवहार क्यों कर रहे हैं? हम यह पहले ही तय कर चुके हैं कि प्रदेश में भूपेश बघेल की अगुवाई में एक बार फि र से सरकार बनानी है,
दिल्ली में राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए तन, मन, धन से जुटना है। यह काम सिर्फ एक गुट का नहीं है। एनी को दुर्ग कांग्रेस के एक ब्लाक अध्यक्ष अलताफ अहमद ने मंच से नीचे उतार दिया था।
यह वही एनी पीटर है, जिसने राष्ट्रीय प्रवक्ता के लिए हुए इंटरव्यू में 5 वां स्थान पाया था। जाहिर है कि इस युवती ने भावी राजनीतिक संभावनाएं हैं। यही शहर के कई कांग्रेसियों की आंखों की किरकिरी है। एनी पीटर का नाम पूर्व में संकल्प शिविर की वक्ता सूची में था, लेकिन उसे भी कटवा दिया गया।
यह तो पहले से तय था किसी के खिलाफ बोलना नहीं : शहर की कांग्रेसी राजनीति में सदैव आक्रामक रहने वाले एक युवा ने कहा, यह तो पहले से तय था कि किसी के खिलाफ बोलना नहीं है।
जब पार्टी की भीतरी कमजोरियों को उजागर ही नहीं करना है तो ऐसे शिविरों का औचित्य क्या है? इस युवा नेता का कहना था, कार्यकर्ता हमेशा पार्टी की लड़ाई लड़ता है, लेकिन नेता उसे गुटों में बांटकर देखते हैं। क्या दुर्ग में कांग्रेस पार्टी एक गुट विशेष की सम्पत्ति बनकर रह गई है?
उसने कहा, जिन उद्देश्यों को लेकर नव संकल्प शिविर रखा गया, वह पूरा होते नहीं दिखा। यदि पार्टी के सार्वजनिक आयोजनों में भी कार्यकर्ता उपेक्षित रहेंगे तो फि र उनसे कोई उम्मीद भी नहीं रखनी चाहिए।
संकल्प दिलवाना तो दूर की बात है। स्पष्ट कहें तो दुर्ग में हुए नव संकल्प शिविर ने स्थानीय नेताओं के लिए खतरे की घंटी बजा दी है।