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संपादकीय: महाराष्ट्र-झारखंड़ विधानसभा चुनाव में लोकलुभावन घोषणाओं की होड़

Competition for populist announcements in Maharashtra-Jharkhand assembly elections

Competition for populist announcements in Maharashtra-Jharkhand assembly elections

Competition for populist announcements in Maharashtra-Jharkhand assembly elections: महाराष्ट्र और झारखंड़ विधानसभा के चुनाव के लिए कांग्रेस और भाजपा सहित अन्य पार्टियों ने अपने अपने चुनावी घोषणा पत्र जारी कर दिये है। जिनमें इन राजनीतिक पार्टियों के बीच मुफ्तखोरी को बढ़ावा देने वाली लोकलुभावन घोषणाओं की भरमार है।

दरअसल वोट कबाडऩेे के लिए राजनीतिक पार्टियां चुनावी घोषणा पत्रों में इसी तरह की घोषणाएं करती आ रही है। सीधे सीधे मतदाताओं को प्रलोभन परोसा जाता है। इसका राजनीतिक पाटिर्यों को चुनावी लाभ भी मिलता है। इस बार भी महाराष्ट्र और झारखंड़ के मतदाताओं का मन मोहने के लिए ऐसी घोषणाओं की झड़ी लगा दी गई है।

कर्ज माफ करने के अलावा महिलाओं को हर महीने दो हजार रूपये तथा बेरोजगारों को बेरोजगारी भत्ता देने और वृद्धावस्था पेंशन बढ़ाने तथा महिलाओं को मुफ्त में बस यात्रा की सुविधा देने सहित ऐसी कई घोषणाएं की गई है।

यह बात अलग है कि पूर्व में इन राजनीतिक पार्टियों ने जिन राज्यों में ऐसी घोषणाएं कर सत्ता प्राप्त कर ली है वहां इन घोषणाओं को अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका हैै। मुफ्तखोरी को बढ़ावा देने वाली ऐसी घोषणाओं के कारण कई राज्यों की अर्थव्यवस्था चौपट हो गई है और वे गले तक कर्ज में डूब गए है।

यहां तक की शासकीय कर्मचारियों को वेतन देने के भी लाले पड़ गए है। इसके बावजूद राजनीतिक पार्टियां हर चुनाव में इस तरह की लोकलुभावन घोषणाएं करने से बाज नहीं आती। यह खुलेआम वोटो की खरीदफरोख्त है। किन्तु चुनाव आयोग के हाथ बंधे हुए है। वह राजनीतिक पार्टियों को ऐसी घोषणाएं करने से रोक पाने में असमर्थ है।

इस फ्री रेवड़ी कल्चर की वैसे तो खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अनेक बार निंदा की है और फ्री रेवड़ी कल्चर को देश की अर्थव्यवस्था के लिए घातक बताया है। किन्तु उनके नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार ने मुफ्तखोरी को बढ़ावा देने वाली घोषणाओं पर अंकुश लगाने के लिए कोई कारगर कदम उठाया है।

ऐसी स्थिति में अब सुप्रीम कोर्ट पर ही सबकी उम्मीदें टिकी हुई है। जहां फ्री रेवड़ी कल्चर को खत्म करने के लिए जनहित याचिकाएं दायर की गई है। जब उनपर सुनवाई होगी और इस बारे में सुप्रीम कोर्ट कड़े दिशा निर्देश जारी करेगा तभी लोकलुभावन घोषणा करने की होड़ रूकेगी।

अन्यथा राजनीतिक पार्टियां वोट हथियाने के लिए इस तरह की घोषणाएं करती रहेंगी इसमें उनका जाता ही क्या है। सरकारी खजाने से बेदर्दी के साथ धन लुटाया जाता है। यह पैसा करदाताओं का है जिसका उपयोग देश और प्रदेश के विकास के लिए किया जाना चाहिए। किन्तु राजनीतिक पार्टियां इसका दुरूपयोग कर इससे अपना हित साधती है।

पहले नई दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल ने फ्री रेवड़ी कल्चर की शुरूआत की थी। जिसका उन्हें चुनावी लाभ भी मिला था।

नई दिल्ली में उनकी आम आदमी पार्टी को प्रचंड बहुमत मिला। इसके बाद उन्होंने पंजाब विधानसभा चुनाव में भी यही प्रयोग दोहराया और वहां भी फ्री रेवड़ी कल्चर के चलते उनकी पार्टी ने भारी बहुमत के साथ अपनी सरकार बनाने में सफलता पाई।

इसके बाद से अब सभी राजनीतिक पार्टियों के बीच मुफ्तखोरी को बढ़ावा देने वाली घोषणा करने की होड़ लग गई है। जो देश के लिए घातक सिद्ध होगी। पता नहीं इसपर आखिर कब प्रभावी रोक लगेगी।

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