कवर्धा/नवप्रदेश। कवर्धा कलेक्टर (collector) अविनाश शरण ने भारतीय प्रशासनिक सेवा (indian administrative services) में अपने 10 साल (10 year) पूरे होने पर सोशल मीडिया (social media) पर भावनात्मक पोस्ट (post) डाली है। गौरतलब है कि सोशल मीडिया पर उनसे जिले के कमोबेश सभी मोबाइल फोन यूजर जुड़े हुए हैं। ऐसे में उनकी यह पोस्ट और भी प्रासंगिक हो जाती है। पेश है कलेक्टर की ‘मन की बात’ उन्हीं की जुबानी…
‘साल 2009 में आज के ही दिन हमने मसूरी स्थित एकेडमी ज्वाइन की थी। इन दस वर्षों का आकलन किया जाना बहुत कठिन है, लेकिन जिस सपने को लेकर मैं सेवा में आया था आज अगर उसको सोचता हूं तो संतुष्टि का भाव जरूर आता है। मेरे हिसाब से किसी भी लोक सेवा में आपकी सफलता-असफलता या उस सेवा की महत्ता 3-4 बातों से आकलित की जानी चाहिए।
और वे हैं- अवसर, कार्य की व्यापकता, सिस्टम में बदलाव लाना या योगदान देना और आत्म- संतुष्टि का भाव। अगर इन कसौटियों पर भारतीय प्रशासनिक सेवा (indian administrative services)को रखकर देखा जाए तो ये उनपर खरा उतरता है।
मिशन 90 का जिक्र :
क्या कभी कल्पना की जा सकता है कि कोई ऐसा व्यक्ति जो खुद कभी परीक्षा में 70 फीसदी अंक न लाया हो, मिशन 90 के माध्यम से अपने जिले के स्टूडेंट्स के लिए प्रयास करे और इंजीनियर और डाक्टर बनाने वाली परीक्षा के लिए कोचिंग शुरू करे। ये सब अवसर भारतीय प्रशासनिक सेवा (indian administrative services) ही दिला पाती है, जिसके माध्यम से सरकार की योजनाओं के द्वारा आप ये सब कर सकते हैं। अपने कार्यक्षेत्र में यह सेवा इतनी व्यापक है कि समाज का कोई ऐसा वर्ग, क्षेत्र नहीं जिसको ये प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रभावित न करे।
कमियों केे बावजूद सरकारी सिस्टम आज भी बेस्ट :
कोई भी सिस्टम उसको चलाने या लागू करने वालों पर निर्भर करता है। अपनी बहुत सी कमियों के बावजूद सरकारी सिस्टम आज भी बेस्ट है, यह कहा जा सकता है। इस बात को किसी संकट के समय और अधिक महसूस किया जा सकता है। जरूरत है बस समय के साथ और अधिक उत्तरदायी और पारदर्शी बनाने की। इस सेवा के माध्यम से हम समाज के बहुत बड़े वर्ग के सीधे सम्पर्क में आते हैं और उनके लिए बहुत कुछ सकारात्मक कर सकते हैं। मुझे अपने 10 साल की सेवा मे बहुत सारे मौके मिले जो और कोई प्राइवेट जॉब उपलब्ध नहीं करा सकता था।
कभी किसी कलेक्टर से प्रत्यक्ष नहीं मिला था :
कभी किसी कलेक्टर से प्रत्यक्ष रूप से मिला नहीं था। लेकिन इस सेवा ने ये मौका दिया कि खुद वैसे लोगों तक पहुंचकर उनको करीब से जानने का प्रयास किया। आज मुझे सेवा को लेकर आत्मसंतुष्टि का भाव है जो मेरे हिसाब से किसी भी नौकरी के लिए आवश्यक है। आज भी लाखों प्रतिभागी इस सेवा में आने के लिए प्रयासरत हैं और हर साल 10 लाख प्रतिभागी परीक्षा देते हैं।’
आज अज्ञेय द्वारा अनुदित शेलि की ये कविता मुझे याद आती है :
‘कई हरे-भरे द्वीप अवश्य ही रहे होंगे,
इस व्यथा के गहरे और फैले सागर में,
नहीं तो थका हारा सागरिक…
ऐसे यात्रा करना नहीं कह सकता।’