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Coal Gasification : लक्ष्यों को हासिल करने का प्लेटफार्म

Coal Gasification : Platform to Achieve Goals

Coal Gasification

देव गावस्कर। Coal Gasification : वैश्विक आर्थिक महाशक्ति बनने की दिशा में भारत का विजन, आत्मनिर्भरता (आत्मनिर्भर अभियान), घरेलू भंडार के मुद्रीकरण, परिवर्तनकारी नवाचार (मेक इन इंडिया विजन), आयात में कमी और नौकरियों के सृजन, जैसी चुनौतियों के समाधान पर निर्भर है। इसके साथ ही आने वाले दशकों के लिए कार्बन मुक्त और सतत अर्थव्यवस्था का भी लक्ष्य निर्धारित किया गया है।

भारत में सौर ऊर्जा, जैविक ईंधन भंडार और कोयले के रूप में तीन प्राकृतिक संसाधन उपलब्ध हैं, जो उपयोग के लायक हैं और प्रचुर मात्रा में हैं। भारत, सौर ऊर्जा क्षेत्र की तेज प्रगति को लेकर आशावादी है और जैविक ईंधन-आधारित प्रौद्योगिकियों के क्षेत्र में निरंतर अनुसंधान और विकास कार्य किए जा रहे हैं, लेकिन वर्तमान में, इन संसाधनों को इनकी कमियों द्वारा चुनौती दी जा रही है, जैसे सौर उत्पादित बिजली का उपयोग करने के लिए डाउनस्ट्रीम प्रौद्योगिकी और जैविक ईंधन के लिए आवश्यक कच्चे माल की आपूर्ति से जुड़े मुद्दे। हालांकि, भारत के पास 307 अरब टन कोयले का भंडार है जिसका 80 प्रतिशत हिस्सा ऐतिहासिक रूप से ताप विद्युत संयंत्रों द्वारा प्रयुक्त किया गया है और यह लिग्नाइट के साथ भारत में बिजली के लिए कुल ईंधन स्त्रोत के 55 प्रतिशत हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है।

हालांकि, भारत ने पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं, इसलिए ऊर्जा के स्वच्छ रूपों की ओर बढऩा एक तात्कालिक आवश्यकता है। ‘प्रदूषित’ वर्तमान के बदले एक स्वच्छ, हरित और निरंतर बढ़ती अर्थव्यवस्था की मांगों से समझौता किए बिना सतत भविष्य के लिए संतुलन के रूप में एक वैकल्पिक रास्ते की तलाश जरूरी है। इस सामाजिक-आर्थिक स्तर पर, भारत में सबसे प्रचुर मात्रा में उपलब्ध प्राकृतिक संसाधन- कोयले के विविधीकरण की तत्काल आवश्यकता है। इस संभावना के लिए, भारत एक व्यावसायिक रूप से साबित किये हुए प्लेटफार्म का उपयोग कर सकता है, जो कोयले को जलाने की बजाय कोयले में संग्रहित रासायनिक ऊर्जा को निकालता है।

कोयला गैसीकरण, सिनगैस के उत्पादन की प्रक्रिया है, जो कार्बन मोनोऑक्साइड (सीओ), हाइड्रोजन (एच2) और कार्बन डाइऑक्साइड ((सीओ2) से मिलकर बना मिश्रण होता है। इस प्रक्रिया में कोयले के साथ एक निश्चित अनुपात में वाष्प और ऑक्सीजन (या वायु) की रासायनिक प्रतिक्रिया होती है, जिसके परिणामस्वरूप कोयले के तत्वों का गैसीकरण होता है। इस प्रक्रिया में कोयले को जलाया नहीं जाता है। इस सिनगैस का उपयोग सिंथेटिक प्राकृतिक गैस (एसएनजी), ऊर्जा ईंधन (मेथनॉल और इथेनॉल), उर्वरकों और रसायनों के लिए अमोनिया एवं अन्य रसायनों, यहां तक कि प्लास्टिक के उत्पादन के लिए भी किया जा सकता है।

दुनिया भर में कोयला गैसीकरण (Coal Gasification) संयंत्रों को व्यापक रूप से स्थापित किया जा रहा है और देश ईंधन एवं रसायनों के उत्पादन के लिए इस प्रौद्योगिकी का उपयोग कर रहे हैं। कोयले के दहन के विपरीत, कोयला गैसीकरण संयंत्र से कार्बन डाइऑक्साइड का प्रवाह अत्यधिक केंद्रित होता है, जिससे कार्बन संग्रह और इसका उपयोग अधिक व्यावहारिक और किफायती हो जाता है, खासकर जब हरित हाइड्रोजन या सीओ2 अनुक्रम के अन्य साधन के स्रोत इसके साथ होते हैं। ऊपर उल्लिखित उद्देश्यों और विजन के अनुरूप, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि कोयला मंत्रालय ने कोयला गैसीकरण के माध्यम से कोयले का उपयोग करने की पहल की है और इस दशक के अंत तक 100 मिलियन टन कोयले को गैसीकृत करने का लक्ष्य निर्धारित किया है।

इस मिशन के प्रति सरकार की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए, कोयला मंत्रालय ने ‘गैर-विनियमित क्षेत्रों के लिंकेज की नीलामी के अंतर्गत उप-क्षेत्रों’ में कोयला गैसीकरण परियोजनाओं के लिए एक नई कोयला-लिंकेज नीति भी बनाई है।
भारत का एक अन्य प्रमुख लक्ष्य ऊर्जा के क्षेत्र में स्वतंत्र राष्ट्र बनकर आत्मनिर्भरता प्राप्त करने का है। 75वें स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने भाषण में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया था कि अगले 25 वर्षों में भारत ने ऊर्जा में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया है।

यह स्पष्ट है कि आत्मनिर्भरता और ऊर्जा स्वतंत्रता प्राप्त करने की दिशा में पहला कदम, मुख्य रूप से पेट्रोलियम के आयात में कमी लाने से जुड़ा होगा। परिप्रेक्ष्य समझने के लिए, भारत का पेट्रोलियम का वार्षिक शुद्ध आयात (मुख्य रूप से परिवहन क्षेत्र में उपयोग किया जाता है) करीब 185 मिलियन मीट्रिक टन है, जिसकी लागत लगभग 55 बिलियन डॉलर है। इन आयातों को कम करने और इस प्रकार विदेशी मुद्रा बचाने के लिए, 2018 में जैव ईंधन पर राष्ट्रीय नीति की शुरुआत हुई। पहले चरण में, भारत सरकार ने पहली पीढ़ी के इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल (ईबीपी) के तहत 5 प्रतिशत इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल की आपूर्ति करने का संकल्प लिया था। इसके साथ ही, सरकार ने 2025 से 2030 तक पेट्रोल (जिसे ई20 का भी नाम दिया गया है) में 20 प्रतिशत इथेनॉल मिश्रण का लक्ष्य निर्धारित किया है।

यह सर्वविदित है कि इथेनॉल बनाने के पारंपरिक तरीके चीनी और जैव ईंधन-आधारित रहे हैं, जिनका उपयोग, लागत, पैमाने और भूमि आवश्यकता जैसी बाधाओं और/या खाद्य श्रृंखला में बदलाव जैसे मुद्दों सहित विभिन्न कारणों से सीमित स्तर पर होता है और ये लाभप्रद भी नहीं हैं। दूसरी पीढ़ी के इथेनॉल के लिए कच्चे माल की आपूर्ति भी ऊर्जा फसलों, नगरपालिका अपशिष्ट, वन और कृषि अवशेषों और बेकार खाद्यान्न के उपयोग से उभरी हैं, जो मुख्य रूप से कम दक्षता और रूपांतरण की कमी से ग्रस्त हैं। इसके अतिरिक्त, कच्चे माल की उपयोगिता चुनौतियों के कारण 2जी-इथेनॉल संयंत्रों के पैमाने पर एक ऊपरी सीमा भी निर्धारित की गयी है, जिसके तहत एक संयंत्र से सालाना 3 करोड़ लीटर तक इथेनॉल के उत्पादन की उम्मीद है।

हालांकि इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत ने इथेनॉल मिश्रण के क्षेत्र में तेजी से प्रगति की है और इन तरीकों से मिश्रण का लक्ष्य, लगभग 8-9 प्रतिशत तक हासिल किया जा चुका है। लेकिन ई20 लक्ष्यों को पूरा करने के क्रम में मांग-आपूर्ति के महत्वपूर्ण अंतर के लिए समाधान पेश किये जाने चाहिए, क्योंकि इसे पारंपरिक तरीकों से प्राप्त नहीं किया जा सकता। यह समाधान कार्यकुशल व उपयोग के लायक होना चाहिए और इसकी पूरी अर्थव्यवस्था अपनाने लायक होनी चाहिए। यही वह जरूरत है, जिससे कोयले (Coal Gasification) के जरिये- गैसीकरण और सिनगैस के इथेनॉल में रूपांतरण के माध्यम से इस अंतर को समाप्त करने में मदद मिल सकती है।

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