मुख्यमंत्री के आग्रह पर एसईसीएल के सीएमडी ने दी सहमति
रायपुर/नवप्रदेश। Coal Crisis : जहां कई राज्य कोयला संकट का सामना कर रहे हैं, वहीं एसईसीएल छत्तीसगढ़ के ताप विद्युत संयंत्रों के लिए प्रतिदिन 29 हजार 500 मीट्रिक टन कोयले की आपूर्ति सुनिश्चित करेगी। एसईसीएल के सीएमडी ने इसके लिए सहमति दी है। सोमवार को मुख्यमंत्री अपने निवास कार्यालय में प्रदेश के ताप विद्युत संयंत्रों में कोयले की आपूर्ति एवं उपलब्धता की स्थिति पर समीक्षा बैठक की।
इस दौरान एसईसीएल के सीएमडी से कहा कि छत्तीसगढ़ की खदानों से कोयला निकालकर छत्तीसगढ़ सहित देश के अन्य राज्यों को कोयले की आपूर्ति की जाती है। चूंकि छत्तीसगढ़ से कोयले का उत्पादन किया जा रहा है, इसलिए एसईसीएल द्वारा प्राथमिकता के आधार पर छत्तीसगढ़ के ताप विद्युत संयंत्रों को उनकी आवश्यकता के अनुसार अच्छी गुणवत्ता के कोयले की सप्लाई की जानी चाहिए।
बैठक में मुख्य सचिव अमिताभ जैन, मुख्यमंत्री के अपर मुख्य सचिव सुब्रत साहू, मुख्यमंत्री के सचिव सिद्धार्थ कोमल सिंह परदेशी, छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत कम्पनियों (Coal Crisis) के अध्यक्ष एवं विशेष सचिव ऊर्जा अंकित आनंद, एसईसीएल के सीएमडी अंबिका प्रसाद पांडा और दक्षिण पूर्व मध्य रेल्वे के जीएम आलोक कुमार सहित राज्य विद्युत कम्पनियों के प्रबंध निदेशक उपस्थित थे।
इस समय खराब होती है कोयले की गुणवत्ता
एसईसीएल के सीएमडी ने छत्तीसगढ़ को प्रतिदिन प्रदेश के ताप विद्युत संयंत्रों की आवश्यकता के अनुरूप 29 हजार 500 मेट्रिक टन कोयले की सप्लाई की जाएगी। साथ ही अच्छी गुणवत्ता का कोयले की भी आपूर्ति की जाएगी। उन्होंने बताया कि बारिश के कारण कोयले की गुणवत्ता प्रभावित होती है। वर्तमान में एसईसीएल द्वारा छत्तीसगढ़ को 23 हजार 290 मेट्रिक टन कोयले की आपूर्ति की जा रही है। एसईसीएल के सीएमडी ने छत्तीसगढ़ के लिए इस मात्रा को बढ़ाकर 29 हजार 500 मेट्रिक टन करने की सहमति दी।
प्रदेश की बिजली की औसत डिमांड इतनी मेगावाट
छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत कम्पनियों (Coal Crisis) के अध्यक्ष एवं विशेष सचिव ऊर्जा अंकित आनंद ने बताया कि शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में विद्युत की निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित की जा रही है। वर्तमान में प्रदेश की बिजली की औसत डिमांड 3803 मेगावाट है, जिसके विरूद्ध बिजली की उपलब्धता 3810 मेगावाट है। प्रदेश में पीक समय में विद्युत की औसत डिमांड 4123 मेगावाट है, जिसके विरूद्ध बिजली कम्पनी द्वारा 4123 मेगावाट बिजली की औसत उपलब्धता बनाई रखी जा रही है।
पीक समय में आवश्यकतानुसार 200 से 400 मेगावाट विद्युत क्रय लगातार किया जा रहा है। उन्होंने यह भी बताया कि वर्तमान में एनटीपीसी की लारा (400 मेगावाट) एवं सीपत यूनिट (104 मेगावाट) तथा एनएसपीएल संयंत्र (25 मेगावाट) वार्षिक रखरखाव के कारण बंद है। इस कारण कुल 529 मेगावाट बिजली कम प्राप्त हो रही है। एनटीपीसी की लारा यूनिट 12 अक्टूबर से प्रारंभ होने की संभावना है। इस यूनिट के प्रारंभ होने पर एक्सचेंज से विद्युत क्रय की स्थिति लगभग नहीं रहेगी। एनटीपीसी सीपत संयंत्र 21 अक्टूबर तक प्रारंभ होने की संभावना है।
CM ने यह भी कहा
रेल्वे द्वारा छत्तीसगढ़ को कोयले और चावल के लिए आवश्यकतानुसार पर्याप्त संख्या में रेल्वे रेक उपलब्ध कराना सुनिश्चित किया जाना चाहिए। जिस पर दक्षिण पूर्व मध्य रेल्वे के जीएम ने इसके लिए सहमति दी।
बैठक में छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत कम्पनियों के अध्यक्ष एवं विशेष सचिव ऊर्जा अंकित आनंद ने जानकारी दी कि वर्तमान में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ताप विद्युत संयंत्र कोरबा ईस्ट में 3.8 दिवस का कोयला उपलब्ध है।
इसी तरह हसदेव ताप विद्युत संयंत्र में कोरबा वेस्ट में 3.2 दिवस का कोयला तथा मड़वा ताप विद्युत संयंत्र में 7 दिनों की आवश्यकता का कोयला उपलब्ध है।
केन्द्रीय विद्युत प्राधिकरण मानक के अनुसार 5 दिनों की आवश्यकता से कम कोयले की उपलब्धता को क्रिटिकल स्थिति माना जाता है।
अब कोयले की आपूर्ति बढऩे से छत्तीसगढ़ के ताप विद्युत संयंत्रों को पर्याप्त मात्रा में कोयले की उपलब्धता सुनिश्चित होगी।
देश के 135 में से 110 संयंत्र कोयला संकट से जूझ रहे हैं
सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी की 7 अक्टूबर की रिपोर्ट के अनुसार देश के 135 में से 110 प्लांट कोयले के संकट का सामना कर रहे हैं। और क्रिटिकल स्थिति में पहुंच गए हैं। 16 प्लांट के पास एक भी दिन का कोयला स्टॉक (Coal Crisis) में नहीं है। तो 30 प्लांट के पास केवल 1 दिन का कोयला बचा है। इसी तरह 18 प्लांट के पास केवल 2 दिन का कोयला बचा है। यानी स्थिति बेहद गंभीर हैं। इसमें हरियाणा और महाराष्ट्र के 3 प्लांट ऐसे हैं, जहां स्टॉक में एक भी दिन का कोयला नहीं है। इसी तरह पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, बिहार में एक-एक प्लांट ऐसे हैं, जहां एक दिन का स्टॉक बचा हुआ है। वहीं पश्चिम बंगाल के 2 प्लांट में ऐसी स्थिति है।