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सीजेआई के खिलाफ साजिश संबंधी याचिका की सुनवाई होगी

नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की छवि खराब करने की साजिश की जांच विशेष जांच दल (एसआईटी) से कराने तथा इस मामले में कुछ वकीलों के खिलाफ  प्राथमिकी दर्ज करने के निर्देश संबंधी याचिका की सुनवाई पर सोमवार को सहमति जता दी। पेशे से वकील मनोहर लाल शर्मा ने जाने माने वकील प्रशांत भूषण, वरिष्ठ अधिवक्ता कामिनी जायसवाल, इंदिरा जयसिंह, वृंदा ग्रोवर, शांति भूषण, नीना गुप्ता भसीन और दुष्यंत दवे के खिलाफ  प्राथमिकी दर्ज करने की मांग की है। इनका आरोप है कि इनलोगों ने मुख्य न्यायाधीश की छवि खराब करने के लिए साजिश की और यौन-उत्पीडऩ का मामला उसी साजिश का हिस्सा है। श्री शर्मा ने न्यायमूर्ति एस एस बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष याचिका का विशेष उल्लेख किया और इसकी त्वरित सुनवाई का उससे अनुरोध किया। याचिकाकर्ता ने अपने आरोप के समर्थन में मीडिया में प्रकाशित कुछ खबरें भी उपलब्ध करायी है। याचिकाकर्ता ने इस मामले में एसआईटी जांच के निर्देश का अनुरोध किया है और इन वकीलों को किसी भी अदालत में पैरवी करने से रोकने या जनहित याचिकाएं दायर करने से वंचित करने की मांग की है।

श्री शर्मा ने गत 30 अप्रैल को दावा किया था कि न्यायमूर्ति गोगोई के खिलाफ यौन शोषण की शिकायत कराने के पीछे जाने-माने वकील प्रशांत भूषण हैं। उन्होंने कहा था कि मामले में शीर्ष अदालत की पूर्व महिला कर्मचारी द्वारा शिकायत दायर करने के पीछे और कोई नहीं बल्कि श्री भूषण हैं। श्री शर्मा का दावा है कि श्री भूषण ने खुद यह बात स्वीकार की है कि उन्होंने आरोप लगाने वाली महिला को शिकायत दायर करने में मदद की। श्री शर्मा ने गत मंगलवार को मामले का विशेष उल्लेख मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष किया था, लेकिन न्यायमूर्ति गोगोई ने उनसे किसी अन्य पीठ के समक्ष मामला उठाने को कहा था। न्यायमूर्ति गोगोई ने कहा था, किसी अन्य बेंच के समक्ष अपना मामला रखें। इसके बाद उन्होंने न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अगुवाई वाली पीठ के सामने मामले का विशेष उल्लेख करना चाहा था, लेकिन उसने भी सुनवाई से इन्कार कर दिया था।

यौन-शोषण की शिकायतकर्ता महिला न्यायालय की पूर्व जूनियर कोर्ट असिस्टेंट है, जिसने मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ यौन उत्पीडऩ का आरोप लगाते हुए शीर्ष अदालत के सभी न्यायाधीशों को एक शपथ-पत्र भेजा था। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि न्यायमूर्ति एन.वी. रमन मुख्य न्यायाधीश के करीबी दोस्त हैं और इसलिए मामले की निष्पक्ष सुनवाई नहीं हो सकती। इसके बाद न्यायमूर्ति रमन ने खुद को मामले की जांच करने वाली समिति से अलग कर लिया था।

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