मुकेश सोलंकी
जगदलपुर/नवप्रदेश। छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) का विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा (World famous Bastar Dussehra) की 600 साल पुरानी रथ परंपरा (600 year old rath tradition) पर संकट मंडरा (Problem Cruising) रहा है। इसकी वजह है ककागलुर पंचायत के ग्रामीण। ककागलुर के ग्रामीणों ने पंचायत में निर्णय लिया है कि इस बार रथ के लिए लकड़ी नहीं देंगे।
पंचायत के निर्णय के बाद भी विश्व प्रसिद्ध दशहरा के आयोजन पर खतरा मंडरा रहा है। पंचायत ने इसकी जानकारी बस्तर सांसद और दशहरा समिति को दी है। इस पर चर्चा के लिए ग्रामसभा के साथ बैठक करने के बाद भी कोई नतीजा नहीं निकला।
विश्व का सबसे बड़ा दशहरा उत्सव
दरभा ब्लॉक के घने जंगल गांव ककालगुर की पहचान बस्तर दशहरा से है। यहां बस्तर की आराध्य देवी माई दंतेश्वरी के नाम से विश्व का सबसे बड़ा उत्सव बस्तर के आदिवासी मनाते हैं। इसमें नवरात्र में लकड़ी का विशाल रथ नगर परिक्रमा करता है। रथ के लिए लकड़ी ककागलुर गांव से आती है।
दशहरा के प्रारंभ लकड़ी का एक बड़ा टुकड़ा ककागलुर गांव के ग्रामीण बैलगाड़ी में लादकर दंतेश्वरी मंदिर जगदलपुर लाते हैं। जिसे ठुरलू खोटला कहा जाता है। इसी लकड़ी से रथ निर्माण का काम शुरू होता है। इसके बाद दशहरा समिति वहां के जंगल से ढाई से तीन मीटर मोटाई वाले करीब 60-70 वृक्ष कटवाती है।
वृक्षों की आयु 100 साल तक होती है
मोटे तने वाले इन वृक्षों की आयु 100 साल तक होती है। 600 सालों से चल रही इस परंपरा की वजह से जंगल सिमटता जा रहा है और नए जंगल के विकास की कोई योजना नहीं बन पाई है। ग्रामीणों का आरोप है कि रथ निर्माण के नाम पर लकड़ी की तस्करी भी की जाती है। ग्रामीणों ने कई बार दशहरा समिति को इससे अवगत कराया, पर ध्यान नहीं दिया गया।
इससे नाराज ग्रामीणों ने एक सितंबर को ग्रामसभा में प्रस्ताव पारित कर लकड़ी ले जाने पर पाबंदी लगा दी है। बस्तर के इस आदिवासी इलाके में संविधान की पांचवीं अनुसूची और पेसा कानून लागू है इसलिए ग्रामसभा के प्रस्ताव का संवैधानिक महत्व है।
बस्तर दशहरा विश्व प्रसिद्ध है। ग्रामीणों की समस्या का अकेले समाधान मैं नहीं कर सकता। उनसे कुछ समय मांगा है। मांझी, चालकी, मुखिया, जिला प्रशासन, जनप्रतिनिधि व राज परिवार से चर्चा कर समाधान निकाला जाएगा।
दीपक बैज, सांसद व अध्यक्ष बस्तर दशहरा समिति