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Chanakya : कितने बच्चे पैदा करें – चाणक्य

Chanakya,

Chanakya : यदि परिवार में एक भी व्यक्ति विद्वान हो जाये और वह शील स्वभाव से सज्जन हो तो पूरा परिवार आनन्दित व यशस्वी हो जाता है। जिस प्रकार एक ही चन्द्रमा रात्रि को जगमगाकर सुखदायक प्रदान करता है उसी प्रकार एक विद्वान व सज्जन अपने वंश के सदस्यों को आनन्दित कर देता है, क्योंकि उसके कारण वे अपने वंश पर गौरव अनुभव करने लगते हैं। अतः अधिक सन्तान पैदा करने की अपेक्षा एक ही पुत्र को अच्छे संस्कार देकर गुणी बना देना श्रेयष्कर है।

Chanakya : अपने असामाजिक या आचरणहीन कार्यों से हृदय को दुखित करने वाली सन्तान से क्या लाभ, इससे तो यही अच्छा है कि जन्म लेने के साथ ही माता-पिता से विमुख हो जाये। उस समय उसके वियोग का दुःख क्षणिक होता है। एक भी पुत्र सद्गुणी, कार्यकुशल, विनम्र और आज्ञाकारी हो तो अपने पूरे परिवार की कीर्ति का कारण बन जाता है। उसके वृद्ध माता-पिता व परिवारी जन उसका आश्रय पाकर सुखमय जीवन गुजार सकते हैं।

जिस देश में मूों का आदर-सम्मान नहीं होता, अन्न संचित रहता है तथा पति-पत्नी में झगड़ा नहीं होता, वहां लक्ष्मी बिना बुलाये ही निवास करती है।

Chanakya : यहां आचार्य चाणक्यजी का अभिप्राय यह है कि यदि देश की समृद्धि और देशवासियों की सन्तुष्टि अभीष्ट है, तो मूों के स्थान पर गुणवानों का आदर करना चाहिए, बुरे दिनों के लिए धन का भण्डार बनाना चाहिए तथा घर-गृहस्थ में वाद-विवाद का वातावरण नहीं होना चाहिए। तभी देश की समृद्धि होगी। यह एक कटु सत्य है।

मनुष्य के जीवन की उपादेयता एक गुणवान पुत्र से हो सकती है। सैकड़ों गुणहीन पुत्र उसके लिए महत्वहीन ही होते हैं। आचार्य चाणक्य कहते हैं कि एक चन्द्रमा रात के अन्धकार को हर लेता है जबकि असंख्य तारे मिलकर भी रात के अंधकार को हरने में सक्षम नहीं होते।

इसी प्रकार एक ही गुणी पुत्र कुलभूषण कहलाता है, जबकि सैकड़ों निकम्मे पुत्र इसके विपरीत कुल को कलंक ही लगाते हैं।

अतः दम्पत्तियों को चाहिए कि वे अपने एकमात्र पुत्र को गुणवान, संस्कारवान् एवं सद्पुरूष बनाने के लिए प्रयत्नशील रहे, न कि सैंकड़ों पुत्रों के अर्जन में।

लम्बी आयु वाले मूर्ख पुत्र की अपेक्षा उत्पन्न होते ही मर जाने वाला पुत्र श्रेष्ठ होता है, क्योंकि मरा हुआ तो थोड़े ही समय के लिए पीड़ित करने वाला होता है, परन्तु मूर्ख पुत्र को जब तक जीवित रहता है, तब तक जलाता रहता है, सताता रहता है, कुल के अपयश का कारण बनता रहता है।

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