Chanakya Niti : सम्मानित व्यक्ति को अपना अपमान मृत्यु से भी अधिक कष्टकारी लगता है
आचार्य चाणक्य(Chanakya Niti) मानव जीवन में आने वाले सच से आगाह करते हुए लिखते हैं कि मानव जीवन में सब कुछ पूर्व निर्धारित होता है इसलिए मनुष्य को अनावश्यक भटकना व परेशान होना निरर्थक ही है, क्योंकि इससे कोई समस्या हल नहीं होती।
वह बताते हैं कि मनुष्य को मां के गर्भ मे आना ही सब कुछ निर्धारण के साथ होता है। उसका जीवन (life), (Daith)मरण,(Time) समय, (Type) प्रकार, (Happy- Unhappy) सुख-दुख, अच्छा-बुरा(Good-Bad) एवं यश-अपयश सब कुछ ईश्वर द्वारा ही पूर्व निर्धारित होता है।
आचार्य चाणक्य (Chanakya Niti) कहते हैं कि मानव को अनावश्यक चिन्तित नहीं होना चाहिए। अर्थात् उसे फल कामना से रहित कर्म पर विश्वास करना चाहिए, क्योंकि कर्म करने पर ईश्वर द्वारा फल मिलना तो तप है। स्वादिष्ट से स्वादिष्ट भोजन(Tasty Food) जिस प्रकार (Gastric) बदहजमी की अवस्था में लाभ के स्थान पर हानि ही पहुंचाता है और विष का काम करता है।
इस अवस्था का किया गया सुस्वादु भोजन व्यक्ति के लिए प्राणलेवा भी हो सकता है, उसी प्रकार निरन्तर अभ्यास न रखने से शास्त्रज्ञान (scripture) भी मनुष्य के लिए घातक विष के समान हो सकता है।
वैसे तो वह पण्डित होता है, किन्तु अभ्यास के अभाव में वह शास्त्र का भली प्रकार विश्लेषण व विवेचन कर पाने में अक्षम होता है और इस अवस्था में उसको उपहास का पात्र यदि बनना पड़े तो स्वाभाविक होगा, यह भी सत्य है कि सम्मानित व्यक्ति को अपना अपमान मृत्यु से भी अधिक कष्टकारी होता है।
निर्धन व्यक्ति के लिए किसी भी प्रकार की सभायें विष के समान हैं। गोष्ठियों में तो धनवान (Rich Man) व्यक्ति ही जा सकते हैं। यदि कोई निर्धन व्यक्ति ऐसे सभा स्थलों में भूल से भी चला जाये अथवा वह सभाओं में जाने की धृष्टता करता है तो यह उसकी मूर्खता ही होगी, क्योंकि उसे ऐसी सभाओं से सदैव अपमानित होकर ही निकलना पड़ता है, अतः दरिद्र व्यक्ति के लिए (Conference) सभाओं, गोष्ठियों, खेलों व मेले-ठेलों में जाना विष के प्रभाव के समान ही होता है।
वृद्ध पुरुष( Old Man) यदि किसी युवा कन्या (Yong Girl) से (Married) विवाह कर लेता है, तो उसका जीवन मरण के समान हो जाता है। कहा जाता है कि स्त्रियों में पुरूषों की अपेक्षा आठ गुना अधिक काम-वासना(Sex) होती है। जब वृद्ध पति से पत्नी की संतुष्टि नहीं होती है तो वह गुप्त रूप से किसी युवक(Youngster) से प्रेम करने लगती है।
यदि स्त्री गलत मार्ग पर चल पड़े तो अपनी यौन तृप्ति (sexual gratification) के लिए वह कुछ भी कर सकती है और किसी भी हद जा सकती है, इसीलिए वृद्ध पुरुष (Old Man) को तरूणी से विवाह करके अपने जीवन को नरकमय नहीं बनाना चाहिए। अतः आचार्य चाणक्य का संदेश है कि ऐसा करने पर वृद्धावस्था में अपमान के साथ-साथ अन्य बहुत से कष्टों को सामना करना पड़ सकता है।
आचार्य चाणक्य (Chanakya Niti) का इस कथन से अभिप्राय यही है कि विवेचना का अभ्यास न होने पर शास्त्र की चर्चा नहीं करनी चाहिए, अजीर्ण अथवा अपच की अवस्था में भोजन नहीं करना चाहिए, दरिद्र व्यक्ति को सभाओं एवं पाटियों में नहीं जाना चाहिए, तथा वृद्धों को युवा स्त्रियों से विवाह नहीं करना चाहिए, क्योंकि इससे उनका शरीर ही क्षीण होगा।