Chanakya Niti : धन मनुष्य जाति के लिए जीवन यापन का मुख्य साधन है। धनाभाव में जीवन कष्टपूर्वक बीतता है। मनुष्य को चाहिए कि जंगली आदमखोर जीवों के बीच में रहना पड़े तो रह लें। जहां पत्ते व फूलों को भोजन मानकर और नदी का जल पीकर रहना है, घास-फूस ही बिछाना व फटे वस्त्रों को ही पहनना है।
भले ही वृक्षों की छाल को ओढ़कर शरीर को ढंकना पड़े तो ढंक ले, लेकिन धनहीन होने के पश्चात अपनी रिश्तेदारी या बन्धु-बान्धवों के बीच में रहना सर्वथा गलत है, क्योंकि इससे अपमान का जो कड़वा धूंट पीना पड़ता है वो असहनीय होता है। (Chanakya Niti)
चावल से दस गुनी ज्यादा शक्ति आटे में होती है, आटे से दस गुनी अधिक शक्ति दूध में होती है, दूध से आठ गुनी अधिक शक्ति मांस में होती है और मांस से भी दस गुनी अधिक शक्ति शुद्ध घी में होती है। आचार्य चाणक्य (Chanakya Niti) का यह कथन अभीष्ट है कि अधिक शक्ति को पाने के लिए मांस के स्थान पर घी व दूध का प्रयोग वांछनीय है।