chanakya neeti: इस संसार में गुणी व्यक्ति हर जगह मान सम्मान पाता है। भले ही वह अर्थाभाव से पीड़ित हो, गुणी होने पर उसे हर जगह सम्मान मिलता है। असीम वैभव सम्पत्ति वाले किन्तु गुणहीन व्यक्ति का सम्मान नहीं होता।
ठीक उसी तरह, (chanakya neeti) जिस तरह अत्यन्त प्रकाशयुक्त द्वितीया का चन्द्रमा सर्वत्र पूज्य होता है, किन्तु पूरा चन्द्रमा उतना प्रकाशमान होते हुए भी पूज्य नहीं होता, क्योंकि वह निष्कलंक नहीं होता। अर्थ यह है कि जिसमें कलंक हो, उसमें गुण नहीं हो सकता।
चन्द्र के पूर्ण होने पर उसका कलंक (chanakya neeti) भी सबको दिखाई देता है, जबकि दूज के चन्द्रमा में कलंक नहीं दिखाई देता इसलिये वह पूज्य होता है। हर व्यक्ति को अपने जीवन में सद्गुणों को विकसित करना चाहिए।
सद्गुणों को सुगन्धि से मनुष्य (chanakya neeti) का जीवन रूपी पुष्प स्वयं ही महक उठता है। जिस व्यक्ति के गुणों की प्रशंसा दूसरे करें वह व्यक्ति गुणहीन होने पर भी गुणी हो जाता है। अपितु आत्म-प्रशंसा करने से इन्द्र भी गुणी नहीं बन जाता, साधारण मनुष्य की तो बात ही क्या है?
अभिप्रायः यह है कि जिसकी प्रशंसा अन्य करें वह गुणी है। जब तक दूसरे लोग किसी के गुण को मान्यता नहीं देते तब तक उसकी आत्म-प्रशंसा करना भी निरर्थक है।